उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हम

- प्रवीण कुमार

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विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान का नाम नहीं है। इससे साफ संकेत मिलता है कि मानव संसाधन के मामले में धनी होते हुए भी उच्च शिक्षा को प्राथमिकता देने में हम बिलकुल अक्षम रहे हैं। क्यूएस टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग के परिणामों के मुताबिक टॉप 500 की सूची में 163वें नंबर पर हमारे आईआईटी, मुंबई का नंबर आता है।

देश के विश्वविद्यालयों में केवल एक, दिल्ली विश्वविद्यालय ही इस सूची में है जिसकी रैंकिंग 291 है। इस सूची से अपने आप जाहिर हो जाता है कि क्यों नस्लीय हमले सहकर भी लोग ऑस्ट्रेलिया में पढ़ते हैं और क्यों हमारे शिक्षा संस्थानों से कोई वेंकटरमण रामकृष्णन नहीं निकलता। देश के शीर्ष केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी डिग्री केंद्रित शिक्षा अर्जन का काम चल रहा है।

आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान भी मेधावी छात्रों के लिए बस अच्छी नौकरी पाने का जरिया बन गए हैं। हमारे यहाँ जो मुट्ठीभर छात्र अनुसंधान कार्यों में संलग्न हैं वे भी मौका मिलते ही कैंब्रिज, हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड या येल विश्वविद्यालय जाने की ताक में रहते हैं।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय हमारे शिक्षण संस्थानों की बेहतरी के लिए जो कुछ कर रहा है, उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। फिर उसके कई कदम उस ओर उठ रहे हैं जो हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों की हालत खस्ता ही करेंगे। कुछ ही दिन हुए जब सादगी के नाटक में इस मंत्रालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों को यह फरमान सुनाया कि वे इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कम करें। इतना ही नहीं विदेश भ्रमणों पर जो अधिकांशतः अनुसंधान पेपर पढ़ने या फिर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शिरकत लेने के लिए होता है, रोक लगाएँ। मंत्रालय ने शैक्षणिक संस्थानों को अनुसंधान से जुड़े उपकरणों और रसायन आदि की खरीद की जिम्मेदारी लेने और विदेशों में अनुसंधान पत्र पढ़ने के लिए स्पांसरशिप भी खुद ढूँढने को कहा है।

इधर विदेशी संस्थान या निजी संस्थान अनुसंधान जैसे क्षेत्र में क्यों पैसा लगाना चाहेंगे? वे तो सीधे-सीधे लाभ के लिए काम करेंगे और सभी को मालूम है कि अनुसंधान जैसे कार्य में पैसा लगाना उनके लिए लाभप्रद सौदा किसी कीमत पर नहीं हो सकता। लेकिन क्या मंत्रालय को भी इसी तर्क पर काम करना चाहिए? जाहिर है कि नहीं।

उच्च शिक्षा या फिर शोध अनुसंधान जैसे कामों में पैसा लगाना देश के बेहतर मानव सूचकांक के लिए बेहद जरूरी है। प्राइवेट सेक्टर से ठीक वैसी ही मदद ली जानी चाहिए जैसे विदेशों में ली जाती है। उन्हें शिक्षण संस्थाओं को गोद लेने के लिए कहा जा सकता है या फिर जो प्राइवेट कंपनी शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक मदद प्रदान करे, उन्हें टैक्स में राहत दी जा सकती है।

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