पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव ने पीटीआई से कहा कि ज्यादातर टीकों के लक्षित क्षेत्र के भीतर कम से कम 30 उत्परिवर्तन के साथ ओमिक्रॉन फैलने से और टीके से उत्पन्न एंटीबॉडीज के इस पर असर न होने से इसका प्रसार बढ़ा तथा फिर से संक्रमण फैला। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अन्य मान्यता प्राप्त टीकों के मामले में भी वायरस के चिंताजनक स्वरूप (वीओसी) पर एंटीबॉडी का असर कम होने की खबरों ने दुनियाभर में चिंता पैदा की।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और कोवैक्सीन के निर्माता भारत बायोटेक ने यह अध्ययन जनवरी में किया था और इसके नतीजे 24 मार्च को जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन में प्रकाशित हुए। एनआईवी के एक अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गजानन सकपाल ने कहा कि अध्ययन में शामिल जिन लोगों को बूस्टर खुराक दी गई, उनमें बी.1 और वीओसी -डेल्टा, बीटा और ओमिक्रॉन स्वरूपों के लिए एंटीबॉडी प्रतिक्रिया अधिक देखी गई।
उन्होंने कहा कि इससे यह संकेत मिलता है कि कोवैक्सीन की बूस्टर खुराक विषाणु को निष्प्रभावी करने संबंधी एंटीबॉडी प्रतिक्रिया पैदा करती है और प्रभावी तरीके से सार्स-सीओवी-2 के कई स्वरूपों को नष्ट कर देती है। सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की कि 18 साल से अधिक आयु के लोग 10 अप्रैल से निजी टीकाकरण केंद्रों पर कोविड-19 रोधी टीके की एहतियाती खुराक ले सकते हैं।