सुकून की 'मिट्टी' भी नहीं मिली वूल्मर को

सीमान्त सुवीर

सोमवार, 4 जून 2007 (01:31 IST)
क्या आपको ताज्जुब नहीं होता कि लंदन की जिस ख्यात स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती हो, उसी पुलिस का जासूस आज जमैका की राजधानी किंग्सटन का पुलिस उपायुक्त है और करीब 1 महीने 8 दिन बीतने के बाद भी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कोच बॉब वूल्मर की हत्या की गुथ्थी को नहीं सुलझा सका है।

वूल्मर की मौत 18 मार्च को हुई थी और 25 अप्रैल की की देर शाम तक इस हत्याकांड पर बड़ी सफाई के साथ लीपापोती की कवायदें जारी थीं। जिस 'हाई प्रोफाइल' हत्याकांड पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं, जिस जधन्य अपराध पर अंतररराष्ट्रीय मीडिया गिद्ध दृष्टि रखे हुए है और जो खेल प्रेमी वूल्मर की हत्या का सच जानने के लिए बेकरार हैं, उन्हें कितनी चतुराई से मूर्ख बनाया जा रहा है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। कभी मीडिया को यह जानकारी मिलती है कि वूल्मर को साँप का जहर देकर मारा गया और अगले दिन मार्क पुलिस उपायुक्त शील्ड्स इस आरोप को सिरे से नकार देते हैं।

क्या पुलिस उपायुक्त शील्ड्स वूल्मर कांड का सच नहीं जानते? क्या मजबूरियाँ है कि वे इतने दिन गुजरने के बाद भी वूल्मर की हत्या के सच को दुनिया के सामने नहीं ला रहे हैं। वह कौनसा दबाव है, जिसकी वजह से 58 साल के अंग्रेज बॉब वूल्मर का शरीर अब तक सुपुर्द-ए-खाक नहीं हुआ है? वूल्मर की मौत का जिस तरह से मजाक बनाया जा रहा है, उससे साबित होता है कि क्रिकेट में सट्टेबाज, कूटनीतियाँ और देश की प्रतिष्ठा कितना असर रखती हैं, कितनी दमदार हैं।

वूल्मर ने भारत के कानपुर शहर के एक अस्पताल में 14 मई 1948 को अपनी आँखें खोली थी, लेकिन बाद में वूल्मर का परिवार इंग्लैंड चला गया। हिन्दू रिवाज के अनुसार इंसान की मौत के बाद जितनी जल्दी हो, शव को पंचतत्व में लीन कर दिया जाता है लेकिन वूल्मर का शरीर दो गज जमीन का रास्ता अब तक नाप नहीं पाया है, वह भी पूरे 11 दिन बाद। यहाँ बहादुर शाह जफर का वह शेर याद रहा है -

कितना है बदनसीब जफर दफन के लिए
दो गज जमीं भी नहीं मिली कू-ए-यार (वतन) में

वूल्मर का जन्म भारत में हुआ और कर्मकांड इंग्लैंड में। पहले वे इंग्लैंड के लिए खेले, काउंटी टीम के कोच बने और फिर अफ्रीकी क्रिकेटरों को क्रिकेट की तालीम देने की ठानी। 1999 में उन्होंने क्रिकेट में लेपटॉप के जरिए आधुनिक तकनीक लाई और फिर 2004 से पाकिस्तान के कोच बन बैठे। विश्व कप में पाकिस्तान की हार के साथ ही 18 मार्च को वूल्मर जिन्दगी की लड़ाई भी हार गए। अब उनका पार्थिव शरीर किंग्सटन में है, जबकि केप टाउन में पत्नी और दो जवान बेटे शव आने की राह केप टाउन में तक रहे हैं।

वूल्मर की हत्या के बाद उनके शरीर के न जाने कौन-कौनसे हिस्से को तोड़ा-फोड़ा गया होगा। डॉक्टरों की टीम ने सच जानने के लिए न जाने कितने प्रयोग किए होंगे, लेकिन वे अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उनकी मौत कैसे हुई, कब हुई, जहर दिया गया था या नहीं, गला घोंट के मारा या फिर सामान्य मौत मरे।

