वर्ष 2008-09 का देश का पहला ऐसा रेल बजट है जिसमें बुनियादी संरचना निर्माण (इंफ्रास्ट्रक्चर) को अधिक महत्व दिया गया है। इस तरह यह बजट जहाँ देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने, लोहा-इस्पात, सीमेंट एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र की माँग में इजाफा लाने में सहायक होगा, वहीं देश के शेयर बाजार पर भी अनुकूल प्रभाव डालेगा।
वैसे इस बजट को चुनावी बजट करार दिया जा सकता है, क्योंकि जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं उन्हीं राज्यों में रेलों के आवागमन को बढ़ाया गया है नई ट्रेनों व लाइनों के दोहरीकरण के लिहाज से। रेलों के नए यात्री डिब्बों व माल वाहक वैगनों से संबंधित नए संयंत्र भी इन्हीं राज्यों में स्थापित करने की घोषणा की गई है।
अर्थात इसमें बिहार व अन्य पूर्वी राज्य, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, केरल कर्नाटक, महाराष्ट्र को अधिक महत्व दिया गया है बजाय गुजरात व उत्तरप्रदेश के। बजट में 10 नई गरीब रथ गाड़ियाँ, 53 जोड़ी नई गाड़ियाँ, 11 जोड़ी गाड़ियों के फेरों में वृद्धि की घोषणा की गई है। बजट में लौह-इस्पात, सीमेंट कोयले की ढुलाई में अच्छी वृद्धि लाने एवं कंटेनर व्यवसाय में तेजी लाने के लिए विशेष मिशन तय किए गए।
अर्थात इन क्षेत्रों के उद्योगों के लिए सेवित रेल लाइनें बढ़ाने, लाइनों के आमान में परिवर्तन की योजना है, जिससे इन उद्योगों की परिवहन लागत घटेगी एवं रेलों के साथ-साथ आम उपभोक्ताओं के लिए इनके मूल्य में कुछ राहत मिलेगी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि रेलवे की आमदनी में अच्छा इजाफा हो रहा है एवं उसके आंतरिक संसाधन बढ़ रहे हैं। इसीलिए भारतीय रेलों ने रेल इंजनों (डीजल व बिजली के) एवं माल डिब्बों के लिए संयंत्रों को जो ऑर्डर दिए हैं, वे संयंत्रों की उत्पादन क्षमता से अधिक हैं। उल्लेखनीय है कि 20 हजार माल डिब्बों, 250 डीजल एवं 220 बिजली के इंजनों का ऑर्डर दिया है जो अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर है।
इसके अलावा नई वैगन लीजिंग नीति व वैगन निवेश योजना भी तैयार की गई है। तीसरी बात यह है कि रेलवे के सरकारी व निजी भागीदारी योजनाओं को अधिक महत्व दिया है। पीपीपी नाम से विख्यात इस योजना पर वर्ष 2008-09 में करीब 25 हजार करोड़ रु. का निवेश होना है।
भारतीय रेलों को माल लदानों में एक ओर ट्रकों से जमकर प्रतिस्पर्धा करना पड़ रही है तो दूसरी ओर यात्री परिवहन में सड़क का विमान सेवा से प्रतिस्पर्धा करना पड़ रही है। इन्हीं प्रतिस्पर्धाओं की वजह से रेलों के लिए यात्री किराए व मालभाड़े में वृद्धि करना बेमायने हो गया था, क्योंकि ये किराए व भाड़े इतने अधिक बढ़ गए थे जिससे प्राप्ति दर बढ़ने के बजाय घटने लगी थी।
ऐसी स्थिति में भारतीय रेलवे को लालूप्रसाद यादव जैसा व्यावहारिक नेतृत्व मिला और उसने रेल किराया या भाड़ा बढ़ाने के बजाय रेलों के खर्च को युक्ति-युक्त करने, प्रति यात्री डिब्बे व प्रति वैगन आय बढ़ाने की सूझबूझ दिखाई व चमत्कृत करने वाली योजनाएँ लागू की। अब न तो कोई रेल डिब्बा अधिक समय तक कहीं पड़ा रहता है एवं न ही वैगन। अब लदान भी चौबीसों घंटे चलता रहता है। यही नहीं माल वैगनों की परिवहन क्षमता भी बढ़ाई गई।
यह सही है कि रेलवे की विकास परियोजनाएँ, रेलवे की वार्षिक योजना बहुत महत्वपूर्ण है और इनमें आम बजट प्रावधान का सहारा लेने के बजाय आंतरिक संसाधनों का योगदान अच्छा है। कोयला, लोहे, इस्पात एवं सीमेंट के लदान को आकर्षित करने के लिए उसने अच्छी छूट दी है एवं उसी तरह उच्च दर्जे की ओर संपन्न वर्ग को आकर्षित करने एवं उनकी यात्रा को विमान से सस्ती बनाने का सफल प्रयास भी किया है।
सामान्य यात्रियों को भी रेलमंत्री ने लुभाया है किंतु यात्री सुविधा के नाम पर उन्होंने कुछ विशेष नहीं किया। माना यात्री परिवहन में रेलों को 6000 करोड़ रु. से अधिक हानि होती है, जिसकी पूर्ति माल परिवहन से की जाती है। किंतु इसका मतलब यह नहीं है कि प्लेटफार्मों पर यात्रियों की भीड़भाड़, सामान्य यात्री डिब्बों में भी भीड़ कम न की जाए एवं यात्रियों के खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था न हो सके।
रेलवे के लायसेंसधारी कुलियों को चौथे वर्ग के रेलवे कर्मचारी बनाना एवं गैंगमैन को गेटकीपर बनाना अच्छा है, किंतु ऐसा लगता नहीं है कि यह कार्य वर्ष 2008-09 में हो जाएगा। क्योंकि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से रेलवे पर 9000 करोड़ रु. का अतिरिक्त भार पड़ने वाला है।