इस्लाम और बुर्के से भिड़ी जर्मन पार्टी

जर्मनी में तेजी से उभर रही दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी ने मुसलमानों के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी है। इसने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि इस्लाम जर्मन संविधान के अनुकूल नहीं है और मुसलमानों का जर्मनी में स्वागत नहीं है। पार्टी ने मीनारों और बुर्के पर पाबंदी लगाने की मांग की है। जर्मनी का कानून धार्मिक आजादी के बुनियाद पर बना है और यहां की लगभग पांच फीसदी आबादी इस्लाम धर्म को मानती है। एएफडी के घोषणापत्र से जर्मन राजनीति और समाज में बड़ी हलचल हो सकती है।
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किसी और समय में एएफडी के इस बयान को तूल नहीं दिया जाता। लेकिन जर्मनी और यूरोप इस वक्त शरणार्थियों की समस्या में फंसा है और यहां शरण लेने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम राष्ट्रों से पहुंच रहे हैं, लिहाजा यह बयान संवेदनशील हो गया है। सिर्फ तीन साल पुरानी इस पार्टी ने पहले कहा था कि पुलिस यूरोप में घुस रहे शरणार्थियों को गोली मार दे। पार्टी यूरोपीय संघ, यूरो मुद्रा और शरणार्थियों का विरोध भी करती है।
 
बेतुके बयानों और नीतियों के बाद भी एएफडी (अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड– जर्मनी के लिए विकल्प) तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पिछले आम चुनाव में इसे पांच फीसदी से कम वोट मिले थे और यह संसद में जगह बनाने में नाकाम रही थी। जर्मनी के संसद या विधानसभा में किसी पार्टी को तभी प्रतिनिधित्व मिलता है, जब उसे कम से कम पांच प्रतिशत वोट मिले हों। लेकिन इस बीच यह जर्मनी के 16 में से आठ राज्यों की विधानसभाओं में पहुंच चुकी है।
 
अगले साल जर्मनी में आम चुनाव होने हैं और इसे चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू के लिए खतरे की घंटी समझा जा रहा है। ताजा सर्वे के मुताबिक इस पार्टी को जर्मनी के लगभग 15 फीसदी लोगों का समर्थन प्राप्त है और अगर रुझान ऐसे ही रहे, तो 2017 के चांसलर चुनावों में यह पार्टी किंगमेकर की भूमिका  निभा सकती है।
 
विदेशी धर्म है इस्लामः पार्टी का कहना है कि इस्लाम को वैसी धार्मिक आजादी नहीं मिलनी चाहिए जैसी ईसाइयत को मिली है, क्योंकि यह “हमारे लिए विदेशी धर्म” है। 
पार्टी ने अपने घोषणापत्र में एक अध्याय रखा है, “इस्लाम जर्मनी का हिस्सा नहीं”। चांसलर मैर्केल बार कह चुकी हैं कि इस्लाम जर्मनी का अभिन्न अंग है और इस्लाम को समझने के लिए यहां छोटी बड़ी कई कोशिशें हो रही हैं, जिनमें प्रति वर्ष इस्लाम कांफ्रेंस के अलावा स्कूलों में इस्लाम की पढ़ाई भी शामिल है।
 
जर्मनी में 40 लाख से ज्यादा मुसलमान रहते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा आबादी तुर्क मूल के लोगों की है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के पुनर्निर्माण के लिए काफी तुर्क यहां आए थे। हाल में सीरिया से आ रहे लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। सिर्फ पिछले साल ही 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी जर्मनी पहुंचे हैं, जिनमें से ज्यादातर सीरियाई मुसलमान हैं। जर्मनी एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों को मानने की स्वतंत्रता है। यहां न सिर्फ मस्जिद, बल्कि गुरुद्वारे और हिन्दु मंदिरों की भी अच्छी खासी संख्या है।
 
दक्षिणपंथी राजनीति का जोरः यूरोपीय देशों में अचानक दक्षिणपंथी राजनीति सक्रिय हो उठी है। पेरिस और ब्रसेल्स के आतंकवादी हमलों के बाद ऐसी पार्टियों के प्रति लोगों की सहानुभूति भी बढ़ी है। जर्मनी के पड़ोसी फ्रांस में भी फ्रंट नेशनल को कामयाबी मिल रही है। जर्मन एएफडी की तरह फ्रंट नेशनल भी एकीकृत यूरोप और यूरो मुद्रा के खिलाफ है, यह इस्लाम धर्म का भी विरोध करता है। ताजा सर्वे के अनुसार फ्रांस में इसे 40 फीसदी लोगों का समर्थन मिल रहा है और 2017 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में इसे कामयाबी मिल सकती है। जिस वक्त फ्रांस में इस पार्टी का दबदबा बढ़ रहा था, मीडिया और दूसरे राजनीतिक दलों ने इसे नजरअंदाज कर रखा था।
 
पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद पिछले 25 सालों में जर्मनी यूरोप के लिए एक मिसाल बन कर उभरा है। स्थिर लोकतंत्र और आर्थिक शक्ति के अलावा यह अलग अलग संस्कृतियों के घुलने मिलने वाले देशों के लिए आदर्श बना है। हाल के शरणार्थी संकट में यह रूप देखने को मिला है। लेकिन दक्षिणपंथी अलगाववादी राजनीति जर्मन मूल्यों पर हमला कर सकती है।
 
संवेदनशील इतिहासः धर्म विशेष के खिलाफ उठाया गया कदम जर्मनी को उसके नाजी इतिहास की याद दिलाता है। हिटलर ने यहूदी धर्म को उखाड़ फेंकने का संकल्प किया था और उसके काल में 60 लाख यहूदियों की हत्या की गई थी इसकी भयानक याद आज भी ताजा है। इस्लाम के खिलाफ एएफडी का बयान कुछ उसी रास्ते पर जाता है। जर्मन इस्लामी संघ के प्रमुख ऐमान मजयेक ने एएफडी को नाजीवाद से जोड़ भी दिया है, “हिटलर काल के बाद यह पहला मौका है, जब किसी पूरे धर्म को निशाने पर लिया गया है।”
 
असल में यह पार्टी लोगों में बढ़ रहे डर की भावना का फायदा उठा रही है। शरणार्थियों को लेकर संशय की हालत और हाल में यूरोप में बढ़ रहे आतंकवादी घटनाओं की आड़ में पार्टी वोटरों का ध्यान खींचने में सफल हुई है। इसके लिए जर्मनी और दूसरी यूरोपीय देशों की सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं, जिन्होंने इन मुद्दों को लंबे वक्त तक ठंडे बस्ते में पड़े रहने दिया।

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