जब हम दीर्घकालिक या स्थायी शहरों की बात करते हैं, तो हाल ही में जारी हुए एक सर्वे के नतीजे हमें दिल्ली पर चर्चा करने पर मजबूर कर देते हैं। हॉलैंड के एक समूह द्वारा हाल ही में जारी किए गए 'आर्केडिस सस्टेनेबल सिटीज इंडेक्स' में भारत की राजधानी दिल्ली शर्मनाक प्रदर्शन करते हुए 50 शहरों में से 49वें स्थान पर रही है। जर्मनी के फ़्रेंकफ़र्ट शहर को इस सर्वे में पहला व लंदन को दूसरा स्थान मिला। शिकागो 19वें स्थान पर रहा, वहीं मुंबई ने 47वां स्थान प्राप्त किया।
इन सभी शहरों में इस सूचकांक (इन्डेक्स) के निर्धारण के लिए अपनाए गए मापदंडों की तीन श्रेणियां बनाई गई थीं : निवासी, पर्यावरण व अर्थव्यवस्था। कारक जैसे आय में असमानता, स्वास्थ्य सूचकांक, हरियाली का स्तर, संपत्ति की कीमतें, व्यापार करने के लिए सकारात्मक माहौल व सकल घरेलू उत्पाद को ध्यान में रखा गया।
लंदन को पहले स्थान की दौड़ में फ़्रेंकफ़र्ट से पिछड़ना पड़ा। हालांकि इसका कारण पर्यावरण ना होकर यहां प्रॉपर्टी (संपत्ति) की ऊंची कीमतें थीं, जो कि एक अन्य मापदंड था।
अगर हम दिल्ली की बात करें तो यहां प्रॉपर्टी की आसमान छूती दरें, अपनी बदहाली पर आंसू बहाती टूटी-फ़ूटी व जर्जर सड़कें आपको यह सोचने पर मजबूर जरूर करेंगी कि क्या दिल्ली वास्तव में इस रेस में है?
दीर्घकालिकता अथवा स्थायित्व एक समग्र शब्द है। इसका अर्थ है कि मानव व उसके चारों ओर का परितंत्र एक दूसरे के साथ शांति, विकास व सामंजस्य से रहे। आज दिल्ली मास (बढ़ती आबादी), मिजरी (दुर्गति – विकास के नाम पर), व मोकरी (मजाक – आयोजना का) की जीती जागती मिसाल बन गई है।
दिल्ली हमारे देश के दो प्रमुख नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का पालन केन्द्र रही है। एक है हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो विकास और स्वच्छता की बातें करते हुए कभी नहीं थकते व दूसरे हैं अरविन्द केजरीवाल जिन्होंने चुनावों से पहले दिल्ली डायलॉग (संवाद) के माध्यम से अपनी सोच व सपने जनता तक पहुंचाए व दिल्ली सचिवालय तक अपनी राह बनाई, मुख्यमंत्री बनते ही इन्होंने दिल्ली डायलॉग आयोग का गठन भी कियाI दूसरे शब्दों में, इनकी दिल्ली के प्रति कट्टीबधता से इनकार नहीं कर सकताI
हालांकि, दिल्ली की हालत वास्तव में चिंताजनक है। 1400 वर्ग किमी में फ़ैली दिल्ली भारत के नक्शे पर एक छोटे बिंदु जितना स्थान ही रखती है, परन्तु फ़िर भी यह 1.7 करोड़ लोगों को आश्रय देती है। भारत के सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला यह शहर आज एक प्रकार की भौगोलिक व जनसांख्यिक खलबली से जूझ रहा है। क्या दिल्ली के इस जनसंख्या घनत्व को नियंत्रित करने के लिए कोई यथार्थवादी योजना मौजूद है?
दिल्ली का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से गड़बड़ा चुका है। भारत में 1991 में कुल वाहनों की संख्या 2 करोड़ थी जो 2011 में बढ़कर 14 करोड़ तक पहुंच गई। वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोती होना व उस अनुपात में सार्वजनिक परिवहन साधनों के ना बढ़ना दिल्लीवासियों के लिए एक दु:स्वप्न बना हुआ है। यहां की सड़कों व गलियों में वाहनों की रेलमपेल मची हुई है। तो क्या इस समस्या का कोई व्यापक व वास्तविक समाधान उपलब्ध है?
