पेरिस की सड़कों पर चूहों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। जनता का एक वर्ग उनका सफ़ाया चाहता है, तो एक दूसरा वर्ग उनके भी जीवित रहने के अधिकार की पैरवी करता है। फ्रांस की राजधानी पेरिस चूहों का गढ़ बन गई है। शहर के नीचे कचरे व गंदे पानी की भूमिगत नालियों का व्यापक जाल है। चूहे वहीं रहते-बसते हैं।
उनके खाने-कुतरने लायक चीज़ों की वहां कोई कमी नहीं होती। ग़ंदे पानी के साथ बहकर खाना आता रहता है। नालियों की सीमेंट-कांक्रीट की बनी दीवारों में चूहे छेद तक कर डालते हैं। नालियां बनाते समय किसी ने सोचा ही नहीं था कि वहां चूहे भी कभी अड्डा जमा लेंगे। समय के साथ चूहे बाहर निकलने और दिनदहाड़े पेरिस की सड़कों पर बेधड़क धमाचौकड़ी भी करने लगे हैं। पूरा शहर विस्मित भी है और आतंकित भी।
पेरिस के निवासी शिकायत करते हैं कि चूहों के कारण बच्चों ही नहीं, बड़ों के लिए भी खुली जगहों पर जाना, बगीचों आदि में कुछ समय बिताना या खेलना-कूदना दूभर हो गया है। इस कारण पेरिस के अधिकांश निवासी चूहों के आतंक का अंत चाहते हैं। पर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो चूहों का बचाव करते हैं। उन्होंने अपने संगठन भी बना रखे हैं। वे कहते हैं, 'चूहे बहुत ही संवेदनशील जीव हैं। राजनेताओं का उनके साथ बर्ताव हमें स्वीकार्य नहीं है।'
चूहेमारों का काम बढ़ गया है : इवों रांबू पेरिस के ही रहने वाले हैं। उन लोगों में से एक हैं, जो चूहे पकड़ने और मारने का काम करते हैं। कहते हैं, मेरे कुछ ग्राहक मुझे आधी रात या सुबह 2 बजे से ही फ़ोन करने लग जाते हैं। रविवार को भी फ़ोन आते हैं। काम इतना बढ़ गया है कि अपने मोबाइल फ़ोन का नंबर अब मैं किसी को देता ही नहीं।
इवों रांबू का काम एक ही साल में एक-तिहाई बढ़ गया है। कहते हैं, लोग चूहे देखते ही बुरी तरह घबरा जाते हैं। कोविड महामारी ने चूहों का रंग-ढंग बहुत बदल दिया है। वे जान गए हैं कि हम मनुष्य उनके लिए ख़तरा नहीं हैं, क्योंकि हम उनसे डरते हैं। लॉकडॉउन वाले दिनों में सड़कें ख़ाली रहा करती थीं। चूहों ने उन्हीं दिनों सड़कों पर क़ब्ज़ा करना सीख लिया।
चूहे खोखली जगहों में छिपते हैं : इवों रांबु के पास एक वैन है। उसमें कैमरा, दीवारों आदि में छेद को या खोखली जगहों को रुंधने के लिए ज़रूरी सामग्री, चूहे फंसाने के ट्रैप और चूहों को ललचाने वाले चारे रखे रहते हैं। इवों रांबु को जहां कहीं बुलाया जाता है, वहां सबसे पहले वे यह पता लगाते हैं कि घर में चूहे कहां रहते-छिपते होंगे? कहां से आते-जाते होंगे? रांबु ने पाया है कि चूहे प्राय: खोखली जगहों में छिपते हैं।
बिजली के केबल आदि छिपाने के लिए बनी दोहरी दीवारों के बीच की खाली जगहें चूहों को सबसे अधिक पसंद हैं। वहां चूहे बिजली के केबल वाले रबर या प्लास्टिक के इन्सुलेशन को कुतरकर क्षतिग्रस्त कर देते हैं। उन्हें तो कुछ नहीं होता, किंतु देर-सवेर शॉर्ट-सर्किट से आग लगने का ख़तरा बढ़ जाता है। घरों में आग लगने की कई घटनाएं इसी तरह होती हैं। चूहों को फंसाने के ट्रैप में 'रोडेन्टिसीड' नाम की चूहे मारने की एक दवा रखी जाती है। वह चूहों के खून को इतना तरल बना देती है कि वे मर जाते हैं।
ढीठ और निर्भीक चूहे : पेरिस के चूहे इतने ढीठ और निर्भीक हो गए हैं कि लोगों और वाहनों की भीड़-भाड़ के बीच भी दिनदहाड़े सड़कों और गली-कूचों में उछल-कूद मचाए रहते हैं। इससे पेरिस की छवि को बड़ी आंच पहुंच रही है। 2024 में वहां अगले ओलंपिक खेल होने वाले हैं। लोग इन चूहों के फ़ोटो और वीडियो बनाते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर डालकर अपनी भड़ास उतारते हैं। इससे पेरिस की बदनामी तो होती ही है, आम जनता का डर और अधिक बढ़ता है। पेरिस के नगर पालिका अधिकारियों को भी खरी-खोटी सुननी पड़ती है।
