-राघवेंद्र प्रसाद मिश्र
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। सत्ता हासिल करने के लिए कब कौन किसका दामन थाम ले कुछ कहा नहीं जा सकता। अवसरवाद की राजनीति में नेताओं के चाल, चरित्र व चेहरे को समझ पाना थोड़ा मुश्किल है। भाजपा के बढ़ते जनाधार ने देश की राजनीति को एक नए मोड़ पर ला दिया है। एक-दूसरे की दुश्मन बनी पार्टियां भी भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए अब साथ आने में कोई संकोच नहीं कर रही हैं। वे पार्टियां आज एक साथ खड़े होने को तैयार हैं जिनकी विचार धारा एक-दूसरे के विपरीत रही हैं। उत्तर प्रदेश की सियासत में कुछ ऐसा ही प्रयोग होता दिख रहा है। गेस्ट हाउस कांड के बाद से एक दूसरे पर हमलावर रही सपा-बसपा में तालमेल की नींव पड़ती दिख रही है, जिसकी शुरुआत गत चार मार्च को बसपा सुप्रीमो मायावती ने फूलपुर और गोरखपुर में हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को समर्थन करके कर दिया है। हालांकि इस समर्थन के एलान के बाद से यह कयास लगाया जाने लगा है कि बसपा केंद्र में भाजपा के खिलाफ एक बड़े राष्ट्रीय गठबंधन के लिए तैयार है।