नरेंद्र मोदी सरकार के लिए चुनौती है नक्सलवाद की सहयोगी शक्तियां?

बुधवार, 10 जुलाई 2019 (13:41 IST)
नक्सलवाद और माओवाद भारत की सबसे बड़ी समस्या है। भारत के 30 में से लगभग 11 राज्य आज नक्सलवाद से प्रभावित है। इन राज्यों के कुछ क्षेत्रों में नक्सलवादी एक समानांतर सरकार चलाते हैं। गृह मंत्रालय की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार नक्सलियों के 21 समूह सक्रिय हैं और उनके सशस्त्र काडरों की संख्या करीब 8,500 से अधिक है जिन्होंने 1980 से अब तक 11,742 आम नागरिकों की हत्या कर दी है। सुरक्षाबलों की बात करें तो 2,947 सुरक्षाकर्मी नक्सलियों के हाथों मारे गए। इसी अवधि में सुरक्षाबलों के हाथों से 4,674 नक्सली मारे गए। यह आंकड़ा 2013 तक का ही है।
 
 
इन समूहों का सपना है भारत के टूकड़े कर एक माओवादी राष्ट्र बनाना। ये नक्सलवादी या माओवादी इस्लामिक आतंकवादियों और पूर्वोत्तर के उग्रवादियों से गठबंधन कर भारत के टूकड़े करने की योजना पर वर्षों से काम कर रहे हैं लेकिन अब तक की भारत सरकार ने इन पर कभी कोई मुकम्मल योजना बनाई हो, ऐसा ज्ञात नहीं होता।
 
यह बहुत चिंता का विषय है कि माओवादियों का इस्लामिक आतंकवादियों और पूर्वोत्तर के उग्रवादियों से गठबंधन है जिसके चलते सभी समूह को आसानी से हथियार और आर्थिक सहायता उपलब्ध हो जाती है। इन्हें सहयोग करने में चीन और पाकिस्तान की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
 
बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन भी इनके संपर्क में रहते हैं। साथ ही भारत के भीतर इनकी सहयोगी शक्तियों की हर क्षेत्र में मौजूदगी सबसे बड़ी चिंता का विषय है। हाल ही में उत्तरप्रदेश एटीएस टीम ने मध्यप्रदेश के भोपाल से 2 नक्सल दंपतियों को गिरफ्तार किया है। ये दोनों ही नक्सल फंडिंग और माओवादी प्रचार में शामिल थे।
 
नक्सलवाद से ग्रस्त राज्य कितने?
भारत के लगभग 11 राज्य आज नक्सलवाद से प्रभावित हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्‍चिम बंगाल, महाराष्‍ट्र और केरल। हालांकि अब देश में जहां भी आदिवासी हैं, वहां नक्सलवाद है। छत्तीसगढ़ में 14 जिलों में से दंतेवाड़ा, बस्तर और सुकमा जिला नक्सलियों का गढ़ है। यहां के नक्सलियों के तार देशभर से जुड़े हुए हैं।
 
इसी तरह आंध्रप्रदेश में 6 जिले, तेलंगाना में 8 जिले, बिहार में 16 जिले, झारखंड में 19 जिले, ओडिशा में 15 जिले, पश्चिम बंगाल में झारग्राम जिला, केरल में 3 जिले, महाराष्ट्र में 3 जिले, उत्तरप्रदेश में 3 जिले और मध्यप्रदेश में 2 जिले नक्सल प्रभावित हैं। हालांकि सरकार के मुताबिक देशभर के करीब 90 जिले नक्सलवाद से जूझ रहे हैं। संपूर्ण देश में कुल 747 जिले हैं।
 
नक्सलवाद की सहयोगी शक्तियां कौन?
वर्तमान में नक्सलवाद या माओवाद को सहयोग करने के लिए चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे राष्‍ट्र सक्रिय हैं, जहां से इन्हें हथियार और धन मिलता है। नक्सलियों के पास बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते हथियार आते हैं। कई बार नक्सली वेश बदलकर हथियारों की खेप बस्तर के जंगलों में ले जाते वक्त पकड़ाए हैं। तब उनके पास से भारी मात्रा में एके-47, गोलियां, विस्फोटक व डेटोनेटर मिले थे।
 
