गीता रामजी : Corona ने छीनी एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक

रविवार, 5 अप्रैल 2020 (13:24 IST)
नई दिल्ली। देश दुनिया में कोरोना वायरस (Corona virus) के कहर के बीच पिछले दिनों गीता रामजी की मौत की खबर आई, जो दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी/ एड्स की रोकथाम के प्रभावी उपायों की खोज में जुटी थीं। यह अपने आप में एक दुखद संयोग है कि एक लाइलाज बीमारी का इलाज तलाश कर रही दुनिया की जानी मानी वायरोलॉजिस्ट को एक दूसरी लाइलाज बीमारी ने अपना शिकार बना लिया।

8 अप्रैल 1956 को युगांडा की राजधानी कंपाला में जन्मी गीता को 1970 के दशक में तानाशाह इदी अमीन द्वारा एशियाई लोगों को देश से निकालने पर निर्वासन का दंश झेलना पड़ा और वह भारत वापस लौट आईं। भारत में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित यूनीवर्सिटी ऑफ संडरलैंड चली गईं।

यहां पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी युवक प्रवीण रामजी से हुई, जिनसे बाद में उन्होंने विवाह कर लिया। अफ्रीका से उनका पुराना नाता था या उनकी नियति कि 1981 में रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान में बीएससी (ऑनर्स) के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने पति के साथ दक्षिण अफ्रीका चली गईं।

अपने एक पुराने इंटरव्यू में गीता ने बताया था कि उनके लिए वह बहुत कठिन समय था। उन दिनों रंगभेद कम तो हुआ था, लेकिन समाप्त नहीं हो पाया था और भारत जैसे बहुसांस्कृतिक समाज और इंग्लैंड जैसे खुले समाज में रहीं गीता के पति का परिवार ट्रांसवाल जैसे इलाके में रहता था, जहां इनसान की पहचान सिर्फ उसके रंग से की जाती थी।

उस माहौल में गीता को घुटन होती थी और वह इस बात को कभी स्वीकार ही नहीं कर पाईं कि किसी इनसान की पहचान सिर्फ उसकी चमड़ी का रंग कैसे हो सकता है। यही वजह रही कि एक बेहतर माहौल की तलाश में युवा दंपति डरबन चला आया और उन्हें एक स्थानीय अस्पताल में नौकरी मिल गई और जिंदगी ढर्रे पर चलने लगी। इस दौरान उनके दो पुत्र हुए और उन्होंने मास्टर्स करने के बाद पीएचडी भी की।

दो बच्चों को संभालना और उसके साथ पीएचडी करने का समय गीता के लिए बहुत मुश्किल था। पीएचडी पूरी करने के बाद वह कुछ दिन आराम करना चाहती थीं, लेकिन अपने काम से पूरी तरह दूर भी नहीं होना चाहती थी, लिहाजा उन्होंने महिलाओं में होने वाले एक खास तरह के एड्स और एचआईवी संक्रमण की एक छोटी परियोजना पर कुछ दिन के लिए काम किया और इस दौरान वह यौनकर्मियों से भी मिलीं। 90 के दशक के मध्य में गीता ने जब यौनकर्मियों की जिंदगी को करीब से देखा तो पता चला कि उनमें से 50 प्रतिशत को एड्स था।

गीता ने 1994 में बच्चों को होने वाली किडनी की बीमारियों पर पीएचडी की थी, लेकिन उसके बाद महिलाओं में एड्स और एचआईवी के संक्रमण की भयावह स्थिति ने उन पर ऐसा असर डाला कि उन्होंने दुनियाभर में फैली इस महामारी की रोकथाम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और जीवनभर इसी दिशा में कार्य करती रहीं।

गीता रामजी को एचआईवी की रोकथाम में शोधकर्ता के तौर पर दुनियाभर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था और 2018 में उनकी तमाम उपलब्धियों के लिए उन्हें यूरोपीय और विकासशील देशों के क्लिनिकल ट्रायल पार्टनरशिप से 'उत्कृष्ट महिला वैज्ञानिक' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दुनिया की जानी-मानी वायरोलॉजिस्ट (विषाणु विज्ञान विशेषज्ञ) गीता रामजी की 31 मार्च को दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। 

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