विश्व कप और भारत का नाम जुबाँ पर आते ही 25 जून 1983 की वह तारीख जेहन में घूम जाती है, जब कपिल देव की अगुवाई वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर प्रुडेंशियल विश्व को चूमा था।
विश्व कप के हर प्रसंग पर 'कपिल देव' की सेना का 24 बरस पहले किया कारनामा याद आना लाजमी भी है, क्योंकि यही कारनामा हर विश्व कप में भारतीय टीम को प्रेरित भी करता है। यह बात अलग है कि 2007 में वेस्टइंडीज में खेले गए विश्व कप में भारतीय टीम ने निहायत दोयम दर्जे का प्रदर्शन किया और वह पहले दौर में ही बाहर हो गया। हैरत तो उस वक्त हुई जब 2003 के विश्व कप का उपविजेता भारत बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम पर के सामने हथियार डाल बैठा।
2007 के विश्व कप की कड़वी यादों को याद करने के बजाए 1983 के उस कपिल देव को याद करें, जिन्होंने भारतीय टीम को प्रुडेंशियल विश्व कप जितवाकर ही दम लिया था। कपिल वाकई उस विश्व कप के नायक रहे थे।
इसमें कोई शक नहीं कि क्रिकेट के मैदान पर कुछ बल्लेबाज ऐसी यादगार पारी खेल देते हैं, जो उन्हें अमर कर देती है। उस पारी के जरिए वे मैच की तस्वीर बदल देते हैं। उस एकमात्र पारी के जरिए वह बल्लेबाज इतनी शोहरत पा लेता है, जितनी अपने कॅरियर में भी नहीं पा सकता। लोग बरसों तक उस पारी की याद संजोए रखते हैं और वह पारी ऐतिहासिक हो जाती है।
कपिल के अलावा विश्व कप में कई यादगार पारियाँ अब तक नहीं भुलाई गई हैं। 1975 के फायनल में क्लाइव लॉयड के शानदार 102 रन, 1979 के फायनल में कोलिस किंग द्वारा बनाए गए 86 रन, 1987 में विव रिचर्ड्स द्वारा श्रीलंका के खिलाफ बनाए गए 181 रन, 1992 में इंजमाम द्वारा सेमीफायनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ बनाया गया धुआँधार अर्द्धशतक और पिछले विश्व कप के फाइनल में रिकी पोटिंग का शतक (140 रन 8 छक्के) आज भी नहीं भुलाया जा सका है।
ऐसी ही एक पारी खेली थी भारत के महान हरफनमौला कपिल देव ने। 18 जून, 1983 को तीसरे विश्व कप के अंतर्गत टेंटब्रिज वेल्स में भारत तथा जिम्बॉब्वे के बीच मुकाबला था। इस मैच के प्रति दर्शकों में कोई उत्साह नहीं था, क्योंकि जिम्बॉब्वे को उस समय टेस्ट टीम का दर्जा प्राप्त नहीं था और एक दिवसीय क्रिकेट के नजरिए से भारतीय टीम की गिनती बेहद कमजोर टीमों में होती थी।
दो निम्न दर्जे की टीमों के बीच होने वाले मुकाबले को देखने थोड़े-बहुत दर्शक जमा थे, लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि वे अत्यंत भाग्यशाली हैं और थोड़ी देर बाद कपिल देव उनके सामने इतिहास रचने वाले हैं।
भारतीय टीम पर पहले बल्लेबाजी करने की जिम्मेदारी आई। महानतम बल्लेबाज सुनील गावसकर जिम्बॉब्वे के कमजोर आक्रमण के सामने बिना खाता आउट हो गए। श्रीकांत ने भी अपने साथी का साथ निभाते खाता नहीं खोला। अब तो लाइन लगने लगी। मोहिन्दर अमरनाथ (5), संदीप पाटिल (1), यशपाल शर्मा (9) पैवेलियन कूच कर चुके थे और भारत का स्कोर था 17 रन पर 5 विकेट।
मैदान के बीच कपिल देव तथा रोजर बिन्नी जैसे गेंदबाज हाथ में बल्ला थामे खड़े थे। सारे विशेषज्ञ बल्लेबाज जिम्बॉब्वे के गेंदबाजों की गेंदें समझ नहीं पाए थे। जिम्बॉब्वे जैसी टीम के खिलाफ भारत का दयनीय प्रदर्शन देख दर्शकों में खलबली मच गई। सभी को आश्चर्य हो रहा था और चर्चा चल पड़ी थी कि विश्व कप स्पर्धा का न्यूनतम योग 45 रन जो कि कनाडा ने बनाया था, क्या भारत उसे पार कर सकेगा?