दूसरी ओर जनता द्वारा चुनी गई पेरिस की नगरपालिका में कई ऐसे पार्षद भी हैं, जो 'जीवदया' के कायल हैं। दुश्का मार्कोविच जीव-जंतुओं के प्रति दयालु एक ऐसी ही पार्टी की सहसंस्थापक और पेरिस की नगर पार्षद भी हैं। वे कहती हैं, 'ऐसा नहीं है कि चूहे मुझे बहुत पसंद हैं लेकिन मुझे उनसे कोई घृणा भी नहीं है। मैं समझती हूं कि चूहों के प्रति हमारी घृणा कुछ ज़्यादा ही अतिरंजित है, पूर्वाग्रहों पर आधारित है। हमें उन्हें निरपेक्ष भाव से देखना और स्वीकार करना चाहिए। वे भी अन्य जीव-जंतुओं की तरह ही एक जीव हैं।'
'आवारा चूहे' कहा जाए : दुश्का मार्कोविच का सुझाव है कि पेरिस के चूहों को 'आवारा चूहे' कहा जाए, क्योंकि अन्यथा लोग चूहों को हमेशा अतीत की महामारी प्लेग और उससे मरने वालों की भारी संख्या के साथ जोड़कर देखेंगे। दुश्का मार्कोविच के इन विचारों और सुझावों ने पेरिसवासियों को कुछ समय के लिए आगबबूला कर दिया।
चूहों के प्रति सहानुभूति रखने वाले कुछ दूसरे लोगों का सुझाव था कि कचरा उठाने वाली गाड़ी सुबह के बदले शामों को आया करे। रसोई का कचरा पूरी रात पड़े रहने के बदले यदि शाम तक उठा लिया जाएगा तो चूहों को अपने बिलों और नालियों से बाहर निकलकर उसे खाने और अपनी संख्या बढ़ाने का मौका भी बहुत कम मिलेगा।
पेरिस को वैसे 'प्रेम-नगरी' भी कहा जाता है, लेकिन इस समय वहां मनुष्यों से कहीं अधिक चूहे रहते हैं। पेरिस में रहने वालों की जनसंख्या केवल 21 लाख है जबकि वहां आतंक मचा रहे चूहों की संख्या 60 लाख तक आंकी जाती है। इस 'प्रेम-नगरी' में चूहों के प्रेमी भी कुछ कम नहीं हैं। वे अधिकतर सफ़ेद चूहे पालते हैं। उन्हें कंधे पर रखकर हवाख़ोरी करते या उन्हें चूमते-थपथपाते भी दिखेंगे। उनका दावा है कि चूहे बहुत साफ़-सुथरे जीव हैं। अपने आपको बार-बार झाड़ते-पोंछते हैं। लगभग कुत्तों जैसे ही हमारे मित्र हैं। कुत्ते चाहते हैं कि उन्हें हमेशा सहलाया-थपथपाया जाए। लेकिन चूहे ऐसी अपेक्षा नहीं रखते।
पेरिस में ही अगला ओलंपिक होगा : पेरिस को 20 प्रशासनिक इकाइयों में बांटा गया है। इन इकाइयों को 'अरोंदिसेमां' कहा जाता है। उनका अपना कोई नाम नहीं है। किसी नाम के बदले उन्हें 1 से 20 तक की संख्याओं से जाना जाता है। 17 नंबर वाले 'अरोंदिसेमां' के मेयर से वहां के किंडरगार्टनों और एक स्कूल ने शिकायत की कि उनके परिसरों पर चूहों ने क़ब्ज़ा कर रखा है।
मेयर ने सोचा, पेरिस देश की राजधानी है, हर दिन लाखों पर्यटक आते हैं, यहीं अगला ओलंपिक होगा तो चूहे देखकर लोग क्या कहेंगे? मेयर ने एक नया ऐप बनवाया। लोगों से कहा कि वे जब भी, जहां कहीं भी चूहे देखें, इस ऐप के द्वारा उनके दिखने का पता-ठिकाना सूचित करें। ऐप बनते ही शिकायतों की झड़ी लग गई।
ऐसा भी हुआ है कि चूहों से लड़ने पर प्रतिवर्ष 15 लाख यूरो यानी लगभग 15 करोड़ रुपए ख़र्च करने वाली पेरिस की नगरपालिका के हिलने-डुलने से पहले ही लोगों ने आपस में मिलकर चूहों से खुद ही निपटना शुरू कर दिया। सप्ताहांत वाले दिनों में उनकी स्वयंसेवी टोलियां पार्कों और मैदानों में चूहों के बिलों और छिपने की जगहें ढूंढ-ढूंढकर उनका सफ़ाया करने लगीं।
बीमारियां फैलने का ख़तरा : चूहे क्योंकि गंदी नालियों और कूड़े-कचरे के कंटेनरों में आते-जाते रहते हैं इसलिए उनके द्वारा बीमारियां फैलने का ख़तरा भी सदा बना रहता है। यह शोध अभी अपनी प्राथमिक अवस्था में ही है कि चूहे कैसी बीमारियां फैलाते हैं?
