भारतीय क्रिकेट टीम में 11 माह के 'वनवास' को भोगने के बाद दुनिया ने जिस दूसरे सौरव गांगुली को देखा, दंग रह गई। अफ्रीका में पहले टेस्ट और फिर घरेलू क्रिकेट श्रृंखलाओं में दमदार प्रदर्शन करके 'दादा' ने यह साबित कर दिया है कि उनके बल्ले में अभी भी दम है।
गांगुली की एक ही तमन्ना थी कि वह 2007 का विश्व कप खेले और काफी हद तक वे अपने इरादे में सफल भी हुए लेकिन उनका दुर्भाग्य रहा कि वे विश्व कप में ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर पाए, जो उन्होंने 2003 के विश्व कप में बतौर कप्तान किया था और भारतीय टीम को फाइनल तक की पायदान तक पहुँचाया था।
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चैपल-गांगुली ई-मेल विवाद के पश्चात भारत में भले ही क्रिकेट में दखल रखने वालों ने उन्हें सम्मानजनक संन्यास लेने की नसीहत दी, लेकिन सौरव ने विश्व कप में खेलने की प्रतिज्ञा ले रखी थी, लिहाजा वे अपने धमाकेदार प्रदर्शन के बूते पर टीम में वापस लौटे।
विश्व कप में भारत भले ही 'कलंक' लगाकर लौटा हो लेकिन गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को जो सेवाएँ दी हैं, वह कभी भुलई नहीं जा सकेंगी। यहां पर हम कोलकाता के इस राजकुमार से जुड़ी कुछ भूली बिसरी यादों को समेटने का प्रयत्न करे।
कल्पना कीजिए कि आपको चार महीने के लंबे दौरे के लिए टीम में चुना जाए और सिर्फ एक दिवसीय मैच खिलाकर टीम से 4 साल के लिए बाहर कर दिया जाए तो आप पर क्या बीतेगी? और जब आपकी उम्र सिर्फ 18 साल की हो तो मामला और गंभीर हो जाता है।
सौरव चंडीदास गांगुली के साथ ऐसा ही हुआ। 1991-92 के ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर उन्हें सिर्फ एक मैच खिलाया गया और फिर उन्हें भुला दिया गया। 1996 के इंग्लैंड दौरे के लिए जब उनका चयन किया गया तो पूरे भारतमें भूचाल आ गया। बंगाली काफी खुश थे, किन्तु बाकी क्रिकेटप्रेमियों को सौरव का टीम में चयन खीर में नमक जैसा लगा। सभी की तीखी आलोचनाओं का शिकार होने से 'प्रिंस ऑफ कोलकाता' बननेतक सौरव ने जोरदार संघर्ष किया।
बुरे दिनों को याद आज भी सौरव के दिल में ताजा है। वे कहते हैं बुरे दिनों में मेरी पत्नी 'डोना' ने मुझे सदा प्रेरित किया। उन्होंने मुझसे कभी हार नहीं मानने को कहा। डोना का संयम गजब का है। मुझे डोना से काफी कुछ सीखने को मिला। डोना सौरव के घर के पास ही रहती थी और दोनों की मित्रता काफी पुरानी थी। बाद में दोनों ने अगस्त 96 में विवाह किया।
एक कुशल ओडिसी नृत्यांगना डोना कहती हैं कि मैंने सौरव की कोई ज्यादा मदद नहीं की। जैसे-जैसे वे परिपक्व होते गए, वैसे-वैसे सब ठीक होता गया। मैं उनसे हमेशा सिर्फ यही कहा करती थी धैर्य से काम लो और प्रतीक्षा करो। मैं जानती थी कि सौरव के दिन बदलेंगे, क्योंकि वे काफी मेहनती हैं। मेरा और मेरी बेटी का एक ही ख्बाब था कि जब भारतीय टीम वेस्टइंडीज से वापस आए तो टीम हाथों में विश्व कप लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं सका।
डोना ने यदि सौरव के बुरे दिनों में साथ दिया तो उनके पिता चंडीदास गांगुली ने सौरव के आरंभिक दिनों में। सौरव कहते हैं कि मेरे पिताजी हमेशा चाहते थे कि मैं क्रिकेट खेलूं, पढ़ाई करूं या न करूं। ऐसा काफी कम परिवारों में होता है। पालक चाहते हैं कि उनके बच्चे पहले पढ़ाई करें, फिर खेलें।