टीकू और शेरू शादी तो कर लेते हैं, लेकिन सजा दर्शकों को भुगतनी पड़ती है। यदि ये शादी नहीं करते तो जिन्होंने भी यह फिल्म देखी है उन्हें यातना से नहीं गुजरना पड़ता। हैरत होती है कंगना रनौट से कि उन्होंने क्या सोच कर इस फिल्म में पैसा लगाया? नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने बिना स्क्रिप्ट सुने यह फिल्म कर ली थी। उम्मीद है कि इस तरह की गलती वे अगली बार नहीं दोहराएंगे। हैरत तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी होती है कि उन्होंने इस घटिया फिल्म को अपने लाइब्रेरी में जगह ही क्यों दी?
शेरू (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) एक जूनियर आर्टिस्ट है जो हिंदी फिल्मों का स्टार बनने का सपना पाले हुए है। साथ में अमीरजादों को लड़की सप्लाई करने का धंधा भी करता है। पिता के बुलावे पर वह भोपाल पहुंचता है और टीकू (अवनीत कौर) नामक लड़की से शादी कर लेता है।
टीकू का एक बॉयफ्रेंड है, वह प्रेग्नेंट है, लेकिन मुंबई आने के लिए वह शेरू से शादी कर लेती है ताकि अपने बॉयफ्रेंड से मिल सके क्योंकि अपने परिवार की सख्ती कारण वह बॉयफ्रेंड से शादी नहीं कर सकी। मुंबई पहुंचते ही बॉयफ्रेंड धोखा दे देता है। टीकू के भेद खुल जाते हैं, लेकिन शेरू फिर भी उसे अपना लेता है।
इसके बाद तमाम घटनाएं घटती हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले इस तरह से लिखा गया है कि दर्शक पहली फ्रेम से ही फिल्म को खारिज कर देता है। यह बात तय है कि यदि 100 लोग इस फिल्म को देखना शुरू करेंगे तो अंत तक सिर्फ 5 ही पहुंचेंगे।
बेसिर पैर की कहानी को लिखा है अमित तिवारी आनंद और सई कबीर ने। स्क्रीनप्ले तो और भी बुरा है। स्क्रीन पर ऐसी हरकतें चलती रहती है कि आप हैरत में पड़ जाते हैं कि हो क्या रहा है? एक के बाद एक सीन आते हैं जिनमें आपस में कोई जुड़ाव नहीं है।
हल्की-फुल्की फिल्म के नाम पर कॉमेडी सीन भी रखे गए हैं जिन्हें देख खीझ पैदा होती है। गालियां क्यों रखी गई समझ से परे है? क्या ओटीटी पर रिलीज की गई है इसलिए? जबकि ये अपशब्द स्क्रिप्ट में कही फिट नहीं बैठते।
फिल्म ऐसे चलती है जैसे बिना ड्राइवर के गाड़ी। जो मनचाहा दिखा दिया गया और ऐसे दृश्यों से पाला पड़ता है जिनका कोई मतलब नहीं निकलता। रोमांटिक सीन, कॉमेडी सीन, भाईगिरी के सीन, सभी बकवास हैं।
साई कबीर को पता नहीं किसने निर्देशक की कुर्सी पर बैठा दिया। कुछ भी घालमेल बना कर उन्होंने पेश कर दिया जिसको देख दर्शक बाल नोंच लेते हैं। गीत, संगीत, टेक्नीकल डिपार्टमेंट सभी का काम स्तरहीन है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी बुरी एक्टिंग भी कर सकते हैं ये बात 'टीकू वेड्स शेरू' देख पता चलती है। अवनीत कौर की एक्टिंग बहुत बुरी है। अन्य कलाकारों में भी इस बात की रेस थी कि कौन सबसे घटिया एक्टिंग करता है।
टीकू वेड्स शेरू थिएटर में रिलीज होती तो पहले शो के बाद ही उतार दी जाती। टॉर्चर से कम नहीं है यह मूवी।