पेरिस का जैवरासायनिक शोध संस्थान 'अंस्तितूत पस्त्यौर' चूहों के माध्यम से होने वाली बीमारी 'लेप्टोस्पिरोसिस' पर काम कर रहा है। इस बीमारी की जड़ में 'लेप्टोस्पीरा' कहलाने वाले बैक्टीरिया होते हैं। वे चूहों तथा कई अन्य जानवरों के मलमूत्र से फैलते हैं और हमारी त्वचा पर के घावों या नाक की श्लेष्मल झिल्ली (Mucus membrane) के रास्ते से हमारे शरीर में पहुंचते हैं। 'लेप्टोस्पीरा' बैक्टीरियाधारी चूहे न तो स्वयं कभी बीमार होते हैं न आजीवन इस बैक्टीरिया से मुक्ति पाते हैं।
'लेप्टोस्पिरोसिस' के लक्षण कई दूसरी बीमारियों जैसे ही होने के कारण उसकी पहचान बहुत कठिन होती है। मोटे तौर पर यह गंभीर क़िस्म के फ्लू (इंफ्लूएन्ज़ा) जैसी ही एक बीमारी है। बैक्टीरियाजनित होने के करण इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा किया जाता है, किंतु क़रीब 10 प्रतिशत मामलों में मृत्यु भी हो जाती है। इस कारण इस बीमारी और चूहों की भरमार को हल्के में नहीं लिया जा सकता। चिंता की बात यह है कि पेरिस में इस बीमारी से पीड़ित होने वालों की संख्या बढ़ रही है। 2014 के बाद से बीमार होने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 300 से बढ़कर अब 600 हो गई है।
पिस्सू रोगाणुवाहक बनते हैं : 'अंस्तितूत पस्त्यौर' के शोधकों ने पाया है कि प्लेग के रोगाणु फैलाने का काम चूहे नहीं, वे परजीवी पिस्सू करते हैं, जो चूहों पर ही जीते-पलते हैं। किसी चूहे के मरते ही वे उसे छोड़कर किसी दूसरे जीते-जागते शरीर को ढूंढते हैं। यह दूसरा शरीर मनुष्य का भी हो सकता है। तब पिस्सू के शरीर में पल रहे प्लेग के रोगाणु पिस्सू के डंक से होकर नए शरीर में पहुंच जाते हैं और वहां अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं। यूरोप में प्लेग के मामले अब नहीं मिलते, पर एशिया-अफ्रीका में जब-तब ऐसे मामले मिला करते हैं।
चूहों से निपटने के लिए पेरिस में कई तरकीबें आजमाई जा रही हैं। ऐसी ही एक युक्ति है नेवले जैसे एक समूरदार जानवर की सहायता लिया जाना, जिसे चूहों का जन्मजात शत्रु माना जाता है, चूहों का खोज-खोजकर सफ़ाया कर देना। अंग्रेज़ी में इस जानवर को 'फ़ेर्रेट' कहा जाता है। यह जानवर चूहों के बिलों या सुरंगों के भीतर घुस जाता है। चूहे उसे देखते ही निकल भागने का प्रयास करते हैं। कुछ उसकी पकड़ में आते हैं, तो कुछ नहीं।
जो चूहे इस जानवर की पकड़ में नहीं आते, बिल के मुहाने पर खड़ा एक प्रशिक्षित कुत्ता झपट्टा मारकर या तो उनका काम तमाम कर देता है या उन्हें इतना घायल कर देता है कि वे भाग ही नहीं सकें। इस विधि से चूहों का हर कुशल शिकारी एक दिन में कई सौ चूहों का सफ़ाया कर देता है।
नगर केंद्र में भी चूहों की चहल-पहल : पेरिस का मुख्य नगर केंद्र भी चूहों की चहल-पहल से मुक्त नहीं है। तब भी महिलाओं की प्रधानता वाले पशु-प्रेमियों का एक संगठन वहां चूहों के बचाव में सड़कों पर उतर आया है। इस संगठन का कहना है कि चूहे भी संवेदनशील प्राणी हैं। उन्हें भी दर्द होता है। उनके प्रति हमारे राजनेताओं का निर्मम व्यवहार स्वीकार्य नहीं है।
इन लोगों का दावा है कि फ्रांस में कुत्ते जितने लोगों को काटते हैं, चूहे उतने लोगों को नहीं काटते। तो क्या कुत्तों की जान ली जाती है? नहीं ली जाती है न? अत: समय आ गया है कि चूहों के प्रति दुर्भावना का भी अंत हो। इन पशु-प्रेमियों की मांग है कि पेरिस शहर चूहों की मार-काट बंद करे और दुनिया के लिए जीवदया का एक आदर्श बने।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)