शमिताभ : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015 (15:06 IST)
पेड़ के आगे शराबी और अभिनेता बनने का असफल प्रयास कर चुका वृद्ध अभिनेता कहता है कि यहां तो नाम भी कॉपी किया गया है। हॉलीवुड से बना दिया बॉलीवुड। जो नाम नहीं सोच पाए वे मौलिक कहानी क्या सोचेंगे। यहां तो सब 'इंस्पायर्ड' होते हैं। 'शमिताभ' का यह सीन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की हकीकत बयां करता है। 90 प्रतिशत से ज्यादा फिल्में प्रेरणा लेकर बनाई जाती हैं और नई सोच को पनपने नहीं दिया जाता, लेकिन 'शमिताभ' के निर्देशक आर बाल्की मौलिक फिल्मकार हैं। 'चीनी कम' और 'पा' इसके उदाहरण हैं। 'शमिताभ' में उनका कंसेप्ट आउट ऑफ बॉक्स है, लेकिन इसको परदे पर वे ठीक से नहीं उतार पाए। कंसेप्ट को स्क्रीनप्ले में ठीक से ढाल नहीं पाना फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। 
अमिताभ सिन्हा (अमिताभ बच्चन) चिड़चिड़ा और हमेशा नशे में धुत्त रहता है। 40 साल पहले अभिनेता बनने के लिए आया था। चेहरा तो छोड़िए, उसकी खनखनाती आवाज रेडियो वालों को भी पसंद नहीं आई (अमिताभ बच्चन की आवाज को सचमुच में ऑल इंडिया रेडियो वालों ने रिजेक्ट कर दिया था)। कब्रिस्तान उसका घर है क्योंकि वहां पर उसे किसी का डर नहीं लगता। वह प्रतिभाशाली है, लेकिन जरूरी नहीं है कि बॉलीवुड में वही आगे बढ़े जो प्रतिभाशाली हो। 
 
दूसरी ओर दाशिन (धनुष) उन करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो फिल्मों में अभिनय करना चाहते हैं। महाराष्ट्र के छोटे से गांव में रहने वाला दानिश सिनेमा को देख चमत्कृत है। उसका खाना-पीना, ओढ़ना-बिछाना सिनेमा है। उसकी हर अदा में 'हीरो' झलकता है। वह गूंगा है, फिर भी हीरो बनने का सपना लिए वह मुंबई आता है। 
 
दानिश की मुलाकात अक्षरा (अक्षरा हसन) से होती है जो फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर (एडी) रहती है। दानिश में उसे प्रतिभा नजर आती है। अक्षरा की मदद और तकनीक का मेल होता है।  इसका मिक्सचर बनता है 'शमिताभ'। यानी दानिश का चेहरा और अमिताभ की आवाज। दानिश बन जाता है सुपरस्टार। फिर होता है अहं का टकराव कि इस सफलता में किसका योगदान ज्यादा है?

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आर बाल्की ने फिल्म को लिखा भी है। उन्होंने दानिश का अभिनय और अमिताभ की आवाज का जो मेल दर्शाया है वो विश्वसनीय नहीं है। तकनीक का हवाला दिया गया है, लेकिन बात नहीं बनती। दानिश, शमिताभ बन फिल्मों में अभिनय करता है और कोई इस बात को पकड़ नहीं पाता कि वह गूंगा है, इस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। आखिर हमेशा और भीड़ में मौजूद रहने वाला इंसान कब तक लोगों को बेवकूफ बना सकता है? 
 
फिल्म में दो कलाकारों के अहं के टकराव को भी दिखाया गया है। एक का मानना है कि बिना आवाज के अभिनय का कोई मतलब नहीं है तो दूसरे का कहना है कि अभिनेता के एक्सप्रेशन ज्यादा महत्व रखते हैं। इस टकराहट की वजह को ठीक से स्थापित नहीं किया गया है, इसलिए यह बात प्रभावी नहीं बन पाई है। स्क्रीनप्ले सहूलियत के मुताबिक लिखा गया है और इसमें मनोरंजन का अभाव भी है।
 
आर बाल्की निर्देशन अच्छा है, लेकिन लेखक के रूप में वे अपने विचार के इर्दगिर्द जो उन्होंने कहानी और स्क्रीनप्ले बुना है वो कमजोर है। पहले हाफ में कुछ हल्के-फुल्के सीन हैं जिनका आनंद उठाया जा सकता है। 
 
मुख्य कलाकारों का अभिनय फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पाइंट है। उनके अभिनय के कारण फिल्म में रूचि बनी रहती है। अमिताभ बच्चन में बहुत कुछ अभी बाकी है ये बात 'शमिताभ' से फिर सिद्ध हो जाती है। अड़ियल, सनकी और शराबी की भूमिका उन्होंने पूरी विश्वसनीयता के साथ पेश की है। निर्जीव वस्तुओं से बात करते समय वे कमाल का अभिनय करते हैं। 
 
अमिताभ जैसी अभिनय की आंधी का सामना धनुष ने आत्मविश्वास के साथ किया है। वे ऊर्जा से भरे लगे और उनके अभिनय में त्रीवता नजर आई। कई दृश्यों में उन्हें एक्सप्रेशन से काम चलाना था और उन्होंने यह बखूबी किया। अक्षरा हासन ने दिखा दिया कि वे प्रतिभाशाली हैं। हालांकि उनका रोल ठीक से नहीं लिखा गया है। वे दानिश की इतनी मदद क्यों करती है, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। 
 
शमिताभ का आइडिया लीक से हटकर है, लेकिन वो ठीक से कार्यान्वित नहीं हो पाया। 
 
बैनर : इरोज इंटरनेशनल 
निर्माता : राकेश झुनझुनवाला, आरके दमानी, सुनील ए लुल्ला, गौरी शिंदे, अभिषेक बच्चन
निर्देशक : आर बाल्की
संगीत : इलैयाराजा
कलाकार : अमिताभ बच्चन, धनुष, अक्षरा हसन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 33 मिनट 29 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5 

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