जमीनी मुद्दों पर हावी उत्सवधर्मिता और ओछे कटाक्ष

गुजरात विधानसभा का चुनाव संपन्न हो गया। पिछले साढ़े 3 साल के दौरान हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव की तरह यह चुनाव भी भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कंधे पर सवार होकर ही लड़ा। मोदी की छवि देश-दुनिया में एक सफल 'राजनीतिक इवेंट मैनेजर’ की भी बनी है। लेकिन इसके बावजूद राज्यों के पिछले तमाम चुनावों की तरह इस चुनाव में भी मोदी के भाषणों में विकास संबंधी बुनियादी मुद्दे अपनी जगह नहीं बना पाए।


औपचारिक और अनौपचारिक तौर पर 2 महीने से ज्यादा चले प्रचार अभियान में भाजपा के प्रचार का दायित्व मोदी ने ही निभाया। 12 वर्ष तक गुजरात का मुख्यमंत्री और उसके बाद से अब तक देश का प्रधानमंत्री रहते हुए मोदी की छवि देश-दुनिया में एक सफल 'राजनीतिक इवेंट मैनेजर’ की भी बनी है। इस नाते उन्हें 'इवेंट मैनेजमेंट की राजनीति का उस्ताद' माना जाता है। भाजपा के मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी भी अपने इस पुराने चेले को 'श्रेष्ठ इवेंट मैनेजर' का खिताब अता कर चुके हैं। मोदी ने भी अपनी 'विकास पुरुष' की छवि अपने इवेंट और मीडिया मैनेजमेंट के सहारे ही गढ़ी है।
 
 
लेकिन इसके बावजूद राज्यों के पिछले तमाम चुनावों की तरह इस चुनाव में भी मोदी के भाषणों में विकास संबंधी बुनियादी मुद्दे अपनी जगह नहीं बना पाए। विकास के जिस 'गुजरात मॉडल' को उन्होंने देश-दुनिया में प्रचारित किया और जिसके बूते पिछले लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी को बहुमत से दिलाकर वे प्रधानमंत्री बने, उस 'गुजरात मॉडल' की भी उन्होंने पूरे चुनाव अभियान के दौरान कहीं चर्चा नहीं की। विरोधियों पर कटाक्षभरे उनके भाषणों के साथ ही उनके चुनाव अभियान में कोई चीज अगर सबसे ज्यादा हावी रही तो वह है उनका इवेंट मैनेजमेंट या उनकी उत्सवप्रियता।
 
 
हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान हिन्दू-मुसलमान, असली हिन्दू-नकली हिन्दू, मंदिर-मस्जिद, जनेऊ प्रदर्शन, देव-दर्शन आदि के साथ ही गांधी-नेहरू परिवार के पुरखों, मुगल शासकों, आतंकवादी सरगनाओं और पाकिस्तान का स्मरण भी खूब हुआ। लेकिन इन सबसे ज्यादा इस चुनाव को भाजपा नेता के तौर पर प्रधानमंत्री के कर्कश भाषणों और इवेंट मैनेजमेंट के लिए ही याद किया जाएगा।
 
 
3 महीने पहले हालांकि गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ था, मगर चुनावी सरगर्मी शुरू हो चुकी थी। मोदी लगातार अपने इस गृह प्रदेश के दौरे करते हुए समारोहपूर्वक विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन कर रहे थे। इसी सिलसिले में उन्होंने 14 सितंबर को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अहमदाबाद बुलाकर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना का शिलान्यास किया था। इस मौके पर उन्होंने जापानी प्रधानमंत्री के सम्मान में गणतंत्र दिवस की परेड जैसा अत्यंत भव्य समारोह साबरमती के तट पर आयोजित किया था।
 
 
मकसद साफ था- गुजराती जनमानस के सामने जापानी प्रधानमंत्री के साथ अपनी घनिष्ठता का प्रदर्शन करना। यह आयोजन एक तरह से मोदी के चुनाव अभियान की शुरुआत थी। इस आयोजन के ठीक 2 दिन बाद ही गुजरात की महत्वाकांक्षी सरदार सरोवर परियोजना का भी उद्घाटन हुआ। प्रधानमंत्री ने आनन-फानन में इस आधी-अधूरी परियोजना का उद्घाटन भी पूरे गाजे-बाजे के साथ किया। कहने की जरूरत नहीं कि यह जल्दबाजी चुनाव के मद्देनजर ही की गई।
 
 
जब शुरुआत इतनी तड़क-भड़क वाली हो तो उसका समापन भी वैसा ही होना लाजिमी था, लिहाजा अमेरिका से सी प्लेन मंगवाया गया। जमीन के साथ ही पानी की सतह पर भी उतर सकने वाले इस विमान पर सवार होकर मोदी साबरमती नदी से धरोई डेम स्थिति अम्बाजी मंदिर पहुंचे। हालांकि यह एक अलग बहस का विषय है कि कराची से अहमदाबाद पहुंचा यह एक इंजन वाला विमान प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिहाजा से कितना निरापद था और प्रधानमंत्री को इस पर सवार होना चाहिए था या नहीं?
 