बदहाल सड़कें, चारों ओर फ़ैली हुई धूल, हरियाली की कमी, ट्रैफ़िक नियमों की कम समझ व इनकी ढंग से अनुपालना ना होने जैसे कारकों ने भारतीय नागरिक भावना व समझ का मजाक बना दिया है। सड़कें किसी भी शहर का चेहरा होती है। परन्तु दिल्ली की सड़कें टूट-फूट, धूल, मिट्टी व मानवीय कचरे की दर्दनाक दास्तां बयां करती हैं। लोगों से भरे हुए फुटपाथ, अवैध विक्रेता व छोटे व्यवसायी एक प्रकार से दमघोंटू वातावरण बना रहे हैं। इस पर चारों ओर फ़ैला ध्वनि प्रदूषण कोढ़ में खाज का काम कर रहा है।
चाहे देश के सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने की बात हो या कारपोरेट टैक्स दरों में कमी की, चाहे ‘मेक इन इंडिया’ का प्रचार करना हो या स्वच्छता अभियान का, दिल्ली हमेशा ही हर महत्वपूर्ण गतिविधि का केन्द्र बिन्दु रही है। हालांकि चारों ओर से सीमाबन्द यह शहर आज खुद बीमार है। इस शहर की हवा आज इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि सांस लेने लायक भी नहीं रही।
अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी ने जब वाशिंगटन डीसी में दिये जलाकर दीपावली का उत्सव मनाया था, तो मीडिया ने इस खबर को बड़ी तत्परता से दिखाया था, पर पिछले साल अक्टूबर में जब इन्होनें ही दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के लिए चेतावनी जारी की थी कि दूतावास के कर्मचारी अपने बच्चों को बाहर नहीं खेलने दें क्योंकि वहां की हवा बहुत अधिक प्रदूषित है, तो मीडिया इस खबर को महत्व देने से चूक गया।
वाहनों के भारी ट्रैफ़िक, कमजोर प्रदूषण नियामक कानून व अपर्याप्त हरियाली ने हवा को अशुद्ध व जहरीली बना दिया है। दिल्ली की यह विषाक्त हवा हमें चेतावनी दे रही है कि हम एक बहुत बड़े स्वास्थ्य संकट की चपेट में हैं। परन्तु वायु प्रदूषण के कारण होने वाली रुग्णता व मृत्यु दर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती है, जिसके कारण स्थिति की गंभीरता को अब तक महसूस नहीं किया गया है, परंतु दिल्ली की यह जहरीली हवा शनै: शनै: लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। निम्न आंकड़े से स्थिति की भयावहता को समझनें की कोशिश करते हैं, शिकागो में कुल निलंबित कण (टोटल सस्पेंडिड पार्टिकल – टीएसपी) की मात्रा लगभग 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है (अमेरिका का राष्ट्रीय औसत 40 है)। दिल्ली का वार्षिक माध्य सस्पेंडिड पार्टिक्युलेट मैटर (एसपीएम) 500 से भी अधिक है। (गोआ में यह 100 है)I
आइए पर्यावरण से संबंधित एक और सूचकांक पर नजर डालते हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इन्डेक्स- एक्यूआई) हवा की गुणवत्ता का मापन करता है। इसकी रेंज 0 से 500 होती है। अमेरिका में एक्यूआई औसतन 40 से कम रहता है, जो कि स्वास्थय की दृष्टि से एक सुरक्षित सीमा मानी गई है। पूर्व कथित मामले में अमेरिकी दूतावास द्वारा दिल्ली में एक्यूआई की सीमा 255 बताई गई थी।
दिल्ली की हवा में बेंजीन, नाइट्रोजन डाइ आक्साइड, सल्फ़र डाइ आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइड का स्तर स्वीकृत मानकों से कहीं अधिक है। यह घनी व जहरीली हवा कई बीमारियों जैसे त्वचा रोग, एलर्जी, श्वसन रोग, हृदय रोग व कैंसर का कारण है।
आर्केडिस के सर्वे के नतीजों को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि जब तक कोई कठोर और सुधारात्मक कार्रवाई नहीं होती, तब तक दिल्ली को एक बेहतर शहर बनाना लगभग असंभव है। आज दिल्ली को तीव्र व स्थिर तरीके से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। एक बेहतर दिल्ली बनाने के लिए सिर्फ़ कामचलाऊ प्रयास काफ़ी नहीं हैं, बल्कि केन्द्र व राज्य को आपसी सहयोग से एक सहयोगात्मक और व्यापक विकास के एजेंडे को विकसित करने व उस पर अमल करने की जरूरत है।