नोटबंदी के पांच बड़े कारण जानकर आप हैरान रह जाएंगे...
शनिवार, 19 नवंबर 2016 (10:45 IST)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा 500 और 1,000 रुपए के नोटों को बंद करने का फैसला सचमुच ही बहुत ही साहसिक फैसला माना जाएगा, क्योंकि इस फैसले को लागू करने के लिए उन्होंने निश्चित ही 10 बार सोचा होगा और गुप्त रूप से इतने ही अर्थशास्त्रियों से राय भी ली ही होगी। यह भी पढ़ा होगा कि आखिर नोट बंद क्यों किए जाते हैं? विमुद्रीकरण को स्कूल और कॉलेजों की अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ाया जाता है और यह भी बताया जाता है कि ऐसा क्यों किया जाता है?
यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नोटबंदी का यह कदम नहीं उठाते तो आने वाले समय में देश में जहां हर वस्तुओं के दाम आसमान को छू लेते, वहीं आतंकवाद और नक्सलवाद समूचे देश को निगल जाता। किसी-न-किसी सरकार को तो यह कदम उठाना जरूरी था। पिछली सकारों ने यदि यह हिम्मत दिखाई होती तो कश्मीर जल नहीं रहा होता और न ही महंगाई आसमान छू रही होती। प्रधानमंत्री मोदी ने वोटों की राजनीति की चिंता किए बगैर यह फैसला लिया।
पहला कारण...प्रति पांच वर्ष के बाद नोटों में परिवर्तन करना जरूरी : दरअसल, हर देश कुछ सालों में अपने नोटों में कुछ न कुछ बदलाव लाता है, कुछ सिक्योरिटी फीचर बदलता रहता है लेकिन भारत में लंबे समय से कोई बदलाव नहीं हुआ था। 1,000 के नोटों में बदलाव सन् 2000 में हुआ था जबकि 500 रुपए के नोट में 1987 में लाया गया था। अर्थशास्त्री मानते हैं कि सुरक्षा के लिहाज से हर 5 सालों में नोटों में कुछ बदलाव किए जाने चाहिए, हालांकि नोटों को बंद ही कर देना अपने आप में ही एक बहुत बड़ा बदलाव है।
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जाली नोटों की भरमार : भारत में 500 और 1,000 के नोट बंद किए जाने का सबसे ज्यादा असर जाली नोटों की तस्करी और हवाला कारोबार करने वालों पर पड़ा है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था को खोखला करने के लिए पाकिस्तान ने भारतीय करेंसी के 500 और 1,000 के जाली नोट बड़ी संख्या में तैयार करवाए थे। ये जाली नोट पाकिस्तान की सरकारी मिल में बने उसी कागज से तैयार किए गए जिससे पाकिस्तानी नोट तैयार होते हैं। ये नकली नोट भी उन मशीनों पर छापे गए जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान अपने नोट छापने के लिए करता है। यहां तक कि इन नोटों में वही रंग इस्तेमाल किए गए, जो पाकिस्तान अपनी करेंसी छापने में करता है।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की शह पर अवैध हथियार और ड्रग्स की तरह ही पाकिस्तान में नकली नोट बनाने का कारोबार भी धड़ल्ले से इसलिए चलता है, क्योंकि इससे वह आतंकवादियों को आसानी से मदद कर सके। पाकिस्तान में तैयार इन जाली नोटों को भारत में अलग-अलग रास्तों और तरीकों से पहुंचाया जाता है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार जाली नोटों को भारत में पहुंचाने के लिए नेपाल, थाईलैंड और बांग्लादेश के पाकिस्तानी दूतावास मदद करते रहे हैं। हाल ही में भारत स्थित दूतावास के कई जासूस पकड़ा गए थे। जाली नोट लक्जरी टूरिस्ट मर्सिडीज बस के जरिए टर्की से बांग्लादेश भेजे जाते हैं। कराची से समुद्री रास्ते से बांग्लादेश जाने वाले गारमेंट कंटेनर में भी नकली नोट भेजे जाते हैं। कुरियर के जरिए भी चीन से नेपाल नकली नोट भेजे जाते हैं। मनी एक्सचेंज के जरिए कंबोडिया से नकली नोट की खेप भेजी जाती है। इसके अलावा सीमा के आरपार कारोबार के जरिए भी नकली नोट की खेपें भेजी जाती हैं। 