लेग ग्लांस के जनक कुमार रणजीतसिंहजी (बाद में) एचएच सर रणजीतसिंहजी विभाजी जाम साहेब ऑफ नवा नगर, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, सेंसेक्स, इंग्लैंड दांए हाथ के बल्लेबाज, धीमे दांए हाथ के गेंदबाज और श्रेष्ठ स्लिप क्षेत्ररक्षक
अंग्रेज उन्हें प्यार से 'रंजी' कहा करते थे, जो कि एक शानदार और संपूर्ण बल्लेबाज थे। उन्होंने अपने खेल कौशल और कलात्मक स्वभाव से क्रिकेट की दुनिया को एक अनुपम आकर्षक शॉट लेग ग्लांस दिया था, जिसकी वजह से वह आज भी क्रिकेट की दुनिया में अमर हैं।
हालाँकि रंजी के पास सभी स्ट्रोक्स थे, लेकिन जिस तरह से वह लेग साइड में पीछे की ओर हटकर लेग ग्लांस लगाते थे, वह विशेष रूप से दर्शकों को मैदान पर खींच लाने में सक्षम था, लेकिन धीरे-धीरे रंजी ने एक बहुत अच्छे कटर और ड्राइवर के रूप में भी अपनी साख जमाई।
रणजीतसिंहजी के क्रिकेट का एक और महत्वपूर्ण पहलू उनकी एकाग्रता थी, जो कि उनके क्रिकेट जीवन के 1893 से लेकर 1920 का काल दर्शाते हैं। रंजी ने इस दौरान 307 प्रथम श्रेणी मैच खेलकर 72 शतकों की मदद से 25,000 रन बनाए, जो कि किसी भी क्रिकेटर के लिए एक असाधारण उपलब्धि थी।
जन्म से राजपूत रणजीतसिंह ने अपने घर पर तो बहुत कम क्रिकेट खेली, लेकिन 15 वर्ष की उम्र में 1888 में जब वह इंग्लैंड पहुँचे तो उनका क्रिकेट जीवन शुरू हुआ, जिसे 1890 में ट्रिनिटी कॉलेज में व्यवस्थित रूप मिला। वहाँ वह टॉम रिचर्डसन और बिल लॉकवुड की निगाहों में गहन अभ्यास करने लगे और वह कहते भी थे कि मुझे सबसे ज्यादा अपनी एकाग्रता और क्षमता पर मेहनत करनी है।
रणजीतसिंह ने इंग्लैंड के लिए ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मेनचेस्टर में पहला टेस्ट खेला और वह टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले क्रिकेट इतिहास के पहले भारतीय बने और डब्ल्यूजी ग्रेस के बाद शतक बनाने वाले क्रिकेट इतिहास के पहले खिलाड़ी। अपने पहले ही टेस्ट में उन्होंने 62 और 154 रनों की शानदार नाबाद पारियाँ खेली।
रणजीतसिंह ने डब्ल्यूजी ग्रेस का एक कैलेण्डर वर्ष में 1871 रनों का रिकॉर्ड भी 57.91 के औसत से 10 शतक बनाकर 2780 रनों के माध्यम से भारी अंतर से तोड़ा। 1897-98 में वह एई स्टोडार्ट की कप्तानी में इंग्लैंड की तरफ से ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गए और दौरे के पहले ही मैच में उन्होंने 189 और पहले टेस्ट मैच में 175 रनों की शानदार पारियाँ खेली।
इंग्लैंड के लिए वह अपना अंतिम टेस्ट 1902 में खेले और उन्होंने तीन बार जिसमें कि 1899 में दो बार लगातार एक ही महीने के अंदर एक-एक हजार रन और फिर 1900 में फिर एक ही महीने के अंदर 1000 रन बनाने का कारनामा दोहराया। उन्होंने दो बार लगातार दो पारियों में दोहरा शतक भी लगाया।
क्रिकेट के रिकॉर्ड रणजीतसिंह की प्रतिभा और उनमें आकर्षण को सही तरीके से बयान करने में सक्षम नहीं हैं। उनके आलोचक, समीक्षक और प्रशंसक कहते हैं कि रणजीतसिंह निर्विवाद रूप से क्रिकेट के मैदान पर कदम रखने वाले सर्वकालीन महान और जीनियस होने के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व भी थे, जिन्होंने क्रिकेट के एक महान काल को अपने प्रदर्शन से रौशन किया। भारत में रणजीतसिंह के निधन के 1 वर्ष उपरांत रणजी ट्रॉफ के माध्यम से उन्हें भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान को लेकर अविस्मरणीय रखा।