महेन्द्रसिंह धोनी शायद पहली बार घरू श्रृंखला में अत्यधिक दबाव में अपने आपको पा रहे होंगे। स्वाभाविक ही है इंग्लैंड के विरुद्ध घरू श्रृंखला में इंग्लैंड से 24 साल बाद हार का मुंह जो देखना पड़ा है। यह एक बड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव है।
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धोनी के नेतृत्व वाली टीम इंडिया संक्रमण काल से गुजर रही है एवं उस दौर में सुचारु एवं सफल नेतृत्व ही उस टीम को उबार सकता है जिसके लिए ही एमएसडी को जाना जाता है। यह श्रृंखला वाकई धोनी की अग्निपरीक्षा है।
हालांकि दोनों ही टीमों की अमूमन एक-सी ही स्थिति है। दोनों ही संक्रमण काल से गुजर रही है। टीम इंडिया को एक जो बड़ा एडवांटेज है वह है घरू श्रृंखला। भारत घरेलू श्रृंखलाओं में कम ही मैच हारा है। हां, लेकिन राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, गौतम गंभीर जैसे दिग्गज एवं विश्वविख्यात बल्लेबाजों की कमी को पूरा करने के लिए भारतीय युवा प्रतिभाओं को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
उस स्टैंडर्ड पर अपने आपको स्थापित करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है। जहां धोनी को इन दिग्गजों की कमी खलेगी, वहीं माइकल क्लार्क को रिकी पोंटिंग एवं माइक हसी की। दोनों की कश्ती एक ही भंवर में फंसी है। जो भी समझदारी, जिम्मेदारी से टीम का नेतृत्व करेगा, सूझबूझ कर रणनीति बनाएगा एवं सफल, सुचारु, क्रियान्वयन कराएगा, वही भंवर से निकल पाएगा।
एडवांटेज एवं डिसएडवांटेज अहम पहलू हैं एवं दोनों फैक्टर टीमों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने एवं कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। अगर हम भावनाओं में न बह वास्तविकता को ध्यान रखते हुए आकलन करेंगे तो पाएंगे कि कहीं न कहीं इस द्वंद्व से ऑस्ट्रेलिया एक स्थान रखती है।
धोनी पर जहां पिछली टेस्ट श्रृंखला की हार का दबाव है, वहीं माइकल क्लार्क पर साउथ अफ्रीका पर जीत का आत्मविश्वास। यह सही है कि यह श्रृंखला राहुल, वीवीएस लक्ष्मण, गौतम गंभीर, रिकी पोंटिंग एवं माइकल हसी की कमी को शायद ही भर पाएगी, क्योंकि उनकी कमी को भरने के लिए युवा बल्लेबाजों को उनके द्वारा अपनाई गई रूटीन का सूक्ष्मता से आकलन कर उसे अपने खेल में अपनाना होगा, जो कठिन ही नहीं, अपितु कांटोंभरी राह है।
यह दौर इन युवाओं के लिए नए अवसर, मौके पैदा करेगा, वहीं यह स्थिति धोनी, सचिन, वीरू एवं माइकल क्लार्क, वॉटसन पर अधिक जिम्मेदारियां ही नहीं, मानसिक दबाव भी बनाएंगी। क्लार्क के साथ जहां पिछला अत्यधिक सफल सफर है, जो शायद हर बड़े एवं बेहतर खिलाड़ी की जिंदगी में आता है जिसे हम ड्रीम पीरियड कह सकते हैं, वहीं धोनी नई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इस दौर ने क्लार्क को विश्व के महान बल्लेबाजों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। यह दौर उनके लिए सनसनीखेज रहा है। टीम में नया आत्मविश्वास पैदा किया है। दिलेरी से टीम की अगुआई की है।
