शिक्षा में विदेशी दखल को न्योता

-विष्णुदत्त नागर

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने फिर कहा है कि देश में विदेशी विश्वविद्यालयों का स्वागत किया जाएगा। ज्ञान आयोग के अध्यक्ष सैम पित्रौदा की सिफारिशों के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद, साहित्य प्राधिकरण और अन्य शिक्षण संस्थाओं को एक कर विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं को संचालित करने वाला एक राष्ट्रीय आयोग बनाने की बात तो वे पहले ही कर चुके हैं।

याद रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का नाम बदलकर विश्वविद्यालय शिक्षा विकास आयोग रखने की सलाह दी थी। राष्ट्रीय आयोग उसी तरह काम करेगा जैसे निर्वाचन आयोग करता है।

हाल ही में परीक्षा की तैयारी, अँगरेजी भाषा और व्यावसायिक पाठ्यक्रम बेचने वाली "सिल्वान लर्निंग सिस्टम्स" नामक एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के तहत भारत समेत एशिया के विभिन्न देशों में अपने विश्वविद्यालय खोलने का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बनाया है। इस उद्देश्य की शुरुआत उसने निजी स्पेनिश विश्वविद्यालय खरीदकर की।

खरीद इस बात का संकेत है कि यह कंपनी भारत में अपने विश्वविद्यालय ही स्थापित नहीं करेगी बल्कि निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थाओं, मान्यता प्राप्त निजी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा केंद्रों को भी हथियाएगी। उसके मुख्य उद्देश्य होंगे - बाजार की माँग की पूर्ति करना और शैक्षणिक उत्पाद के लिए नया बाजार तैयार करना। वह अपने शिक्षित युवा उत्पादों को ब्रांड नाम तो देगी ही, साथ ही में देश में नई शैक्षणिक "फ्रेंचाइस" सेवा भी शुरू करेगी।

दूसरे शब्दों में देश में नई तरह के "डिग्री मिल" स्थापित होंगे जिनकी विदेशी डिग्री देश में स्थापित विश्वविद्यालयों के साथ बाजार में प्रतिस्पर्धी होंगी। उनका पूरा प्रयास होगा कि वे भारतीय विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक उत्पादों की तुलना में अपने प्रोडक्ट को अच्छा बताएँ और महँगा होने के बावजूद अधिक उपयोगी सिद्ध करें।

ऐसी स्थिति में जबकि उच्च शिक्षा क्षेत्र में विदेशी कंपनियाँ अपने विश्वविद्यालय स्थापित करेंगी, यह आवश्यक हो गया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों की समीक्षा हो और शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने पर अधिक से अधिक ध्यान दिया जाए।

पिछले दिनों अमेरिका के प्रमुख "द वाल स्ट्रीट जर्नल" की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बीस अग्रणी विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय स्थान नहीं ले पाया है। भारत में पहला विश्वविद्यालय स्थापित हुए लगभग 150 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस समय अपने देश में 196 विश्वविद्यालय हैं। उनके तहत 15,437 महाविद्यालयों के माध्यम से उच्च शिक्षा दी जा रही है। आखिर वह इतनी क्यों पिछड़ गई है कि शिक्षा जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही। समाज के कमजोर वर्ग के प्रतिभाशाली युवा विश्वविद्यालयों की मुख्यधारा से अलग-थलग हैं।

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