- जोगिंदर सिंह बहुत-से कायदे-कानून बनाए जाते हैं जिनका उपयोग कोई भी शिक्षा संस्थान खोलते समय किया जाता है। अगर आप कीमत देने को तैयार हैं तो आप इनका पालन किए बिना काम कर सकते हैं। प्रशासनिक या राजनीतिक स्तर पर शिकायत और विरोध करने का साहस कोई इसलिए नहीं करता है कि भले ही उनका मामला कितना ही पाक-साफ क्यों न हो, उसे अटकाया या निरस्त किया जा सकता है।
आप जहाँ भी देखें स्कैंडल और भ्रष्टाचार नजर आएँगे। बिना हथेली गर्म किए कोई काम नहीं होता। अगर आपको कोई काम शुरू करना हो तो जिस व्यक्ति की अनुमति की जरूरत होती है उसकी कुछ न कुछ सेवा करना पड़ती है। वे दिन गए जब फुसफुसाती आवाज में मेज के नीचे से रिश्वत माँगी जाती थी। अब सीधे और खुलकर रिश्वत ली जाती है।
हैदराबाद, भोपाल, चेन्नई और दिल्ली के अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के उच्चाधिकारियों के घर हाल में मारे गए सीबीआई के छापों ने राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा संस्थानों की कलई खोल कर रख दी। एक जाल बिछाए जाने के बाद इसके सदस्य सचिव और एक बिचौलिए को गिरफ्तार कर लिया गया।
हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के दौरे की स्वीकृति के लिए उस बिचौलिए ने सचिव की ओर से बीस लाख रुपए की रिश्वत माँगी थी। सीबीआई का कहना है कि कॉलेज का मालिक पहली किस्त के रूप में पाँच लाख रुपए देने के लिए तैयार था। उसकी शिकायत के आधार पर एक जाल बिछाया गया जिसमें वह बिचौलिया और सचिव रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिए गए।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रमुख और अन्य लोगों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया गया है। अन्य लोगों में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद का एक सलाहकार, एक उप निदेशक और एक क्षेत्रीय अधिकारी तथाकथित रूप से फरीदाबाद और दूसरी जगहों पर इंजीनियरिंग कॉलेज में सीटें बढ़ाने के लिए पैसा माँग रहे थे।
बताया जाता है कि कॉलेज के प्रशासकों ने रिश्वत माँगने पर अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रमुख को इसकी सूचना दी थी लेकिन अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने शिकायतों पर तो कोई ध्यान नहीं दिया, उलटे शिकायत करने वालों को परेशान करने लगे और उन्हें पैसे देने के लिए बाध्य कर दिया। उन्होंने जान-बूझकर 2007-08 में कॉलेज प्रारंभ करने और 2008-09 में उसका विस्तार करने और 2009-10 में सीटें बढ़ाने संबंधी पत्र भेजने में देरी की।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के भोपाल और चेन्नई स्थित क्षेत्रीय कार्यालयों ने तथाकथित रूप से भोपाल में इंजीनियरिंग कॉलेजों की एक श्रृंखला को स्वीकृति दे दी। हालाँकि उन संस्थानों के पास समुचित ढाँचा नहीं था। जो भी सामने आया है वह तो भ्रष्टाचार की सिर्फ एक झलक भर है। क्रमश: ...