उंगली : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014 (13:50 IST)
भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर, रिश्वतखोर सरकारी बाबुओं और वोट पाकर नोट कमाने वाले नेताओं ने पूरा सिस्टम गंदा कर रखा है। बच्चा गंदगी करता है तो डायपर बदल दिया जाता है, लेकिन सिस्टम की गंदगी साफ करना इतना आसान नहीं है। साथ ही इतना साहस कम ही लोगों में होता है। अन्याय और शोषण के खिलाफ कुछ युवा 'उंगली गैंग' बना लेते हैं जो कानून को हाथ में लेते हुए इन बिगड़ैल लोगों को सबक सिखाता है। इस गैंग का मानना है कि यदि घी सीधी उंगली से नहीं निकलता है तो टेढ़ी करना होती है, लेकिन वे बीच का रास्ता अपनाते हैं। यह विषय बॉलीवुड का पसंदीदा रहा है। अस्सी और नब्बे के दशक में सिस्टम के खिलाफ जूझ रहे हीरो की कई फिल्में आई हैं। थोड़े बहुत बदलाव के साथ रेंसिल डिसिल्वा ने इसे लिखा और निर्देशित किया है।  
 
रेंसिल ने 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्म और '24' जैसे धारावाहिक लिखा है, लेकिन 'उंगली' में उन्होंने बेहद निराश किया है। उनकी लिखी स्क्रिप्ट में कई कमजोर दृश्य हैं और निर्देशक के रूप में वे ड्रामे में विश्वसनीयता का पुट नहीं डाल पाए हैं।  
 
अभय (रणदीप हुडा), माया (कंगना), गोटी (नील भूपलम) और कलीम (अंगद बेदी) मिलकर अन्याय के खिलाफ लड़ने का फैसला तब करते हैं जब माया के भाई (अरुणोदय सिंह) को न्याय नहीं मिलता। वे उंगली गैंग बना कर रिक्शा चालकों, आरटीओ में काम करने वाले बाबुओं और पुलिस वालों को अपने तरीके से सबक सिखाते हैं। 
 
इस गैंग को पकड़ने का काम पुलिस ऑफिसर काले (संजय दत्त) को सौंपा जाता है जो यह काम निखिल (इमरान हाशमी) के जिम्मे करता है। निखिल उंगली गैंग जैसे काम कर अभय और उसकी टीम का ध्यान आकर्षित करता है। उसे पकड़ने का मौका मिलता है तो वह उनकी गैंग में शामिल हो जाता है। क्या उंगली गैंग पकड़ी जाती है? क्या निखिल अपने फर्ज से गद्दारी करता है? इनके जवाब फिल्म में मिलते हैं। 
लेखन फिल्म की बहुत बड़ी कमजोरी है। उंगली गैंग जिस आसानी से काम करती है उस पर यकीन करना मुश्किल है। उंगली गैंग को पकड़ने के लिए पुलिस की कोशिश कमजोर नजर आती है। उंगल गैंग बेहद आसानी से निखिल से मिलने पहुंच जाती है और यह बात हजम नहीं होती। निखिल को जब इस गैंग को पकड़ने का सुनहरा अवसर मिलता है तो बजाय उन्हें गिरफ्तार करने के  वह उनकी गैंग में क्यों शामिल होता है ये समझ से परे है। 

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पुलिस ऑफिसर काले अपना ट्रांसफर करवाने के लिए फिक्सर (महेश मांजरेकर) के घर जाता है। वो अपने घर में पुलिस वालों को रुपये से भरे कमरे में आसानी से जाने देता है। यहां तक कि उंगली गैंग रुपये से भरे कमरे में पहुंच जाती है और नोटों को केमिकल लगाती है। इस दौरान फिक्सर के सुरक्षाकर्मी बाहर खड़े रहते हैं। रणदीप-नेहा और इमरान-कंगना के बीच बेवजह रोमांस दिखाने की कोशिश की गई है। कहने का मलतब ये कि लेखक ने तमाम अपनी सहूलियत से स्क्रिप्ट लिखी है और दर्शकों को जोड़ने में वे विफल रहे हैं। 
 
निर्देशक के रूप में भी रेंसिल निराश करते हैं। ड्रामे को विश्वसनीय बनाने में तो वे असफल रहे ही हैं, लेकिन मनोरंजन की तलाश में आए दर्शकों को भी घोर निराशा हाथ लगती है। पूरी फिल्म बोरियत से भरी है और नींद न आने वालों की शिकायत इस फिल्म से दूर हो सकती है। फिल्म में ढेर सारे स्टार कलाकार हैं, जिनका सही उपयोग कर पाने में भी रेंसिल असफल रहे हैं।  
 
मिलाप ज़वेरी के संवाद कुछ जगह अच्छे लगते हैं, लेकिन 'आप काले हैं तो वे दिलवाले हैं' जैसे घटिया संवाद भी सुनने को मिलते हैं। फिल्म में गाने ठूंसे गए हैं जो अखरते हैं। 
 
फिल्म के कलाकारों ने अनमने तरीके से काम किया है। इमरान हाशमी के स्टारडम का ठीक से उपयोग नहीं किया गया है और न ही उन्हें ज्यादा फुटेज मिला है। इमरान ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट का साथ उन्हें नहीं मिला। संजय दत्त का भी यही हाल रहा है। कंगना रनौट, नेहा धूपिया और रणदीप हुडा को फिल्म देखने के बाद महसूस होगा कि उन्होंने क्यों ये फिल्म की। फिल्म में छोटी-छोटी भूमिकाओं में कई दमदार कलाकार हैं, लेकिन सबकी प्रतिभा का उपयोग नहीं हो सका है। श्रद्धा कपूर को एक गाने में फिट किया गया है ताकि फिल्म में ताजगी महसूस हो, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। 
 
उंगली की एक ही बात अच्छी है कि इसकी अवधि दो घंटे से कम है। 
 
 
बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स
निर्माता : करण जौहर, हीरू यश जौहर
निर्देशक : रेंसिल डिसिल्वा 
संगीत : सलीम-सुलेमान, सचिन-जिगर, गुलराज सिंह, असलम केई
कलाकार : इमरान हाशमी, कंगना रनौट, संजय दत्त, नेहा धू‍पिया, रणदीप हुडा, अंगद बेदी, नील भूपलम, अरुणोदय सिंह, श्रद्धा कपूर (आइटम नंबर), रजा मुराद, रीमा लागू, महेश मांजरेकर 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 54 मिनट 18 सेकंड
रेटिंग : 1/5 

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