किसी भी राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री को अपने ही नागरिकों के साथ क्या बात करना चाहिए, ख़ासकर उस स्थिति में जिसमें कि सारी दुनिया आज है यानी कोई भी एक मुल्क दूसरे की उस तरह से मदद करने की हालत में नहीं है जैसा कि एक अलिखित व्यवहार आमतौर पर आपदाओं के दौरान रहता आया है?
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को ठीक नौ बजे जिस बात का आह्वान किया क्या देश की 130 करोड़ जनता उसी का रात भर से सांसें रोककर प्रतीक्षा कर रही थी? क्या वह कुछ ऐसा नहीं सोच रही थी कि मोदी ‘दस दिनों के बाद ‘लॉक डाउन’ के सम्भावित तौर पर ख़त्म होने और उसके बाद उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों में राष्ट्र से अपेक्षा का कोई संकेत देकर उसे आश्वस्त करेंगे? पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री इस समय दूसरे राष्ट्राध्यक्षों के सम्पर्क में हैं। कहाँ क्या चल रहा है उसके पल-पल की उन्हें जानकारी है। मुख्यमंत्रियों और अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए वे लगातार देश की नब्ज टटोलने में लगे हैं। इस तरह की उम्मीदों के विपरीत कि मोदी इन सब बातचीतों का कोई निचोड़ फ़ैसलों के तौर पर देश के साथ शेयर करेंगे, क्या यह सुनकर निराशा नहीं हुई होगी कि ‘अब’ लोगों को बिजली की रोशनी गुल करके नौ मिनट के लिए दिये-मोमबत्तियाँ या टॉर्च जलाना है? आख़िर किसलिए? क्या केवल इस एक कदम से सम्पूर्ण देश के हित में कोई बड़ा मांगलिक कार्य सिद्ध होने जा रहा है? ग्रहों की स्थितियों के जानकार ही इस विषय पर ज़्यादा ‘रोशनी’ डाल सकते हैं।
दूसरे मुल्कों में इस समय उच्च पदों पर बैठे लोग और वहाँ का मीडिया अपने नागरिकों से कई तरह की बातें कर रहा है। मसलन, डॉक्टरों समेत सारे हेल्थ वर्करों को दबाव से मुक्त कर कुछ आराम उपलब्ध करवाने की सख़्त ज़रूरत है। वे उन लाखों शरणार्थियों के भविष्य के बारे में बात कर रहे हैं जो अत्यंत ही अमानवीय परिस्थितियों में शिविरों और जेलों में क़ैद हैं। वे युद्धरत देशों के बीच युद्ध-विराम की बात कर रहे हैं। वे बातें कर रहे हैं कि अब प्रतिदिन या सप्ताह कितने लाख लोगों की टेस्टिंग कर सकते हैं?
क्या प्रधानमंत्री को जनता पर अभी भी पूरा भरोसा नहीं है कि महामारी से लड़ने के उनके संकल्प और सरकार की तैयारियों को लेकर वे जो कुछ भी कहेंगे और चाहेंगे उसका पत्थर की लकीर की तरह पालन किया जाएगा? तीन अवसर निकल चुके हैं। पहला आभार-तालियाँ बजवाने में, दूसरा लॉक डाउन की घोषणा में और तीसरा दिये-मोमबत्ती जलाने का आह्वान करने में। वह सब कहने से पहले जिसे कि जनता उनके मुँह से सुनना चाहती है, प्रधानमंत्री शायद कुछ और संदेश राष्ट्र के नाम जारी करना चाहते हैं।