2010 में 1,600 करोड़ रुपए के जाली नोट भारत में भेजे गए, तो वहीं 2011 में जाली नोटों की संख्या बढ़कर 2,000 करोड़ तक पहुंच गई। सूत्रों के मुताबिक हर साल 400 से 500 करोड़ के जाली नोट बढ़ते गए। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खोखली होती जा रही थी।
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में बांग्लादेश की सीमा पर लगभग 12 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बसे कोई 2 दर्जन से अधिक गांव जाली नोटों की तस्करी के हब यानी गढ़ के तौर पर कुख्यात हैं। जिले में बांग्लादेश की सीमा से लगे इन गांवों में सीमापार से आने वाले जाली नोटों का कारोबार ही लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन था। वे सीमापार से जाली नोटों की खेप लाकर उनको यहां से देश के दूसरे इलाकों में भेजकर उनको खपाने के काम में जुटे रहते थे। सुरक्षा एजेंसियों का अनुमान है कि फिलहाल देश में जितने भी जाली नोट प्रचलन में थे उनमें आधे से ज्यादा इसी रास्ते से भारत आए थे।
पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का कहना है कि सीमा से सटे कालियाचक इलाके के 3 ब्लॉक शुरू से ही जाली नोटों की तस्करी के पारंपरिक केंद्र रहे हैं। एनआईए की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में घुसने वाले 80 फीसदी जाली नोट मालदा से लगी बांग्लादेश सीमा से होकर ही देश में आए थे। इस जिले की लगभग 172 किमी लंबी सीमा पड़ोसी देश से सटी है और कंटीले तारों की बाड़ नहीं होने की वजह से उनमें से कुछ जगहों पर सीमा पार करना बेहद आसान है। यहां पहुंचने वाले नोटों में से लगभग 60 फीसदी नोट पाकिस्तान में छापे गए थे। वहां से ये नोट समुद्री रास्ते से बांग्लादेश पहुंचते थे और वहां से स्थानीय लोग तस्करी के जरिए उनको कालियाचक के रास्ते भारत में ले आते थे।
जाली नोटों के इस धंधे में भारी मुनाफा था। 500 और 1,000 के जाली नोटों को खपाने वाले लोगों को 50 से 60 फीसदी मुनाफा मिलता था। मिसाल के तौर पर 1 लाख के अंकित मूल्य वाले जाली नोट की कीमत मालदा में 48,000 रुपए थी तो बांग्लादेश में 44,000 टका। अगर नोट बेहतर क्वालिटी के हुए यानी उनके पकड़ में आने का खतरा बहुत कम हो तो उनकी कीमत बढ़कर 60,000 भारतीय रुपए हो जाती थी।
वर्ष 2013 में जहां इस इलाके से सुरक्षा एजेंसियों ने 1.4 करोड़ के जाली नोट जब्त किए थे वहीं 2014 में यह आंकड़ा 1.5 करोड़ तक पहुंच गया। वर्ष 2015 में सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती के बावजूद यह आंकड़ा लगभग 3 करोड़ तक पहुंच गया। चालू वर्ष के दौरान अक्टूबर तक उस इलाके से 1.15 करोड़ के जाली नोट बरामद हो चुके हैं। अब अगर बरामद होने वाले नोटों की तादाद इतनी है तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जाली नोटों की शक्ल में कितनी रकम देश के दूसरे हिस्सों में पहुंची होगी?