क्लार्क के साथ जहां पिछला सनसनीखेज साल रहा है, वहीं धोनी संघर्ष करते हुए दिखे। परंतु धोनी एक ऐसे कप्तान हैं, जो सभी खिलाड़ियों में सम्मान की नजर से देखे जाता हैं। वे एक परिपक्व कप्तान हैं। उन्हें इस दौर से निकलने में कतई परेशानी नहीं होगी। धोनी की टीम युवा प्रतिभाओं से सुसज्जित है। यह चेतेश्वर पुजारा, रहाणे, शिखर धवन, मुरली विजय जैसे बल्लेबाजों को स्थापित करने का एक सुअवसर है।
यही मौका है अपनी उपयोगिता सिद्ध करने का। पुजारा का इंग्लैंड के विरुद्ध का दमदार प्रदर्शन करते हुए देखा है। निश्चित रूप से उन्हें बाकी सबसे अलग खड़ा करता है। यह श्रृंखला उनके लिए महत्वपूर्ण है।
यह सही है कि धोनी के लिए राहुल एवं वीवीएस लक्ष्मण का रिप्लेसमेंट एक चिंता का विषय है। लेकिन धोनी के लिए सबसे सुखद सचिन तेंदुलकर का पुन: फॉर्म में आना है। मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि सचिन का फॉर्म ही इस श्रृंखला के परिणामों में अहम भूमिका निभाएगा।
भारतीय रवैए में नया आत्मविश्वास पैदा करेगा। सचिन का होना ही महत्वपूर्ण होता है। यदि हम हर क्षेत्र, बल्लेबाजी, गेंदबाजी का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि भारतीय टीम जिस क्षेत्र में भारी पड़ेगी वह है स्पिन क्षेत्र। जहां भारतीय टीम में हरभजन सिंह जैसे परिपक्व एवं विश्वस्तरीय गेंदबाज हैं वहीं ऑस्ट्रेलियन टीम में सारे फिरकी गेंदबाज नए ही नहीं, अपरिपक्व भी हैं। जहां भारतीय टीम में अश्विन, प्रज्ञान ओझा जैसे भारतीय कंडीशंस में अभ्यस्त गेंदबाज हैं, वहीं क्लार्क के पास तीनों ही नए एवं भारतीय विकेटों/ परिस्थितियों में पहली बार खेलने वाले गेंदबाज हैं। क्लार्क के तीनों गेंदबाज डोहर्थी एवं लियोन अभी तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी तक कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पाए हैं। जैसा मैंने पहले कहा है कि सचिन की तरह भज्जी भी इस श्रंखला में में अहम भूमिका निभाएंगे, यदि धोनी ने उन्हें सही मौका दिया। उनका चेन्नई सुपर किंग वाला लगाव, प्रेम भारी न पड़े तो। आज की स्थिति में भज्जी अश्विन से ज्यादा अच्छी एवं इफेक्टिव गेंदबाजी कर रहे हैं। यह धोनी को सोचना होगा कि व्यक्तिगत पसंद, नापसंद से देशहित सर्वोपरि हैं। जीत अहम है। भज्जी के पीछे 400 विकेटों का आत्मविश्वास जो है।
भारतीय तेंज गेंदबाजी की जिम्मेदारी ईशांत शर्मा को अपने कंधों पर उठानी पड़ेगी, क्योंकि भुवनेश कुमार एवं शमी नए एवं युवा गेंदबाज हैं, लेकिन उन्हें कमतर नहीं आंका जा सकता। वे संभावनाओं से भरे हैं। प्रतिभाशाली है। हर क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया भारी पड़ता दिखाई देता हैं। ऑस्ट्रेलिया के पास स्तरीय गेंदबाजों की कमी नहीं है। स्टार्क अपनी प्रतिभा का परिचय दे ही चुके हैं। पेंटिसन अपनी तेजी एवं सटीकता से भारतीय बल्लेबाजों को परेशान करेंगे। अनुभवी पीटर सीडल उनकी अगुआई करेंगे। शेन वॉटसन को कैसे भूल सकते हैं। वे आज के जैक कैलिस के बाद विश्व से सबसे अच्छे ऑलराउंडर जो हैं। शेन वॉटसन निश्चित रूप से अहम भूमिका निभाएंगे। अभी के फॉर्म को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया का पलड़ा थोड़ा भारी दिखता है। माइकल क्लार्क के क्या कहने! वे ही तो हैं, जो बाकी बल्लेबाजों को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। वॉर्नर, कोवान, फिल ह्यूज, वॉटसन, वेड बल्लेबाजी की कमान संभालेंगे। हेनरिक्स एक उभरते हुए ऑलराउंडर हैं। क्लार्क पिछले दो सालों से हर सिरीज में हजार से ज्यादा रन बनाकर अपने लिए नए आयाम गढ़ चुके हैं।
