भारत को इजराइल के साथ रहना चाहिए या कि ईरान के साथ?

अनिरुद्ध जोशी

शुक्रवार, 20 जून 2025 (15:02 IST)
वर्तमान में भारत के इजरायल और ईरान दोनों से ही संबंध अच्छे हैं। भारत को इजराइल के साथ रहना चाहिए या कि ईरान के साथ? इस मुद्दे पर सरकार की राय अलग हो सकती है और भारतीय जनता की अलग। यदि हम सीधे तौर पर कहें तो भारतीय मुसलमानों की आस्था ईरान से जुड़ी है। उसमें भी शिया मुसलमान ईरान का खुलकर समर्थन करते हैं। भारत में मुसलमानों के अलावा भी कई गैर हिंदू ईरान का समर्थन करते हैं।
 
हालांकि इस पर मतभिन्नता बहुत है। भारत में सिर्फ हिंदू या मुसलमान नहीं रहते हैं। करीब ढाई करोड़ ईसाई और इतने ही सिख हैं जिनमें भी मत भिन्नता है। एक तबका धर्म के आधार पर ईरान का समर्थन करता है तो दूसरा तबका ईरान से राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के आधार पर ईरान का समर्थन करता है। यह भी माना जा सकता है कि कुछ कट्टरपंथी हिंदू इसलिए इजराइल का समर्थन करते हैं क्योंकि वह मुसलमानों का दुश्मन है। हालांकि देश का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा भी है जो इजरायल-ईरान के संघर्ष से बिल्कुल अनजान है।
 
हमने ऊपर धर्म की बात इसलिए कही क्योंकि वर्तमान में दुनिया में जहां भी युद्ध चल रहा है उसके पीछे मूल में धर्म, भाषा और जातिवाद ही दोषी है। पिछले 1500 वर्षों में मजहब की लड़ाई में करीब 8 मिलियन यहूदी, 10 मिलियन ईसाई, 15 मिलियन मुस्लिम और 80 मिलियन से भी अधिक हिंदू, बौद्ध और पारसी मारे गए हैं, जिसमें हिंदुओं की संख्या ज्यादा है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, अनुमानतः 16 मिलियन लोग मारे गए। दूसरे विश्व युद्ध में अनुमानित 70 मिलियन लोग मारे गए थे और अब तीसरे विश्व युद्ध की बात हो रही है। चलिए अब हम आते हैं मूल प्रश्न पर। 
 
महाभारत की कहानी से समझे धर्म का पक्ष:
महाभारत युद्ध शुरू होने वाला था तो दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही श्रीकृष्‍ण के पास सहायता मांगने गए थे। श्रीकृष्‍ण के सामने धर्मसंकट था क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों से ही उनके गहरे संबंध थे। लेकिन यहां एक खास बात यह थी कि अर्जुन ने श्रीकृष्‍ण को कभी धोखा नहीं दिया था और न ही उन्होंने कभी अपमान किया था। दूसरी ओर दुर्योधन ने तो श्रीकृष्‍ण का कई बार अपमान भी किया और एक बार तो उसने श्रीकृष्‍ण को भरी सभा में बंधन बनाने का काम भी किय। यह भी कि दुर्योधन ने श्रीकृष्‍ण के शत्रु शिशुपाल और जरासंध का भी कई दफे साथ दिया था। ऐसे में यदि श्रीकृष्‍ण चाहते तो वे दुर्योधन को स्पष्ट मना कर सकते थे कि मुझे तुम्हारा नहीं अर्जुन का साथ देना है लेकिन उन्होंने फिर भी जो किया वह आश्चर्य में डालने वाला था। उन्होंने दुर्योधन और अर्जुन को यह ऑप्शन दिया कि तुम्हें मुझमें और मेरी सेना में से किसी एक को चुनना होगा। दुर्योधन ने श्रीकृष्‍ण की नारायणी सेना का चयन किया जबकि अर्जुन ने श्रीकृष्‍ण का। भारतीय संस्कृति और धर्म की यह शिक्षा है कि जिधर सत्य हो उधर रहना चाहिए। फिर भले ही असत्य की ओर हमारे अपने ही क्यों न खड़े हो। हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए।

कहानी से लें शिक्षा:
उपरोक्त संदर्भ में हमें समझना होगा कि ईरान ने पिछले 78 वर्षों में भारत के साथ क्या किया और कब भारत का साथ दिया और अब तक उसने भारत को क्या दिया? दूसरी ओर इसी काल में इजरायल ने भारत के साथ क्या किया और भारत को क्या दिया? यदि हम इतिहास को जानेंगे तो यह अच्छे से समझ में आ जाएगा कि हमें किसके साथ रहना चाहिए। हम हर तरह के धार्मिक समूह और कट्टरपंथी सोच को नकारते हैं। हम लोकतंत्र के पक्षधर है। हम उन लोगों और देशों को भी नकारते हैं जो अपने दोस्त और दुश्मन वक्त के साथ बदलते रहते हैं। हमें दोनों देशों के इस चरित्र को भी समझने की जरूरत है।
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भारत को ईरान और इज़राइल दोनों के साथ संतुलित, व्यावहारिक और रणनीतिक संबंध बनाए रखने चाहिए। यह निर्णय धर्म या विचारधारा पर नहीं, बल्कि इतिहास की समझ, राष्ट्रीय हित, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक संतुलन के आधार पर होना चाहिए।

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