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काला धन : जाली नोटों के अलावा कालाधन एक बहुत बड़ी समस्या था। कालेधन का अर्थ है- घोटाले, चोरी, सट्टा, किडनैपिंग, स्मगलिंग, पोचिंग, ड्रग्स, अवैध माइनिंग, जालसाजी, घोटाले, रिश्वतखोरी, इंकम टैक्स नहीं भरना और किसी भी तरह की हेराफेरी से जुटाया गया धन। इस धन का बहुत बड़ा हिस्सा जनता के काम आना चाहिए था लेकिन यह जमाखोरों के काम में लग गया। कालाधन देश के बाहर और देश के भीतर दोनों ओर बहुत बड़ी संख्या में मौजूद था, जो देश की अर्थव्यस्था को पंगु बना रहा था। इस धन के कारण बैंकों में धन की कमी होकर बैंकिंग सेक्टर लगभग मरणासन्न हो चला था। कालेधन के कारण चुनाव प्रक्रिया तो प्रभावित हो ही रही थी इससे व्यापार और रीयल स्टेट में भी बहुत सारी गड़बड़ियां होने के कारण एक ओर जहां महंगाई आसमान छू रही थी वहीं दूसरी ओर मकानों के दाम लोगों की पहुंच से बाहर होने लगे थे।
कालाधन सरकार की आय में रुकावट पैदा करता है तथा देश के सीमित वित्तीय साधनों को अवांछित दिशाओं में मोड़ देता है। इसके अतिरिक्त कालेधन या समानांतर अर्थव्यवस्था की समस्या सामान्य समस्याओं से अलग प्रकार की समस्या है, क्योंकि जब हम सामान्य आर्थिक समस्याओं यथा गरीबी, मुद्रास्फीति या बेरोजगारी के संबंध में विचार करते हैं तब हमारा ध्यान निर्धन तथा बेरोजगार आदि के समूह पर केंद्रित हो जाता है।
एनआईपीएफपी की एक स्टडी के मुताबिक 1983-84 में 32,000 से 37,000 करोड़ रुपए का कालाधन थ (यह जीडीपी के 19-21 फीसदी के बीच है।) 2010 में अमेरिका के ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी ने अनुमान लगाया था कि 1948 से 2008 के बीच भारत से 462 अरब डॉलर की रकम निकली है। एक अनुमान के मुताबिक देश और विदेश में कुल मिलाकर भारत का 1 हजार लाख करोड़ का कालाधन है।
मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले इस कालेधन के खिलाफ मुहिम चलाई थी। पहले विदेशी बैंकों में रखे गए कालेधन को वापस लाने के लिए एक एसआईटी का गठन किया जिसने यह पता लगाया कि किसी का कितना और कहां कालाधन रखा है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक एचएसबीसी की स्विस शाखा में 1195 भारतीयों के खाते होने का पता चला। यह संख्या 2011 में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा भारत को सौंपी गई 628 नामों से लगभग दोगुनी है। उक्त बैंकों और वहां की सरकार से संपर्क करके उन लोगों के खाते सील करने के लिए कहा गया जिसमें से कई लोगों के खाते सील भी हुए और कुछ के नहीं।
इस मुहिम के बाद देश में कई माध्यमों से दबाए गए कालेधन को सरेंडर करने के लिए सरकार ने लोगों को 3 अवसर दिए। कुछ ने सरेंडर किए लेकिन बहुतों ने नहीं किए। इस बीच सरकार ने पूरे देश में इंकम टैक्स के छापे डलवाकर कालाधन निकाला। अंत में नोटबंदी की गई।
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ठप हो रही थी बैंक और एटीएम की व्यवस्था : जाली नोटो की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि बैंक और एटीएम से भी जाली नोट निकलने के सामाचार मिल रहे थे। जांच करने के बाद पाया गया कि ये जाली नोट बिलकुल असली जैसे थे। इसके चलते भी यह कदम उठाया गया।
पाकिस्तान द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था पर यह सबसे बड़ी चोट की गई थी। आने वाले समय में इससे एटएम बंद करने की नौबत आ रही थी। नोटों की पहचान करना मुश्किल हो रहा था कि कौन-सा नोट असली और कौन-सा जाली? इस तरह बैंकों से भी धीरे-धीरे असली नोट चलन से बाहर हो रहे थे। भारत सरकार और बैंकों के लिए यह सबसे बड़ी समस्या बन कर उभर रही थी। ऐसे में नोटबंदी का निर्णय लेने बहुत जरूरी हो गया था। ऐसे टालते रहने का अर्थ था कि भारत को एक बहुत बड़े आर्थिक संकट में फंसाना।
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संचालित हो रही थी समानांतर अर्थ व्यवस्था : इसके कारण रुपये की साख गिर रही थी। अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हो रहा था। भारत की अर्थव्यवस्था में 86 प्रतिशत नोट 500 और 1,000 रुपए के हैं। लोग 500 और 1,000 के नोटों के सहारे ही कालाबाजारी कर रहे थे जिसके चलते ये नोट आम चलन में बहुत कम तादाद में संचालित हो रहे थे। बैंकों के पास कैश कम जमा हो रहा था और निकासी ज्यादा हो रही थी। इसके चलते सरकार को अतिरिक्त नोट भी छापने पड़ रहे थे। अतिरिक्त नोट छापने से एक और जहां वित्तीय घाटा बढ़ रहा था वहीं बैंक बंद होने की कगार पर हो चले थे।
आतंकवादियों और नक्सलवादियों के हाथों में काला धन और नकली नोट होने के कारण एक समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई थी ऐसे में भारत का विकास ही नहीं रुका हुआ था बल्कि भारत पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था। इससे आतंकवादी और नक्सलवादियों के कई छोटे छोटे समूह बन गये थे जो भारत में कही भी किसी भी वक्त किसी भी घटना को अंजाम देने में सक्षम थे।