Covaxin और covisheild में क्या है अंतर, सीधे डॉक्टर से जानें
मंगलवार, 13 अप्रैल 2021 (10:38 IST)
सुरभि भटेवरा,
कोरोना वायरस महामारी एक बार फिर से देश-दुनिया में तेजी से फैलती जा रही है। इससे बचाव के लिए पूरी दुनिया में रिसर्च का काम जारी है। वैक्सीन बनाई जा रही है, वैक्सीन बनने के बाद वह कितनी कारगर है इस पर भी लगातार शोध किया जा रहा है। तो आइए आपको बताते हैं कोवैक्सीन और कोविशील्ड में क्या अंतर है। इसे लेकर डॉक्टर्स से भी खास चर्चा की गई है कि कौन-सी वैक्सीन बेहतर है? तो आइए जानते हैं -
डॉ विनोद भंडारी, अरबिंदो कॉलेज के चेयरमैन ने इस बारे में वेबदुुनिया को बताया कि शुरूआती दौर में कोविशील्ड का रिस्पॉन्स काफी बेहतर था लेकिन अब जितना आब्जर्व किया गया है दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन बेहतर है,
1. वैक्सीन किसने बनाया है?
कोवैक्सीन - कोवैक्सीन एक स्वदेशी वैक्सीन है। इसे भारत बायोटेक ने आईसीएमआर यानि की इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और पुणे स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरलॉजी के साथ मिलकर बनाया है। भारत बायोटेक इसे बेच रही है। एनआईसी और आइसीएमआर ने मिलकर इसे बनाया है।
कोविशील्ड - कोविशील्ड वैक्सीन को विदेशी कंपनी के साथ मिलकर बनाया गया है। इसे ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और अस्त्राजनेका ने मिलकर बनाया है। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा इसे प्रोड्यूस और ट्रायल किया गया है।
2. वैक्सीन बनाने की तकनीक में क्या अंतर है -
कोवैक्सीन - यह स्वदेशी वैक्सीन है। इसे भारत में ही विकसित किया जा रहा है। इसमें कोरोना वायरस को निर्जिव बनाकर उस वैक्सीन को बनाया जाता है। और जब आपके शरीर में इंजेक्शन के द्वारा जाती है तो निर्जिव वायरस के सामने एंटी बॉडीज तैयार होने लगती है। वह वायरस को रोकने में मदद करती है।
कोविशील्ड - यह वैक्सीन विदेशी सहायता की मदद से विकसित किया गया है। सामान्य जुकाम का एडेनोवायरस वायरस चिपांजी से लिया गया है। और उस वायरस के अंदर बदलाव कर उसे बनाया गया है। ताकि वह कोरोना वायरस जैसा लगे। हालांकि यह काफी पेचिदा तरीके से बनाया गया है। एडेनोवायरस चिंपैंजी के जुकाम का वायरस होता है। उस वायरस का सहारा लेकर कोविशील्ड वैक्सीन विकसित किया है। वैक्सीन लगाने पर कोरोना वायरस के सामने एंटीबॉडीज तैयार हो जाती है और इम्यून सिस्टम की वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
3. कौन सी वैक्सीन ज्यादा प्रभावी है?
कोवैक्सीन - डॉ. भारत रावत ने बताया कि भारत में निर्मित यह वैक्सीन को जब ऑब्जर्व किया गया तो यह कोविशील्ड से अधिक इफेक्टिव रही है।
कोविशील्ड - कोविशील्ड करीब 70 से 80 फीसदी इफैक्टिव है। हालांकि डब्ल्यूएचओ द्वारा कोविशील्ड कई सारे देशों में अप्रूव किया है। इससे इस वैक्सीन की बिक्री भी अधिक हो रही है। इसकी ऐफिकेसी को अप्रूव किया है। यह बात अलग है कि यह प्रोसेस से तैयार किया गया है।
4. ऐफिकेसी रेट किसका बेहतर है?
यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है। यह संभव है कि एक वैक्सीन दूसरी वैक्सीन से कुछ प्रतिशत ज्यादा एंटीबॉडीज बनाएं। लेकिन उससे कोई नहीं पड़ेगा। आज के वक्त में हॉस्पिटल्स में सबसे अधिक मरीज वहीं है जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है या कुछ समय पहले ही लगी है।
5. दोनों वैक्सीन के डोज में अंतर?
यह दोनों कंपनीज में समानता है कि इनके 2 डोज है। पहला डोज लेने के बाद 4 सप्ताह का अंतर होना चाहिए।
यह दोनों वैक्सीन को लेकर कुछ सामान्य अंतर था वह ऊपर बता दिया गया है। लेकिन मुख्य रूप से जानना यह अधिक जरूरी है कि इन दोनों में कौन सी वैक्सीन बेहतर हैं डॉ. भरत रावत ने बताया -
आपके पास जो वैक्सीन उपलब्ध हो जाएं आप वह लगवा लीजिए। इसका कोई प्रमाण नहीं है कि कौन - सी बेहतर है। क्योंकि सभी का बॉडी टाइप अलग- अलग होता है। दोनों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। इसलिए मैं अपने पाठकों को भी यही कहना चाहूंगा कि जो वैक्सीन आपके पास उपलब्ध है आप उसे लगवा लीजिए। इस पर चर्चा नहीं होना चाहिए। दोनों में यहीं अंतर है कि अलग - अलग तकनीक से बनाई गई। यह दोनों काफी इफैक्टीव है इसलिए मान्यता दी गई है।