why donald trump is desperate for nobel prize: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार पाने की इच्छा कोई छिपी बात नहीं है। उन्होंने कई मौकों पर सार्वजनिक रूप से इस बात का जिक्र किया है कि वह इस प्रतिष्ठित सम्मान के हकदार हैं। मीडिया रिपोर्ट्स और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी इस प्रबल इच्छा के पीछे कई कारण हैं। आइये जानते हैं
ओबामा से पीछे नहीं रहना चाहते ट्रंप?
डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार यह दावा किया है कि उन्होंने दुनिया में ओबामा से कहीं ज्यादा शांति स्थापित करने का काम किया है। उनके समर्थकों और कुछ विदेशी नेताओं ने उन्हें कई बार नोबेल के लिए नामित भी किया है, जिससे उनकी महत्वाकांक्षा को और हवा मिली है। उनका मानना है कि वह ओबामा की तरह ही एक अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वैश्विक पहचान बनाना चाहते हैं। ओबामा को पुरस्कार मिलने के बाद ट्रंप ने अक्सर कहा है कि उन्होंने बिना कुछ किए यह पुरस्कार हासिल कर लिया, जबकि उन्होंने (ट्रंप ने) कई बड़े काम किए। ट्रंप ने यहां तक कहा था, "अगर मेरा नाम ओबामा होता, तो मुझे 10 सेकंड में नोबेल मिल जाता।" यह उनकी गहरी व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता को दर्शाता है।
इजराइल और पाकिस्तान ने चढ़ाया चने के झाड़ पर
ट्रंप की नोबेल की महत्वाकांक्षा को इजराइल और पाकिस्तान जैसे देशों से भी बढ़ावा मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इजराइल ने ईरान के साथ संघर्ष विराम कराने में ट्रंप की भूमिका के लिए उन्हें नामांकित किया है। वहीं, पाकिस्तान ने भी भारत के साथ एक राजनयिक संकट के दौरान उनके "निर्णायक राजनयिक हस्तक्षेप" के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने का दावा किया है। इन देशों का समर्थन ट्रंप के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, जिसने उनकी सार्वजनिक घोषणाओं को और मजबूत किया कि वह इस पुरस्कार के हकदार हैं।
नॉर्वे के वित्त मंत्री से फोन पर बातचीत
मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि ट्रंप ने नोबेल पुरस्कार के लिए सीधे तौर पर पैरवी करने के लिए नॉर्वे के एक वरिष्ठ मंत्री को फोन किया था। नॉर्वे के एक अखबार के अनुसार, ट्रंप ने व्यापार शुल्कों पर चर्चा करने के लिए नॉर्वे के वित्त मंत्री से संपर्क किया और बातचीत के दौरान अचानक नोबेल शांति पुरस्कार का मुद्दा उठा दिया। हालांकि मंत्री ने बातचीत के विवरण को गोपनीय रखा, लेकिन इस घटना ने ट्रंप की इस पुरस्कार को पाने की तीव्र इच्छा को और उजागर कर दिया।
ट्रंप सिर्फ ओबामा ही नहीं, बल्कि थियोडोर रूजवेल्ट, वुड्रो विल्सन और जिमी कार्टर जैसे उन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों की श्रेणी में भी शामिल होना चाहते हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। वह खुद को एक शांतिदूत राष्ट्रपति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और हर महीने शांति की एक नई पहल करने का दावा करते हैं, चाहे वह इज़राइल-ईरान युद्ध को समाप्त करने की पहल हो या किसी और संघर्ष में उनका कथित हस्तक्षेप। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि भारत के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात को युद्ध विराम में बदलने में ट्रंप की अहम भूमिका रही। हालांकि, भारत इस बात से इनकार कर चुका है कि वह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय मुद्दों को लेकर किसी बाहरी के कहने पर कोई कार्रवाई नहीं करता है। कुल मिलाकर, ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार की चाहत उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का परिणाम है।