ईसा ने यूहन्ना से दीक्षा ले ली। यूहन्ना की बातों पर उन्होंने गहराई से चिंतन और मनन किया और अंत में निश्चय किया कि हमें प्रभु की इच्छा के अनुसार प्रभु की सेवा करनी चाहिए। इसके बाद प्रभु ईसा जगह-जगह प्रवचन करने लगे। उनके त्याग, सेवा और समर्पण की भावना से ईसा की प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी, बारह लोग ईसा के शिष्य बने।