एक म्यूजिक चैनल पर वर्षों पहले क्विक गन मुरुगन पहली बार आया था, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। लोगों को गुदगुदाने वाले इस किरदार को फीचर फिल्म के रूप में पेश किया है।
‘क्विक गन मुरुगन’ में काउबॉय मुरुगन के मिसएडवेंचर्स को दिखाया गया है। सत्तर और अस्सी के दशक में जैसी हिंदी और तमिल मसाला फिल्में बनती थीं, वैसा ही इसे पेश किया गया है। खासतौर पर तमिल फिल्म का प्रभाव इस पर ज्यादा नजर आता है। ये फिल्म उस दौर में बनाई गई फिल्मों की यादों को ताजा करने के लिए बनाई गई है।
अधेड़ उम्र, विग और होंठों पर लिपिस्टिक, पतली सी मूँछ, हरी शर्ट, ऑरेंज ट्राउजर, सफेद जूते, सिर पर हैट और जबर्दस्त एक्शन करने वाला गरीबों का मसीहा नायक, जो अपनी प्रेमिका को छोड़ किसी दूसरी स्त्री की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखता है। ज़ीरो फिगर वाली नहीं बल्कि माँसल देह वाली हीरोइन। सोने से लदा हुआ खूँखार विलेन और बदसूरत चेहरे वाले उसके चमचे, उस दौर की फिल्मों की खासियत हुआ करती थी। यही सब मुरुगन में भी नजर आती है।
मुरुगन को फिल्म के आरंभ में ही राइस प्लेट रेड्डी ने मार दिया क्योंकि राइस प्लेट सभी रेस्तरां को माँसाहारी बनाना चाहता है और मुरुगन उसका विरोध करता है। यमदूत मुरुगन को ऊपर ले जाता है और चित्रगुप्त को पटाकर मुरुगन फिर धरती पर उतरता है।
अपने मैकडोसा को स्वादिष्ट बनाने के लिए राइस प्लेट ढेर सारी मम्मियों को उठा लेता है ताकि वह उसे बेच सके। इस चक्कर में मुरुगन का भाई मारा जाता है और मुरुगन को राइस प्लेट रेड्डी से बदला लेने का एक और कारण मिल जाता है। इस काम में उसकी मदद मैंगो डॉली भी करती है। कैसे मुरुगन अपना बदला लेता है और डोसे को माँसाहारी होने से बचाता है यह फिल्म का सार है।
फिल्म में वे सारे स्टंट (दुश्मन की गोली को मुँह से पकड़ लेना, तीली जलाने और गोली मारने का स्टाइल) हैं जो आमतौर पर रजनीकांत की फिल्मों में देखने को मिलते हैं। निर्देशक शशांक घोष ने कुछ उम्दा दृश्य रचे हैं। जैसे, राइस प्लेट का गोली पर मुरुगन का नाम लिखकर उसे मारना। फिल्म के अंत में विकलांग भिखारी द्वारा मुरुगन से भीख माँगना। गनपावडर से इस्तीफा लिखवाकर राइस प्लेट द्वारा उसे मारना। राइस प्लेट को मरते समय मुरुगन के सारे अवतार दिखना।
हिंदी, तमिल और अँग्रेजी में लिखे संवाद चुटीले हैं। राजेंद्र प्रसाद ने मुरुगन की भूमिका में जान डाल दी है। नासिर और रंभा का अभिनय भी उल्लेखनीय है। फिल्म का लुक एकदम परफेक्ट है।
‘मुरुगन’ के साथ समस्या यह है कि मजाक थोड़ी देर तक अच्छा लगता है, लेकिन डेढ़ घंटे तक उसे देखना भारी हो जाता है। जो लोग मुरुगन के प्रशंसक हैं वे इसे पसंद करेंगे।