गुरुमंत्र : संघर्षों में ‍छिपी जीत की खुशी

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संघर्ष के बिना जिंदगी जीना यानी बिना मेहनत के फल खाने जैसा है। संघर्ष युवा साथी को सोना बनाता है और जिंदगी की भट्टी में जब वह अनुभव के साथ तपता है तब जिंदगी का असल अर्थ उसे समझ में आता है।

अनुभव का कोई विकल्प नहीं है, यह हम सुनते भी हैं और बात सही भी है। पर यह बात भी उतनी ही सही है कि अगर आप संघर्ष करना नहीं जानते तब जिंदगी में आगे बढ़ने की ललक भी स्वयं में समाप्त कर देंगे।

जिंदगी में संघर्ष सभी स्तरों पर है और आपको किला सभी दूर लड़ाना पड़ता है। आप चाहे करियर की बात करें या नौकरी की या फिर स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत करने की बात हो बिना संघर्ष किए कोई भी मुकाम हासिल नहीं कर सकते। संघर्ष अपने साथ बहुत सारी बातें लाता है जिसमें मेहनत से लेकर विपरित परिस्थितियों से सामना करना भी शामिल रहता है।

एक गरीब महिला थी जिसके पति की मृत्यु हो गई थी। उसका एक बेटा था। महिला की इच्छा थी कि जिन विपरीत परिस्थितियों में उसने जिंदगी काटी है बेटे को आगे जाकर दुःख न झेलना पड़े। महिला बहुत गरीब थी और मजदूरी कर बेटे का पालन-पोषण करती थी। वह अलग तरह की महिला थी और ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि केवल वह कमाए और बेटे को नाजों से पाले।

उसका मानना था कि बेटे को मेहनत और संघर्ष की परिभाषा बचपन से सीखाई जाना चाहिए ताकि उसे यह पता चल सके कि संघर्ष कैसे किया जाता है और विपरीत परिस्थितियों से कैसे लड़ा जाता है। वह अक्सर अपने बेटे को अपने मजदूरी के स्थान पर लेकर आती थी। बेटा भी देखता था कि मां कितनी मेहनत करती है और इस मेहनत के कारण ही वह पढ़ाई कर पा रहा है।

मां को मेहनत करता देख बेटे के मन पर जो संस्कार पड़े वह ताउम्र कायम रहे। वह अपने बेटे को कहा करती थी कि बेटा जितना संघर्ष करोगे जीत भी वैसी ही होगी। बेटे ने जबर्दस्त मेहनत की और सुख-सुविधाओं को छोड़ वह बड़ी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। मेहनत अच्छी की थी इस कारण सफलता मिली। मजदूर का बेटा बड़ा अधिकारी बन गया।

बेटा जानता था कि अगर उसने सफलता को सिर चढ़ने दिया तब कुछ भी हो सकता है। वह अपने पैर जमी पर ही रखता था और कोशिश करता था कि ऐसे और जरूरतमंद युवाओं की मदद कर सके। मां अपने संस्कारों को देने में सफल रही और उसने जो सपना देखा था वह पूर्ण हुआ।

दोस्तों हम सफलता प्राप्ति के बाद संघर्ष के रास्ते की याद भी नहीं करते जबकि हमें यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि संघर्ष के दिन याद करने से हम अपने पैरों को जमी पर रख पाते हैं और साथ ी स्वयं में दूसरे ी सहायता करने का भाव पैदा कर पाते हैं।

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