कपिल और बिन्नी की पहली प्राथमिकता विकेट पर रुकने की थी, फिर चाहे रन बने या नहीं बने। लेकिन कपिल तो कपिल ठहरे, विकेट पर वे हो और रन नहीं बने, ऐसा होना तो मुश्किल है। फिर भी कपिल ने अपने आप पर नियंत्रण रखा और चुनिंदा स्ट्रोक्स ही खेले। दोनों ने निहायत ही जिम्मेदारी से बल्लेबाजी करते हुए 60 रनों की साझेदारी की। बिन्नी (22 रन) के आउट होने के बाद शीघ्र ही रवि शास्त्री (1) भी आउट हो गए।
78 रन पर 7 विकेट के स्कोर पर कपिल का साथ देने मदनलाल आए। मदनलाल जुझारू खिलाड़ी हैं और वे बखूबी खेलने लगे। कपिल ने भी अपने कँधे खोल दिए और गेंदों को वे पीटने लगे। कपिल के चमकदार स्ट्रोकों ने दर्शकों में उत्साह जगा दिया। कपिल को गेंद फुटबॉल के शक्ल में दिखाई दे रही थी।
देखते ही देखते जिम्बॉब्वे के गेंदबाज कपिल के सामने निष्प्रभावी होने लगे थे। उनकी तमाम कोशिशें नाकाम सिद्ध हो रही थीं। कपिल के तेज-तर्राट शॉट क्षेत्ररक्षकों को भेदते हुए जा रहे थे। क्षेत्ररक्षकों की हारत तो यह थी कि उन्हें अपनी जगह से हिलने के मौका भी नहीं मिल पा रहा था। वे सिर्फ गेंद को जाते हुए देख रहे थे।
कपिल उस दिन किसी चमत्कारिक 'देव' से कम नहीं लग रहे थे। मदनलाल ने आउट होने के पूर्व कपिल के साथ मिलकर 68 रन जोड़े। हालाँकि मदनलाल ने 17 रन ही बनाए, किन्तु ये योगदान बहुत मूल्यवान था।
कपिल के नए जोड़ीदार थे विकेटकीपर सैयद किरमानी। किरमानी ने अपना छोर बचाने के कार्य को बखूबी अंजाम दिया। कपिल की धुआँधार बल्लेबाजी का सिलसिला जारी था। 50 रन, 100 रन, 150 रन, सारे मील के पत्थरों को छूते वे आगे बढ़ते जा रहे थे। उनका रौद्र रूप देख गेंदबाज सहम गए थे। चौकों-छक्कों की बरसात हो रही थी।
ऐसा लग रहा था कि कपिल किसी क्लब स्तरीय गेंदबाजों का सामना कर रहे हों। उस दिन कपिल को कोई आउट नहीं कर सकता था। कपिल ने ग्लेन टर्नर के एक दिवसीय क्रिकेट के सर्वोच्च स्कोर 171 रन को भी पार कर दिया। उन्होंने अविजित 175 रन बनाकर नया विश्व कीर्तिमान बना दिया था।
कपिल और किरमानी (24 रन) ने मिलकर नौंवे विकेट के लिए अविजित 126 रन जोड़े। भारतीय टीम ने 266 रन बनाए, जिसमें से 175 रन कपिल के थे। कपिल ने 17 चौके और छः गगनचुंबी छक्के लगाए। कपिल जब पैवेलियन लौटे तो उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। दर्शकों के तालियों बजा-बजाकर हाथ दुःखने लगे थे और चिल्ला-चिल्लाकर गला बैठ गया था।
कपिल ने विकट परिस्थितियों के भँवर में फंसी भारतीय टीम को अपने शक्तिशाली कँधों के जरिए उबार लिया। बाद में जिम्बॉब्वे को 235 रनों पर सीमित कर भारत ने मैच जीत लिया, लेकिन सभी जानते थे कि यह मैच कपिल ने जीता। मैच ही नहीं, उन्होंने हर भारतवासी के दिल को जीता और इसी जीत की बदौलत भारत ने विश्व कप जीता।
कमी सिर्फ एक बात की रह गई कि कपिल की उस 175 रनों की ऐतिहासिक पारी को किसी भी वीडियो में कैद नहीं किया गया। यहाँ तक कि अधिकारिक वीडियो में भी कपिल की यह पारी नहीं है।