मिलिए ख्यात शायर राहत इंदौरी से

रूबरू में इस बार मिलिए उर्दू के जाने-माने शायर राहत इंदौरी से, जिनकी शायरी ने हिन्दुस्तान ही नहीं वरन दुनिया के 45 मुल्कों में धूम मचा रखी है। राहत साहब ने अपनी शायरी का जो जादू फिल्मी दुनिया में बिखेरा है, वह वाकई काबिले तारीफ है। वेबदुनिया के भीका शर्मा ने उनके साथ एक खास मुलाकात की। पेश है मुलाकात के खास अंश...

प्रश्न : आपने दस साल की उम्र में ही चित्रकारी करना शुरू कर दिया था?
उत्तर: चित्रकारी कभी भी मेरा शौक नहीं रहा बल्कि मेरा प्रोफेशन रहा या कहें कि मेरी मजबूरी रही। प्रोफेशनल आर्टिस्ट की हैसियत से मैंने नौ बरस की उम्र में ही अपने हाथ में ब्रश थाम लिया था। फिर बरसों तक यही काम करता रहा। इस दौरान मैंने फिल्मों के बैनर्स भी बनाए।

प्रश्न : आपने अपना पहला शेर कहाँ और कब पढ़ा? क्या तब आपने सोचा था कि इसे ही अपना मुकाम बनाना है?
उत्तर : मेरा एजुकेशन का मीडियम उर्दू ही रहा और तब आलम यह था कि जब में उर्दू शायरी की कोई किताब पढ़ता था तो एक बार में ही मुझे पूरी किताब याद हो जाया करती थी। अचानक दूसरे के शेर पढ़ते-पढ़ते मैंने खुद का शेर पढ़ लिया और कब शायर बन गया यह मालूम ही नहीं पड़ा। मैं तो यूँ ही उल्टा-सीधा कुछ लिखा करता था, परंतु बाद में मालूम हुआ कि यही शायरी है और फिर दुनिया ने उस पर मुहर लगा दी। फिर मैं पेंटर से शायर बन गया।

प्रश्न : कॉलेज के जमाने की अपनी शायरी के बारे में बताइए?
उत्तर : 1972-73 में कॉलेज के दौरान ही मैंने मंचों पर शायरी पढ़ना शुरू किया था। पहली बार देवास में किसी मुशायरे में मैंने शायरी पढ़ी थी। उसी के बाद मुझे श्रोताओं की तरफ से ब्रेक मिला। मेरा कभी भी कोई गॉड फादर नहीं रहा। दो साल के भीतर ही मैं पूरे मुल्क में शायरी की वजह से पहचाना जाने लगा।

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प्रश्न : अपनी पहली पाकिस्तान यात्रा के कुछ अनुभव बताइए?
उत्तर : ये लगभग 1986 का दौर था। उससे पहले जंग की वजह से करीब 10 सालों तक भारत-पाक रिश्तों में एक दरार-सी आ गई थी। एक लंबे अंतराल के बाद शायरों का एक दल पाकिस्तान गया, जिसमें कई महान शायर जैसे सरदार कौर, महेंद्रसिंह बेदी, फजा निजामी, प्रोफसर जगन्नाथ आजाद वगैरह थे और मैं इन सबके सामने एकदम नौसिखिया-सा था। आपको जानकर हैरत होगी कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान में पैदा हुआ मुशायरा पाकिस्तान में जाकर खत्म हो चुका था। जब हम वहाँ पहली मर्तबा गए तो कराची में एक क्लब में करीब बीस हजार लोग मौजूद थे। ये जादू तो हिन्दुस्तानी परफार्मर्स का था। हिन्दुस्तानी राइटर्स का था। यानी कह सकते हैं कि मुशायरा पाकिस्तानी जमीं पर हिन्दुस्तान ने बोया है। ये मेरा तजुरबा है।

प्रश्न : दुनिया के किन-किन मुल्कों में आपने शायरी पढ़ी और श्रोताओं में आपने क्या अंतर पाया?
उत्तर : दुनिया के किसी भी मुल्क में जाइए, शायरी को सुनने वाले तो एक समान ही हैं। चाहे वो आजमगढ़ में सुनी जाए या लखनऊ, हैदराबाद में या फिर न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी में या नार्वे में क्योंकि श्रोता हिन्दुस्तानी या पाकिस्तानी होते हैं। इसलिए वे चाहे जहाँ भी जाकर बस जाएँ परंतु उनके सोचने का तरीका, माहौल, रहन-सहन और उनकी तहजीब अपने सीने से लगाए होते हैं। बस एक फर्क होता है कि बाहर के देशों में श्रोताओं की संख्या कम होती है।

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में हमने अपने सामने एक लाख श्रोताओं को घंटों शायरी सुनते हुए देखा है। वे शायरी के दीवाने होते हैं। मैं करीब 40-45 मुल्कों में जा चुका हूँ।