सार्वभौमिक सच है कि हर इंसान को एक ना एक दिन मौत का निवाला बनना है लेकिन कोई नहीं चाहेगा कि उसकी मौत का कोई तमाशा हो, जैसा की वूल्मर की मौत पर हो रहा है। यानी इंसान मरने के बाद भी मिट्टी में अब तक मिल नहीं पाया है। कबीर का दोहा याद कीजिए -

माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रौंधे मोय
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंधूगी तोए

वूल्मर की आत्मा तो पल भर में न जाने कौनसे शिशु में आ गई होगी, लेकिन शरीर अब तक दफन होने का इंतजार कर रहा है। वाकई अजीब तमाशा बन गया है वूल्मर की इस मौत का, जिसे लंबे समय तक भुलाया नहीं जा सकेगा। आश्चर्र्य तो इस बात का होना चाहिए कि पाँच सितारा होटल पेगसस की जिस 12वीं मंजिल पर हत्या हुई, वहाँ लाबी से लेकर कमरे तक में शॉर्ट सर्किट कैमरे लगे हुए थे, जिसके जरिए गुनाहगार को 48 घंटों में ढूँढ निकाला जा सकता था, लेकिन पुलिस के बयान और डॉक्टरों की रिपोर्ट इस हत्याकांड को ठंडे बस्ते में डालने पर लगी हुई है।

पहले पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर शक किया जाता है और बाद में उन्हें 'क्लीन चिट' दे दी जाती है, होटल में तीन संदिग्ध पाकिस्तानियों पर शक की सुई उठती है और बाद में उन्हें भी शक के दायरे से बाहर कर दिया जाता है। आखिर जमैकन पुलिस चाहती क्या है? साफ है कि कई महीनों बाद भी वूल्मर की हत्या का सच शायद ही उजागर हो।

भारत-पाकिस्तान के विश्व कप में ताजिए उठने की वजह से आयोजक और आईसीसी की नींद पहले ही हराम हो गई है। अब यदि वूल्मर का सच सामने आ जाता है विश्व कप का रहा-सहा आकर्षण भी जाता रहता। यही कारण है कि हत्यारे अब तक आजाद घूम रहे हैं और वह इंसान हमेशा के लिए खामोश हो गया, जो भविष्य में अपनी दो किताबों के जरिए सफेदपोश क्रिकेटरों और सट्टेबाजों को दुनिया के सामने लाने जा रहा था।

वूल्मर की मौत अब विश्व कप से उपर हो गई है। लोगों की रुचि इसमें नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया खिताबी हैट्रिक दर्ज करता है या वेस्टइंडीज सेमीफाइनल तक दम भरेगा, बल्कि रुचि इसमें है कि आखिर पाकिस्तानी कोच को किसने और क्यों मारा? वैसे यह दिलचस्पी भी समय के साथ कम होती जाएगी क्योंकि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है।

जग हंसाई आज क्रिकेट या वूल्मर की नहीं हो रही है, बल्कि गरीब देश जमैका की हो रही है, जो पूरी दुनिया को वूल्मर हत्याकांड का सच बताने से डर रहा है। हँसी का पात्र तो प्रतिनियुक्ति पर आया स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस का जासूस मार्क शील्ड्स भी है, जो पुलिस उपायुक्त होने के बाद भी रोज बयान बदल रहा है।

इसमें कोई शक नहीं यारों कि आज भी पैसे का बोल बाला है और पैसा बोल रहा है, यह साफ नजर आ रहा है। क्रिकेटर बिकते हैं, मैचों को फिक्स किया जाता है, पाकिस्तान आयरलैंड से और भारत बांग्लादेश से हार जाता है। क्रिकेट सट्टेबाजों की अंगुली पर नाचता है और मजे की बात देखिए कि लाख कोसने के बाद भी लोगों की रुचि ले-देकर इसी खेल में रहती है। थोड़ा समय बीतने दीजिए, जो लोग हिन्दुस्तान में क्रिकेटरों के पुतले-पोस्टर जला रहे हैं, वही लोग भारत की एक जीत पर इन्हीं क्रिकेटरों के गुणगाण करते नजर आएँगे। फिर भले ही भारत मई में बांग्लादेश में जाकर ही क्यों न जीते।

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