नक्सलियों को बांग्लादेश व म्यांमार जैसे देशों के अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों से भी हथियारों की आपूर्ति होती है, लेकिन इनके बाहरी सहयोगियों से ज्यादा भीतरी सहयोगियों से सरकार ज्यादा चिंतित है। इन पर फिल्म बनाने वाले, किताब लिखने वाले, साहित्य गोष्ठियों में चर्चा करने वाले और मीडिया में इनकी आवाज बनने वाले लोगों को वर्तमान में शहरी नक्सली कहा जाने लगा है, हालांकि इस विषय पर अभी विवाद है।
 
इंटरनेट पर आपको ऐसे ढेरों नक्सली दस्तावेज मिल जाएंगे जिसमें नक्सलवादियों से सहानुभूति रखने वालों की जानकारी, लेख और विचार समाहित हैं। इसमें नक्सलवादी या माओवादियों के विचारों, उनके आंदोलन और भविष्‍य की योजनाओं पर विस्तार से पढ़ा जा सकता है।
 
माओवादियों ने कुछ स्वयंसेवी संगठनों, एनजीओ और मीडिया समूहों को भी प्रभावित कर उनकी सहानुभूति हासिल कर रखी है। ये सभी शक्तियां तब भी सक्रिय रहती हैं जबकि नक्सलवादी कोई बड़ा-सा हमला करके सरकार, मीडिया या आलोचकों के निशाने पर आ जाते हैं। ऐसे में ये शक्तियां डेमेज कंट्रोल का कार्य करती हैं।
 
हालांकि ऐसे भी मौके आए हैं, जब सरकारों ने इन्हीं सहयोगी शक्तियों के कारण नक्सलियों के समक्ष घुटने टेके हैं। नक्सलियों को सहयोग करने वाली शक्तियों और राजनीतिक दखलंदाजी पर राज्य और केंद्र का अब तक नपुंसक रवैया रहा है। वह भी तब जब नक्सलियों की वारदातों में साल-दर-साल सैकड़ों पुलिसकर्मी और इतनी ही संख्या में निर्दोष नागरिक मारे जाते रहे हैं।
 
उल्लेखनीय है कि राजनीतिक लाभ के लिए आंध्र के दिवंगत मुख्यमंत्री नंदमूरि तारक रामाराव ने नक्सलियों को सच्चा देशभक्त माना था। दूसरी ओर मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि नक्सली भी अपने ही लोग हैं। इस तरह की स्थिति को देखते हुए नक्सली अगर भारत को 'बनाना रिपब्लिक' समझते हों तो यह उनकी गलती नहीं, वरन राज्य और केंद्र सरकार की कायरता का परिणाम है।
 
नक्सलवादी क्या करते और चाहते हैं?
नक्सलवादी आदिवासियों, गरीबों और मजदूरों को भड़काकर सरकार के खिलाफ उनके हाथ में हथियार थमाने का कार्य तो करते ही हैं, साथ ही ये अपने मजबूत क्षेत्र में समानांतर सरकार चलाते हैं और वसूली करते हैं। यह अपने क्षेत्र में आने वाली सभी सरकारी सुविधाओं को रोकते हैं। इसके अलावा ये अपने क्षेत्र में पड़ने वाली जितनी खदानें, उत्पादक इकाइयां, बिजलीघर और सरकारी विभागों के दफ्‍तर हैं, उन सभी से ये वसूली करते हैं। जंगल में वनोपज और तेंदूपत्ता के कारोबारी इन्हें नियमित तौर पर रकम देते हैं।
 
2014 की केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में भाकपा (माओवादी) हर साल उद्योगपतियों, कारोबारियों और ठेकेदारों से करीब 140 करोड़ रुपए की उगाही कर रहे हैं। गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। मोटे तौर पर माना जाता है कि प्रतिवर्ष उनके पास सभी राज्यों से अनुमानित 1,200 करोड़ की राशि पहुंचती है, हालांकि इसका सही आंकड़ा बताना मुश्‍किल है। इन रुपयों से ये अपने संगठन को चलाते हैं।
 
