इस समूह में पब्लिक इंटरेस्ट टेक्नोलॉजिस्ट तेजेश जीएन, सामाजिक कार्यकर्ता कनिका शर्मा और जिंदल ग्लोबल स्कूल ऑफ लॉ में सहायक प्रोफेसर अमन शामिल हैं। इस समूह का दावा है कि 19 मार्च से ले कर 2 मई के बीच 338 मौतें हुईं है और ये लॉकडाउन से जुड़ी हुई हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 80 लोगों ने अकेलेपन से घबराकर और संक्रमित पाए जाने के भय से खुदकुशी कर ली। इसके बाद मरने वालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है प्रवासी मजदूरों का। बंद के दौरान जब ये अपने घरों को लौट रहे थे तो विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में 51 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। विड्रॉल सिम्टम्स (शराब नहीं मिलने से) से 45 लोगों की मौत हो गई और भूख तथा आर्थिक तंगी से 36 लोगों की जान गई।
शोधकर्ताओं ने एक बयान में कहा कि संक्रमण से डर से, अकेलेपन से घबराकर, आने-जाने की मनाही से बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्याएं की हैं।
पृथक केन्द्रों में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने संक्रमण के भय से, परिवार से दूर रहने की उदासी जैसी हालात में आत्महत्या कर ली अथवा उनकी मौत हो गई। इस समूह ने समाचार-पत्रों, वेब पोर्टलों और सोशल मीडिया की जानकारियों को मिलाकर ये आंकड़े तैयार किए हैं। (भाषा)