आमतौर पर यह धारणा है कि बैचलर ऑफ फार्मेसी या फार्मेसी डिप्लोमा के बाद या तो मेडिकल रिप्रेन्टेटिव बना जा सकता है अथवा कैमिस्ट दुकान का लाइसेंस हासिल किया जा सकता है। फार्मेसी इंडस्ट्री आज विश्वव्यापी तौर पर विशाल उद्योग का रूप धारण कर चुकी है और आने वाले समय में इसके तेजी से बढ़ने की संभावनाएँ विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की जा रही है। देश में तमाम बहुराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल कंपनियों के अमेरिकी एफडीआई से सर्टिफाइड फार्मास्यूटिकल प्लांट्स हैं जहाँ दुनिया में सबसे बढ़िया क्वालिटी की दवाएँ तैयार होती हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में स्वास्थ्य जागरूकता तेजी से बढ़ रही है और अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का भी विस्तार हो रहा है लेकिन इसके बावजूद देश की 70 प्रतिशत आबादी एलोपैथिक दवाओं का प्रयोग नहीं करती है। इसके पीछे अन्य सस्ती जड़ी-बूटियों का सेवन अथवा अन्य औषधीय पद्धतियों का इस्तेमाल करने की परंपरागत सोच को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
ऐसे में यह अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं है कि फार्मा उद्योग के फलने-फुलने की किस हद तक गुंजाइश है। इतना ही नहीं देश की जीडीपी का एक प्रतिशत धन ही फिलहाल स्वास्थ्य के मद पर खर्च होता है जिसे सरकार ने आगामी वर्षों में बढ़ाकर तीन प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे फार्मास्यूटिकल ट्रेनिंग की बैकग्राउंड वाले युवाओं के लिए बड़ी संख्या में अवसर मिल सकते हैं।
फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में सिर्फ बी फार्मा सरीखी डिग्री धारकों को ही जगह नहीं मिलती है बल्कि कैमिस्ट्री, जूलोजी और बॉटनी वाले युवाओं के लिए भी विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। ये अवसर अनुसंधान, शोध और फार्मा प्रोडक्शन से संबंधित हो सकते हैं। लेकिन अन्य क्षेत्रों की भांति मार्केटिंग के ट्रेण्ड लोगों की इसमें अहम् भूमिका होती है, इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
यही कारण है कि देश के कई नामी विश्वविद्यालयों और प्रबंधन संस्थानों में एम बी ए (फार्मा) का कोर्स प्रारंभ किया गया है। जाहिर है कि नामी फार्मा कंपनियों में इन्हें आकर्षक वेतन और अन्य कमीशन व भत्तों के साथ नियुक्त करने की होड़ लगी रहती है। देश के ग्रामीण इलाकों में प्रत्येक फार्मा कंपनी अपनी पकड़ बनाने के लिए बड़ी संख्या में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव और सेल्स एजेन्ट्स भी समय-समय पर एप्वायंट करती रहती है।
फार्मेसी के डिग्री धारकों को सरकारी अस्पतालों और प्राइवेट हास्पीटलों के फार्मा विभागों में भी नौकरियाँ मिल जाती हैं। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद इस प्रकार की नौकरियों में भी कम पैसा नहीं मिलता है। जो युवा अपनी फार्मास्यूटिकल यूनिट शुरू करना चाहते हैं उन्हें भी इसी डिग्री के आधार पर लाइसेंस मिल पाते हैं। यहाँ यह बात ध्यान रखने वाली है कि अमेरिका, यूरोप या जापान की तुलना में हमारे देश में दवाएं न सिर्फ काफी कम लागत में तैयार होती हैं बल्कि सरकारी नीतियों के कारण इन पर टैक्स भी अपेक्षाकृत कम है। जाहिर है निर्यात की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी फायदेमंद कहा जा सकता है।
फार्मास्यूटिकल साइंस में उच्च अध्ययन करने की चाह रखने वालों के लिए विदेशों में स्कॉलरशिप तथा रोजगार के मौके हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त यूनिवर्सिटी अध्यापन और शोध संस्थानों में भी गुंजाइश कुछ कम नहीं है। नामी दवा कंपनियों के रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग में वर्तमान समय में हो रहे विस्तार को देखते हुए बतौर वैज्ञानिक की संभावनाओं की कमी नहीं है। हालाँकि बायोटैक्नोलॉजी की शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं को भी ये कंपनियां विभिन्न प्रकार के कार्यकलापों के लिए लेने की इच्छुक रहती हैं। ऐसे युवा जो किसी कारणवश एमबीबीएस में दाखिला लेने से वंचित रह गए हैं, उनके लिए निस्संदेह फार्मेसी का क्षेत्र करियर निर्माण में काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।