कपिल शर्मा, कृष्णा अभिषेक और सुदेश लहरी के लिए कॉमिक स्क्रिप्ट लिखने वाले राज शांडिल्य विक्की विद्या का वो वाला वीडियो लेकर आए हैं। फिल्म का टाइटल जितना नॉटी है, फिल्म उतनी नॉटी और फनी नहीं है।
कहानी 1997 में सेट है, जब सीडी का जमाना था। कुमार सानू के गाने धूम मचाए हुए थे। लड़कियों के हाथों में मेहंदी लगाने वाला विक्की (राजकुमार राव) और डॉक्टर विद्या (तृप्ति डिमरी) अपनी सुहागरात का वीडियो बनाते हैं। दिक्कत तब आती है जब एक रात उनके घर चोरी हो जाती है और चोर सीडी भी ले जाता है। सीडी और लोगों के हाथ में न लगे इसके लिए विक्की जी-जान से ढूंढने में लग जाता है।
इसमें दो राय नहीं है कि कहानी का आइडिया अच्छा है, लेकिन इस पर ढाई घंटे की फिल्म बना कर दर्शकों को बांधने में निर्देशक और लेखक राज शांडिल्य सफल नहीं हो पाए। उनके पास इतना मसाला ही नहीं था, लिहाजा फिल्म बुरी तरह से खींची गई है। दर्शक चाहते हैं कि विक्की को जल्दी से सीडी मिले और वे घर जाएं।
राज ने कहानी को आगे बढ़ाने के लिए कई किरदार डाले, कई प्रसंग डाले, लेकिन ज्यादातर कहानी में कोई योगदान नहीं दे पाते। ऐसा लगता है कि चुटकलों को जोड़ जोड़ कर कोई कहानी बना रहा हो। ऊपर से हर चुटकुला भी मजेदार नहीं है। शुरुआत में फिल्म हंसाती है, ताजगी से भरी लगती है, लेकिन जल्दी ही मुरझा जाती है। उत्तर प्रदेश और मिडिल क्लास फैमिली को लेकर कोई नई बात नहीं बता पाती।
स्क्रिप्ट बिखरी हुई है और फिल्म अलग-अलग दिशाओं में आगे बढ़ती है। कई बार एक सीन का दूसरे से कनेक्शन नहीं बैठ पाया। मल्लिका शेरावत और विजय राज के रोमांटिक ट्रैक इतना ज्यादा खींचा गया कि ऊब होने लगती है। विक्की के घर की नौकरानी चंदा के सीन भी उबाऊ हैं। अर्चना पूरन सिंह का मुंह में पान रख कर बोलना एक-दो बार हंसा सकता है, बार-बार नहीं। विक्की के पिता का सोचना कि उनकी सीडी चोरी हो गई, ड्रामे में कुछ खास नहीं जोड़ पाता। विद्या अपने व्यवहार से लगती ही नहीं कि डॉक्टर है।
हॉरर-कॉमेडी फिल्मों को पसंद किया जा रहा है तो यहां भी चुड़ैल का प्रसंग डाल दिया गया, जो कहानी में बिलकुल फिट नहीं बैठता। क्लाइमैक्स में ट्विस्ट और टर्न देने की कोशिश की गई, कुछ संदेश देने की कोशिश की गई है, लेकिन इससे फिल्म का कोई भला नहीं होता।
राज शांडिल्य निर्देशक के तौर पर बुरे रहे। वे फिल्म पर पकड़ नहीं बना पाए। 27 साल पुराना समय रिक्रिएट वे ठीक से नहीं कर पाए। रिसर्च की कमी लगती है, खासतौर पर गाड़ियों की नंबर प्लेट में। वे लेखक अच्छे हैं, लेकिन विक्की विद्या का वो वाला वीडियो में बतौर लेखक भी नाकामयाब रहे। केवल संवाद उन्होंने अच्छे लिखे हैं, जो थोड़ा-बहुत हंसाते हैं।
राजकुमार राव बेहतरीन एक्टर हैं, लेकिन यहां वे आउट ऑफ फॉर्म नजर आएं। उनका हेअर स्टाइल भी बहुत खराब रहा। तृप्ति डिमरी बुरी तरह से निराश करती हैं। विजय राज और टीकू तलसानिया ने हंसाया है। मल्लिका शेरावत औसत रहीं।
राकेश बेदी और अर्चना पूरन सिंह बेहद लाउड रहे। मुकेश तिवारी का रोल इसलिए लिखा गया कि किसी तरह से फिल्म को खत्म करना था।
फिल्म में ज्यादातर पुराने गानों को रीमिक्स किया गया है और नए गानों में दम नहीं। संपादन चुस्त नहीं है। सिनेमाटोग्राफी और अन्य टेक्नीकल डिपार्टमेंट में फिल्म औसत है।
कुल मिला कर विक्की विद्या का वो वाला वीडियो में चंद संवाद ही हंसाते हैं और सिर्फ इसके लिए टिकट नहीं खरीदा जा सकता।