संयुक्त राष्ट्र की राजनीतिक प्रमुख रोजमैरी डिकार्लो और संयुक्त राष्ट्र के मानवतावादी मामलों के प्रमुख मार्क लोकॉक ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने महामारी के कारण दुनियाभर में पड़ने वाले असर की गंभीर समस्या के बारे में बात की। इस वैश्विक महामारी के कारण दुनियाभर में 8,60,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 2 करोड़ 60 लाख से अधिक लोगों के इससे संक्रमित होने की पुष्टि हुई है।
लोकॉक ने परिषद को सचेत किया कि कमजोर देशों में कोविड-19 संकट की वजह से आर्थिक एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण गरीबी बढ़ेगी, औसत आयु कम होगी, भुखमरी बढ़ेगी, शिक्षा की स्थिति खराब होगी और अधिक बच्चों की मौत होगी।
लोकॉक ने कहा कि संक्रमण के लगभग एक तिहाई मामले मानवतावादी या शरणार्थी संकटों से जूझ रहे देशों या कमजोर देशों में सामने आए हैं, लेकिन ये देश महामारी से असल में कितने प्रभावित हैं, इस बात का अभी पता नहीं चल पाया है। इसका कारण यह है कि इन देशों में जांच कम हो रही है, कुछ स्थानों पर लोग मदद नहीं मांगना चाहते, क्योंकि उन्हें शायद क्वारंटाइन में रहने की आशंका है या उन्हें इस बात का डर है कि उन्हें उपयोगी चिकित्सकीय उपचार नहीं मिलेगा।
उन्होंने कहा कि एक अच्छा समाचार यह है कि इन देशों में कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या आशंका से कम है, लेकिन इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव कहीं अधिक हैं। डिकार्लो ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने महामारी के दौरान जीवन रक्षा सहायता पहुंचाने के लिए वैश्विक स्तर पर संघर्षविराम की 23 मार्च को जो अपील की थी, उसे शुरुआत में उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली और कोलंबिया एवं यूक्रेन से लेकर फिलीपीन और कैमरून ने अस्थायी संघर्षविराम घोषित किया, लेकिन इनमें से कई संघर्षविरामों की अवधि विस्तार नहीं दिए जाने के बाद समाप्त हो गई और जमीनी स्तर पर खास अंतर नहीं आया। उन्होंने कहा कि महामारी में मानवाधिकार संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।
डिकार्लो ने कहा कि महामारी के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस दौरान नफरत फैलाने वाला भाषण भी बढ़ा है, खासकर प्रवासियों और विदेशियों के खिलाफ। (भाषा)