एक वह वक्त था जब हमारे देश में शिष्टाचार, स्वच्छता, विज्ञान जैसे गुणों की कमी नहीं थी। हमारी परिष्कृत आचार संहिता बनी हुई थी। परंतु दूसरी सदी से लेकर 14वीं सदी के मध्य भारत और यूरोप में इसका पतन हुआ। हमने शिष्टाचार को छोड़ दिया, स्वच्छता को नकार दिया और विज्ञान में दकियानूसी बातों को संकलित कर दिया।
14वीं सदी में यूरोप ने खुद को संभाला और आज वे हमसे भी ज्यादा परिष्कृत बन गए हैं। अब समय आ गया है हम भी बदलाव लाएं। मैंने और किरण बेदी ने कुछ ऐसी ही शिष्टाचार और सभ्यता की बात अपनी पुस्तक में लिखी हैं। अनुभवों के आधार पर लेखन करने वाले पवन चौधरी ने बताए बेहतरीन लेखन के गुर :- हम दोनों भी दुखी थे हमें शिष्टाचार की बातों में अंग्रेजों से आँखें चुरानी होती हैं। इस बात से मैं और किरण बेदी दोनों ही दुखी थे। यही सोचते हुए हमने 'ब्रूम एंड ग्रूम' अंग्रेजी में और हिंदी में यही किताब 'कायदे के फायदे' के नाम से लिखी। इसमें शिष्टाचार का पाठ है जिसने हमें भी सुधार दिया। यह पुस्तक व्यक्तित्व विकास में सहायक है। इसके अलावा मैंने 'द आर एक्स फेक्टर' और 'वेन यू आर सिंकिंग बिकम अ सबमरीन' किताब भी लिखी जो कि क्रमशः स्वच्छता, दवाई, बीमारी तथा विवेक जैसे विषय पर आधारित थी। अभ्यास से आती है भाषा मेरा मानना है कि भाषा अभ्यास से ही सीखी जा सकती है। भाषाई ज्ञान से शब्दों का चयन करना सहज और बेहतर हो जाता है। वैश्वीकरण से भाषा कुछ हद तक दूषित हुई है। हिंदी और अंग्रेजी के मिश्रण वाली 'हिंग्लिश' को हिन्दी-अंग्रेजी के नहीं 'हिंग्लिश' के तराजू में तौलकर देखें कि यह कैसी लग रही है और कितनी सही है। भाषा सुधार के लिए आज के युवाओं को ही आगे आना होगा। तब होगा अच्छा लेखन अच्छा लेखक बनने के लिए व्यक्ति में संवेदनशीलता का गुण होना आवश्यक है। वह सहानुभूति नहीं समानुभूति की भावना को समझे। इसके अलावा अनुशासन, मेहनत, धैर्य और रचनात्मकता जैसे गुण भी उसमें होने चाहिए। आज के युवा में अनुशासन और धैर्य की कमी है। यदि ये तमाम गुण हों तब अच्छा लेखन किया जा सकेगा।