नक्सली नहीं चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में भारत सरकार की पुलिस और सेना का कोई दखल हो इसीलिए वे जंगल में अपना एकछत्र राज्य कायम रखने के लिए बारूदी सुरंग बिछा देते हैं। पुलिस और सैन्य दल पर हमला करते रहते हैं। वे उन ग्रामीणों और आदिवासियों को भी मार देते हैं, जो उनके हिसाब से नहीं रहते हैं या उनकी मुखबिरी करते हैं।
 
नक्सली, गरीब आदिवासियों व किसानों को उनका हक दिलाने के नाम पर हत्याएं करने के लिए उकसाते रहे हैं। ये सर्वाधिक संगठित अपराधियों की फौज चला रहे हैं जिसमें सबसे निचले स्तर के कार्यकर्ता को ही अपना सब कुछ गंवाना पड़ता है जबकि इनके बड़े नेता शहरों में रहकर व छिपकर अय्याशियां करते हैं।
 
यह बात सभी जानते हैं कि नक्सलवाद कोई विचार या विचारधारा नहीं, बल्कि आपराधिक मनोवृत्ति वाले लोगों के सबसे संगठित गिरोह का नाम है, जो कि आम लोगों की हत्याएं करते हैं, उन्हें हथियार उठाने के लिए मजबूर करते हैं, आदिवासी लड़कियों का शोषण करते हैं और वे सभी आपराधिक काम करते हैं, जो कि अपराधी गिरोह करते हैं।
 
नक्सलियों ने भारत के आदिवासी, दलित, पिछड़े व जंगली इलाके में जन-असंतोष का फायदा उठाकर अपना शक्तिशाली आधार बना लिया है। इसी के बलबूते भारत और नेपाल की माओवादी पार्टी का संपर्क और समन्वय नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठनों तक फैल गया है।
 
जानकार मानते हैं कि नक्सलवादियों की नेपाल से लेकर आंध्रप्रदेश के समुद्र तट तक 'माओवादी बेस एरिया' तक एक नया राष्ट्र बनाने की योजना है। माओवादी तत्व चीन की तथाकथित 'शह' से भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्रवादी संगठनों से हाथ मिलाकर नेपाल के पशुपतिनाथ से लेकर आंध्रप्रदेश के तिरुपति तक 'लाल गलियारा' (रेड कॉरिडोर) बनाने की जुगत में लगे हैं।
 
क्या करना चाहिए सरकार को?
वर्तमान में सबसे ज्यादा आवश्यकता ऐसे नेतृत्व की है जिसमें इस समस्या को समूल नष्ट करने की इच्छाशक्ति और विश्वास हो। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में नरेन्द्र मोदी सरकार में गृहमंत्री बने अमित शाह इस संबंध में कोई सख्‍त कदम उठाएंगे।
 
हालांकि जानकार मानते हैं कि इस समस्या से निपटने का सबसे कारगर तरीका है कि सबसे पहले नक्सली प्रभावित राज्य मिलकर एक केंद्रीय टास्क फोर्स का गठन करें जिसे सभी राज्यों में कार्रवाई की स्वतंत्रता हो, साथ ही नक्सलियों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोगियों की पहचान करके उन पर पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
 
नेपाल तथा पूर्वोत्तर से लगी सीमा पर चौकसी बढ़ाई जाए जिससे कि हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति पर रोक लगे। ऐसे स्थानीय तत्वों की पहचान करें, जो नक्सलियों को मदद देते हों। इस समस्या से निजात पाने के लिए सबसे जरूरी है कि जन साधारण का समर्थन और विश्वास हासिल किया जाए।
 
इस बीच नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा और जनहित के कार्यों को प्राथमिकता से कराया जाए, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वयंसेवी संस्थाओं को काम करने की छूट और प्रोत्साहन देना चाहिए। जनसाधारण और पिछड़े आदिवासियों के उत्थान की योजना का बेहतर कार्यान्वयन किया जाए।

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