रॉकी हैंडसम : फिल्म समीक्षा

रॉकी उसका उपनाम है और पड़ोसी उसे हैंडसम कह कर पुकारते हैं इसलिए वह रॉकी हैंडसम कहलाने लगा। ये दो बातें फिल्म के नाम 'रॉकी हैंडसम' को जस्टिफाई करने के लिए बताई गई हैं। वैसे यह दक्षिण कोरियाई हिट फिल्म 'द मैन फ्रॉम नोव्हेअर' का ऑफिशियल ‍रीमेक है। 
 
कोरियन एक्शन मूवीज़ में हिंसा बहुत ही क्रूर तरीके से दिखाई जाती है और 'रॉकी हैंडसम' इस बात का पूरी तरह पालन करती है, लेकिन इस एक्शन को सही ठहराने के लिए कहानी सही नहीं चुनी गई है। कोरियाई फिल्म का भारतीय संस्करण बनाने में निर्देशक और लेखक ने मूल फिल्म की धार खो दी है। 
 
गोआ में रहने वाला कबीर अहलावत (जॉन अब्राहम) के बारे में लोग ज्यादा कुछ नहीं जानते। अतीत में हुई एक दुर्घटना के कारण वह खामोश रहता है। वह लोगों की चीजें गिरवी रख पैसा उधार देता है। पड़ोस में रहने वाली सात वर्ष की लड़की नाओमी (बेबी दीया चालवड) को वह बेहद चाहता है। एक दिन कुछ गुंडे नाओमी को उठाकर ले जाता है। कबीर का खून खौल उठता है। वह अकेला ही उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ता है। उसकी टक्कर ड्रग्स, बच्चों को उठाने और मनुष्य के अंग बेचने वाले माफियाओं से होती है। वन मैन आर्मी कबीर उस माफिया की दुनिया उलट कर रख देता है। 
फिल्म की कहानी एकदम सीधी है और पूरी तरह से एक्शन पर निर्भर है। इसमें एक मजाकिया ऑफिसर, एक अजीबोगरीब हरकत करने वाला गैंगस्टर, एक खूबसूरत हीरोइन डालकर विविधता लाने का प्रयास किया गया है, लेकिन बात नहीं बनी। गैंगस्टर खिजाता है और हीरोइन का रोल देख कर ये लगता है कि क्या हर फिल्म में हीरोइन का किरदार डालना जरूरी है। इससे बचा जा सकता था।
 
स्क्रिप्ट में लॉजिक को साइड में रखते हुए सारा फोकस एक्शन पर दिया गया है। नाओमी तक पहुंचने में जो थ्रिल होना चाहिए वो नदारद है। कबीर बहुत ही आसानी से सब कुछ कर देता है जो पुलिस के लिए नामुमकिन था। स्क्रिप्ट में कई बातों को समावेश किया गया है जो अपील नहीं कर पाता। 
 
जहां तक एक्शन की बात है तो वो जबरदस्त है। कबीर इस तरह से चाकू-छुरे चलाता है मानो वह गाजर-मूली काट रहा हो। क्लाइमैक्स में तो जॉन अब्राहम का एक्शन गजब का है। लेकिन यही एक्शन तब फीका पड़ जाता है जब कहानी से या स्क्रिप्ट से उसे सपोर्ट नहीं मिलता। फिल्म में इमोशन बिलकुल भी नहीं है जबकि थोड़ी-बहुत जगह तो बनती थी। बिना इमोशन के यह एक्शन मशीनी और बेजान लगता है।  
 
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निर्देशक के रूप में निशिकांत कामत ने कुछ बेहतरीन फिल्में दी हैं, लेकिन 'रॉकी हैंडसम' में वे आउट ऑफ फॉर्म नजर आएं। उनका प्रस्तुतिकरण कन्फ्यूजिंग है। वे फिल्म के मुख्य किरदारों को दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाएं। नाओमी के लिए जो दर्द कबीर महसूस करता है वो दर्शक नहीं कर पाते हैं। 
 
बतौर अभिनेता जॉन अब्राहम के पास सीमित रेंज है और इसी रेंज में उन्हें निर्देशक ने रखा है। पूरी फिल्म में वे अपना स्टाइलिश लुक देते नजर आए और एक एक्सप्रेशन उन्होंने चेहरे पर रखा है। ‍बमुश्किल कुछ संवाद उन्होंने फिल्म में बोले हैं। एक्शन मे वे सहज नजर आएं और उनकी इसी खूबी का जमकर प्रयोग किया गया है। 
 
लगता है कि बॉलीवुड के प्रति श्रुति हासन गंभीर नहीं हैं और इसीलिए वे इतने महत्वहीन रोल कर रही हैं। निशिकांत कामत ने भी एक किरदार अदा किया है और उनका अभिनय ठीक है। नाओमी बनी लड़की दीया चालवड का अभिनय अच्छा है, लेकिन उन्हें भारी-भरकम संवादों से लाद दिया गया है। 
 
फिल्म में तीन-चार गाने भी हैं जो कि कहानी में फिट नहीं होते। शायद निर्देशक यह मानकर बैठे थे कि बिना गाने और हीरोइन के हिंदी फिल्म अधूरी रहती हैं। ‍शंकर रमन ने गोआ को अलग ही अंदाज में पेश किया है। गहरे काले बादलों से छाया गोआ, धुएं से भरे नाइट क्लब और गंदी तथा टूटी-फूटी बिल्डिंग्स के जरिये उन्होंने फिल्म की डार्क थीम को और गहरा किया है।
 
कुल मिलाकर रॉकी हैंडसम उन दर्शकों के लिए है जिन्हें फिल्म में सिर्फ और सिर्फ एक्शन देखना पसंद है। 
 
बैनर : जे.ए. एंटरटेनमेंट, अज़ूरे एंटरटेनमेंट
निर्माता : सुनील खेत्रपाल, जॉन अब्राहम 
निर्देशक : निशिकांत कामत
संगीत : सनी बावरा, इंदर बावरा, अंकित तिवारी
कलाकार : जॉन अब्राहम, श्रुति हासन, बेबी दीया चालवड, निशिकांत कामत, नतालिया कौर, नूरा फतेही (आइटम नंबर)
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 6 मिनट 10 सेकंड
रेटिंग : 2/5
 

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