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प्रश्न : आपने फिल्मों की तरफ कैसे रुख किया?
उत्तर : मुझे फिल्मों से कोई विशेष लगाव नहीं रहा। गुलशन कुमार कोई फिल्म बना रहे थे 'शबनम' और मेरी एक शायरी की दो पंक्तियाँ उनकी फिल्म की थीम पर एकदम फिट बैठ रही थीं। उनके कई दफा संदेश भेजने पर मैं मुंबई गया। उन्होंने एक ही हफ्ते में मेरे 14 गाने अनुराधा की आवाज में रिकॉर्ड कर 'आशियाना' नामक एलबम तैयार किया था। वहीं मेरी मुलाकात अनु मलिक से भी हुई और आज भी उनसे जुड़ा हुआ हूँ परंतु मैं वहाँ अपनी शर्तों पर काम करता हूँ। और सच कहूँ तो मैंने फिल्मों में काम मिलने के लिए कभी स्ट्रगल नहीं किया। महेश भट्ट के साथ भी काफी फिल्में की हैं। मेरी उनके साथ पहली फिल्म 'सर' थी।

प्रश्न : आपने किस-किस फिल्मों के लिए गाने लिखे?
उत्तर : मेरी करीब 33 फिल्में रिलीज हुई हैं, जिसमें से दस फिल्में ऐसी हैं जो गोल्डन जुबली हुईं। 'इश्क', 'मुन्नाभाई एमबीबीएस', 'खुद्दार', 'मैं ‍खिलाड़ी तू अनाड़ी', 'मिशन कश्मीर' और 'मर्डर' ये सभी फिल्में लोगों ने पसंद की। मुन्नाभाई के तो सभी गाने बहुत हिट हुए थे।

प्रश्न : आपने शायरी में इतना नाम कमाया है तो क्या आप ये विरासत अपने बच्चों को सौंपेंगे?
उत्तर: देखिए! ये राजनीति नहीं कि मैं सीएम हूँ तो अपने बेटे को ये सीट देकर जाऊँ। ये कला मुझे खुदा की देन है। ये देखा गया है कि जैसे-जैसे विज्ञान तरक्की करता है साहित्य पिछड़ता जाता है। में बहुत जिम्मेदारी से यह बात कह रहा हूँ कि साहित्य की ये आखिरी बहार है क्योंकि ये देखने में आया है जो बच्चे साहित्य में एमए कर भी लेते हैं तो उन्हें नौकरी मिलना कठिन है।

शायरी में पैसे की पैदावार होने वाला जमाना अब खत्म होने वाला है। अब फिल्मों में भी शायरी की कोई हैसियत नहीं रही। इसलिए मैं यह बिलकुल नहीं चाहता कि अपनी आने वाली नस्लों को उस ओर धकेल दिया जाए, जहाँ का सफर अंधरकारमय हो।

प्रश्न : बावजूद इसके आप नए जमाने के शायरों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर : मैंने तो कहा ही है कि ये आखिरी बहार है और इसे संभालने वाले जो लोग हैं उनका यह फर्ज वो निभा रहे हैं। वे चाहते हैं कि जो शायरी की आखिरी पंक्ति भी उनकी कलम से निकले वो सेहतमंद हो। समाज के लिए संदेश देने वाली हो।

प्रश्न : आपके मनपसंद शायर कौन हैं?
उत्तर : पढ़ा तो सभी को है, परंतु दो चार जंक्शन आते हैं, जहाँ रुकना होता है। पहला जंक्शन जो है वह गालिब हैं। जहाँ बहुत रुककर आगे की ओर बढ़ना पड़ता है। फिर करीब सौ साल बाद एक और जंक्शन आता है फिराक गोरखपुरी के रूप में। शायरी के क्षेत्र में दो बड़े शायर होने में एक सदी यानी करीब सौ बरस का अंतराल आ जाता है। उसके बाद हमारा दौर आया जिसमें कई महान शायर हुए। मैं भी साँस ले रहा हूँ। बड़ी शायरी के लिए एक सदी का अंतर होना चाहिए तब हम बता सकते हैं कि कालिदास से लेकर महादेवी वर्मा तक या निराला तक कितने जंक्शन हैं।

प्रश्न : नए जमाने के शायरों में कोई ऐसे शायर हैं, जिनके काम की आप सराहना करना चाहेंगे?
उत्तर : इस दौर में काफी अच्छे लोग हैं, जैसे- कराची के अहमद मुश्ताक, लाहौर के जफर इकबाल, जुबे रिज्मी इत्यादि लोगों के बगैर हम इस दौर की बात नहीं कर सकते।

प्रश्न : वेबदुनिया के पाठकों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर : तेज रफ्तार दुनिया के साथ आप भी बड़ी तेजी से सफर कर रहे हैं। मुझे बाहरी मुल्क में जाकर पता चलता है कि हमारी हर जानकारी इंटरनेट के जरिए दुनिया के कोने-कोने तक पहुँच चुकी है। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आपकी वेब‍दुनिया समाज की खूब खिदमत करे।