 
हालांकि इस विमान के सुरक्षा मानकों से जुड़े मुद्दे को प्रधानमंत्री के सामने उठाया गया था और उन्हें इस विमान की सवारी न करने की सलाह दी गई थी, लेकिन इस सलाह और सुरक्षा से जुड़े नियमों को नजरअंदाज करते प्रधानमंत्री इस विमान पर सवार हुए। इस पूरे जोखिमभरे उपक्रम को समारोहपूर्वक अंजाम देने का मकसद गुजरात के मतदाताओं को यही संदेश देना था कि देखो, गुजरात इतना विकसित हो गया है कि यहां पानी पर भी विमान उतर सकता है।
 
 
यह तो हुई चुनाव अभियान की शुरुआत और समापन की बात। पूरे अभियान के दौरान भी मोदी की उत्सवप्रियता हावी रही। चुनाव प्रचार करते हुए वे कई मंदिरों में गए, जहां उन्होंने समारोहपूर्वक दर्शन-पूजन किया और मीडिया प्रबंधन के जरिए उसका सीधा प्रसारण भी कराया गया। यही आलम उनके द्वारा किए सारे रोड शो का भी रहा। इस सबके दौरान के गुजरात के आम आदमी से जुड़े मुद्दे सिरे से गायब रहे।
 
 
विपक्ष पूछता रह गया कि गुजरात पर कर्ज का बोझ कितना और क्यों बढ़ गया, लेकिन न तो मोदी ने अपने भाषण में इस सवाल का जवाब दिया, न ही उनकी पार्टी के किसी नेता ने। किसानों की बदहाली, नौजवानों की बेरोजगारी, आबादी के एक बड़े हिस्से पर कुपोषण की मार, सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की बदहाली आदि अहम मुद्दे भी प्रधानमंत्री के भाषण का हिस्सा नहीं बन पाए।
 
भाजपा कह सकती है कि गुजरात में ऐसी कोई स्थिति नहीं है और विपक्ष अनर्गल प्रचार कर रहा है। लेकिन भाजपा ने इस अनर्गल प्रचार के जवाब में अपने विकास के बहुचर्चित 'गुजरात मॉडल' की जरा भी चर्चा नहीं की। भाजपा के दावे के मुताबिक यह मान भी लिया जाए कि गुजरात में कही कोई समस्या नहीं है तो यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि उसके स्टार प्रचारकों के भाषणों में नोटबंदी और जीएसटी के फायदों का जिक्र क्यों नहीं हुआ? केंद्र सरकार ने बेरोजगारों और कमजोर तबकों के लिए पिछले साढ़े 3 साल के दौरान स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, मेक इन इंडिया, मुद्रा बैंक आदि योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन इन योजनाओं का भी कोई जिक्र भाजपा की ओर से नहीं हुआ। प्रधानमंत्री या पार्टी के किसी नेता ने नहीं बताया कि इन योजनाओं का क्रियान्यवयन की स्थिति क्या है? या इनसे गुजरात के कितने लोग लाभान्वित हुए हैं।
 
 
प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी नेता पूरे चुनाव अभियान के दौरान अपने लगभग हर भाषण में यूपीए सरकार के 10 वर्षों के दौरान हुए घोटालों का जिक्र तो करते रहे लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि उनकी सरकार इन घोटालों के आरोपियों को अभी तक सजा क्यों नहीं दिला सकी? विपक्ष की ओर प्रधानमंत्री और भाजपा से लगातार सवाल किया जा रहा था किसानों की फसलों के दाम लागत से डेढ़ गुना देने के उनके वायदे का क्या हुआ? लेकिन उसका यह सवाल अनुत्तरित ही रहा।
 
 
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री और भाजपा का पूरा चुनाव अभियान उत्सवधर्मिता, सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने वाले जुमलों और विपक्ष पर ओछे कटाक्षों पर ही केंद्रित रहा। यही अभियान मीडिया में भी सुर्खियां बटोरता रहा। इसके शोर में गुजरात के वास्तविक जमीनी मुद्दे न तो सत्तारूढ़ दल के अभियान में जगह बना पाए और न ही मीडिया में।

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