हिन्दी पत्रकारिता में रतलाम का योगदान

30 मई : हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर विशेष
 
-डॉ. मोहन परमार
 
रतलाम का हिन्दी पत्रकारिता इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र 'उदन्त मार्तंड' के सन्‌ 1826 में प्रकाशन के 23 वर्ष पश्चात मध्यप्रदेश में इंदौर से वर्ष 1849 में पहला समाचार पत्र 'मालवा' अखबार प्रकाशित हुआ। रतलाम से सबसे पहले सन्‌ 1867 में रत्नप्रकाश समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था। उस समय भारतीय पत्रकारिता में हिन्दुस्तानी हिन्दी एवं उर्दू भाषा में संयुक्त रूप से समाचार सामग्री प्रकाशित करने का प्रचलन था। 
 
उस दौर में प्रकाशित बनारस अखबार एवं मालवा अखबार इसी प्रकार के समाचार पत्र थे। रत्नप्रकाश साहित्यिक एवं समकालीन सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी देने वाला अखबार था। रतलाम के पं. रामकिशोर नागर के संपादन में प्रकाशित इस पत्र में कौशल उन्नयन के अंतर्गत मदरसों एवं विद्यालयों में रोजगारमूलक शिक्षा को महत्व दिया जाता था। क्षेत्रीय भाषा को प्राथमिकता के साथ ही स्त्री शिक्षा के विकास पर भी सामग्री होती थी। इस प्रकार राज्याश्रय प्राप्त प्रथम पत्र रत्नप्रकाश अक्टूबर 1887 तक नियमित प्रकाशित होता रहा। 
 
रतलाम में हिन्दी पत्रकारिता में ऐसे प्रकाश स्तंभ दिखाई पड़ते हैं जिनकी ज्योति हिन्दी पत्रकारिता के लिए मशाल के समान है। रतलाम शहर में हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास की दो गौरवशाली घटनाओं के साक्षी होने का सम्मान प्राप्त है। भारत की पहली महिला पत्रिका और पहली पर्यावरण पत्रिका के प्रकाशन का गौरव रतलाम को प्राप्त है। 
 
सन्‌ 1888 में रतलाम से श्रीमती हेमंत कुमारी चौधरी के संपादन में देश की पहली महिला पत्रिका 'सुगृहिणी' मासिक का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था। हेमंत कुमारी लाहौर में महाविद्यालय के प्राचार्य नवीनचन्द्र राय की बेटी थी और उनके पति आरएस चौधरी रतलाम में राज्य की सेवा में थे। 'सुगृहिणी' में स्त्री शिक्षा का प्रचार-प्रसार एवं सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध महिलाओं में जागृति पैदा करने संबंधी सामग्री रहती थी। 

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देश की पहली महिला पत्रिका के प्रकाशन के लगभग एक शताब्दी पश्चात वर्ष 1987 में रतलाम से ही पर्यावरण पर देश की पहली राष्ट्रीय हिन्दी मासिक 'पर्यावरण डाइजेस्ट' का प्रकाशन पर्यावरणविद डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित के संपादन में प्रारंभ हुआ। गत 3 दशकों से पत्रिका का प्रकाशन नियमित हो रहा है। 'पर्यावरण डाइजेस्ट' की यह विशेषता है कि इसमें समाचार, विचार एवं दृष्टिकोण का समन्वय है, जो पत्रिका की पठनीयता को बनाए रखता है। समसामयिक मुद्‌दों ऊर्जा, स्वास्थ्य, रहन-सहन, वन्य जीवन, स्थायी विकास और प्रौद्योगिकी जैसे मुद्‌दों से जुड़ी वैचारिक सामग्री के प्रचार-प्रसार में पत्रिका हमेशा अग्रणी रही है।
 
हिन्दी पत्रकारिता के विकास में रतलाम की पत्रकारिता ने उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया है जिसका वर्तमान स्वरूप हमारे सामने है। रतलाम पत्रकारिता की दृष्टि से सदैव विचारशील एवं प्रेरक रहा है। सन्‌ 1934 में हिन्दी के प्रसिद्ध कवि गोपाल सिंह नेपाली के संपादन में साप्ताहिक 'रतलाम टाइम्स' का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्र में जैन जगत के समाचारों के साथ कहानी, कविता और लेख आदि प्रकाशित होते थे। 'रतलाम टाइम्स' तत्कालीन साहित्य का प्रवक्ता रहा है। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 'रतलाम टाइम्स' द्वारा प्रकाशित हिन्दी विशेषांक में देशभर के प्रमुख कवियों की रचनाएं प्रकाशित की गई थीं। 
 
गोपाल सिंह नेपाली के संपादन में रतलाम से ही 'पुण्यभूमि' नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भी हुआ था। अब तक रतलाम से प्रकाशित प्रमुख पत्रों में दैनिक प्रसारण, दैनिक चेतना, दैनिक प्रकाश, किरण, हमदेश, आलोकन एवं स्वतंत्र ऐलान के साथ ही साप्ताहिक रतलाम क्रॉनिकल, लोक राज्य, उपग्रह, प्रचंड, रतलाम समाचार, रतलाम केसरी और गगन घोष आदि पत्रों का प्रकाशन होता रहा है। इन पत्र-पत्रिकाओं का रतलाम के पत्रकारिता एवं साहित्य के विकास में अपना अमूल्य योगदान रहा है। 
 
हिन्दी के बड़े समाचार पत्रों के आंचलिक संस्करणों की शुरुआत हुई तो पिछले कुछ वर्षों में रतलाम से कई समाचार पत्रों दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस, दबंग दुनिया और पत्रिका के स्थानीय संस्करणों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन दिनों रतलाम शहर से 6 दैनिक, 21 साप्ताहिक, 2 पाक्षिक एवं 26 मासिक पत्रों का प्रकाशन हो रहा है। 
 
(डॉ. मोहन परमार उज्जैन नगर निगम में जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं। उन्होंने मालवा की हिन्दी पत्रकारिता विषय पर लिखे शोध प्रबंध पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।)
 
(साभार : सर्वोदय प्रेस सर्विस)

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