वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने माना कि मंदी के अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव को सीमित करने में भारत सफल रहा लेकिन इसके बावजूद इस साल का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। उन्होंने कहा कि 2011-12 के दौरान विकास दर के 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
मुखर्जी ने लोकसभा में 2012-13 का आम बजट पेश करते हुए कहा कि वैश्विक संकट ने हमें प्रभावित किया है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में दो पूर्ववर्ती वषरें में प्रत्येक वर्ष में 8.4 प्रतिशत की दर पर हुए विकास के बाद 2011-12 में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।
उन्होंने कहा, कि यद्यपि हम अपनी अर्थव्यवस्था में इस मंदी के प्रतिकूल प्रभाव को सीमित करने में सफल रहे हैं तो भी इस वर्ष का निष्पादन निराशाजनक रहा है परंतु यह भी एक सचाई है कि किसी भी अन्य देश की अपेक्षा भारत आर्थिक विकास के मोर्चे पर अग्रणी देश बना हुआ है।
वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले दो साल में अधिकांश समय हमें लगभग दो अंकों की समग्र मुद्रास्फीति से जूझना पडा। इस अवधि में हमारे मौद्रिक और राजकोषीय नीतिगत उपाय घरेलू मुद्रास्फीतिकारी दबावों को काबू करने की दिशा में केन्द्रित रहे। सख्त मौद्रिक नीति ने निवेश और उपभोग की वृद्धि पर प्रभाव डाला। राजकोषीय नीति में सब्सिडी पर बढ़े परिव्यय और उपभोक्ताओं पर ईंधन की उंची कीमतों का असर सीमित करने हेतु शुल्क में कटौतियां करनी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप विकास धीमा हुआ और राजकोषीय संतुलन की स्थिति खराब हुई।
मुखर्जी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह वर्ष पुनरोत्थान में व्यवधान का वर्ष रहा। जब एक वर्ष पूर्व मैंने बजट प्रस्तुत किया था, हमारे समक्ष अनेक चुनौतियां थीं परंतु मेरी यह अनुभूति भी थी कि विश्व अर्थव्यवस्था सुधार की राह पर है।
बजट आशा की पहली झलक के बीच प्रस्तुत किया गया था परंतु स्थितियां आगे चलकर बदल गईं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों में ऋण संकट गहराया, मध्य पूर्व में राजनीतिक उठापटक ने व्यापक अनिश्चितता पैदा की, कच्चे तेल की कीमतें बढीं, जापान में भूकंप आया और कुल मिलाकर स्थिति निराशाजनक बनी रही।
मुखर्जी ने कहा कि हालांकि मेरा विश्वास है कि आत्मसंतोष की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। न ही किसी के अपने देश में क्या घटित हो रहा है, इसके लिए कोई बहाना होना चाहिए। यदि हम विश्व की जमीनी हकीकत की अनदेखी करें तो हम भ्रम में रहेंगे। (भाषा)