भारत के दृष्टिकोण से गौतम गंभीर का न रहना भारतीय खेमे में चिंता का विषय तो है लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि किसी भी खिलाड़ी का फॉर्म एक-सा नहीं रहता। उतार-चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा है, जो जिंदगी को चुनौतीपूर्ण बनाए रखता है। सनसनीखेज बनाए रखता। यह फेज गंभीर की जिंदगी में भी आना था एवं उनके जैसे परिपक्व खिलाड़ी को उससे निकलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। वे बड़े बल्लेबाज के साथ-साथ एक संजीदा इंसान भी हैं। सकारात्मक सोच वाले, दृढ़ निश्चयी तथा आत्मविश्वास से ओतप्रोत इंसान हैं। यही खूबी उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग रखती हैं। उन्हें विश्वस्तरीय बनाती है। वे कितने संजीदा हैं, यह उनके बयान से मालूम होता है कि मुझे किसी की दया या सहानुभूति की जरूरत नहीं है। मेरा विश्वास एवं मेरी मेहनत वापसी करने के लिए प्रेरित करेगी और यह उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध प्रैक्टिस मैच में शतक जड़कर दिखा दिया कि उनमें कितना दम है। यह शतक गौतम का 2010 चटगांव के शतक के बाद पहला फर्स्ट क्लास शतक है। उन्होंने इस बीच चार वनडे शतक जरूर बनाए हैं, पर यह सब उनकी छायामात्र ही हैं। गत कुछ वर्षों में 2010 में बांग्लादेश के खिलाफ 116 की शतकीय पारी के बाद कोई बड़ी पारी नहीं खेल पाए हैं। वे सहवाग के साथ कोई बड़ी शुरुआती पार्टनरशिप भी नहीं निभा पाए थे। यह निश्चित तौर पर सबके लिए चिंता का विषय था। उनका पिछली श्रृंखला का सर्वाधिक स्कोर 65 रन था, जो उन्होंने मुंबई टेस्ट में बनाया था। उनके पहले मात्र दो अर्द्धशतक 9 पारियों में उनके नाम हैं। वे कभी संसार को जताने के लिए नहीं खेले। उनका संघर्ष अपने आप से है। वे औरों को नहीं, अपने आपको प्रूव करने में विश्वास करते हैं। शायद यही सबसे बड़ी ताकत है उनकी।
गंभीर को ड्रॉप करचयनकर्ताओं ने एक साहसिक कदम उठाया। चयनकर्ताओं के कदम ने गौतम को आत्मचिंतन, आत्मविश्लेषण करने का मौका दिया है। मेहनत कर पुन: अपना मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया है। यह कदम युवाओं के लिए भी एक सबक है। गंभीर जैसे खिलाड़ी आईकॉन होते हैं। वे ये सब दौर से गुजर अपने लिए विशिष्ट मुकाम बना इतिहास में नए आयाम बनाते हैं, लिखते हैं। ऐसे ही विश्वस्तरीय नहीं होते।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ धोनी की सफलता यह सब उनके सुचारु नेतृत्व पर निर्भर करती है एवं उनके इफेक्टिव क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। धोनी एवं टीम इंडिया को हार्दिक शुभकामनाएं!
(लेखक पूर्व रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी हैं और उन्होंने 47 प्रथम श्रेणी मैचों में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया है)