किरण बेदी पर दांव भारी पड़ सकता है भाजपा को

-विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। भाजपा ने जिस मकसद से दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय पुलिस सेवा की पूर्व अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है, वह मकसद अब पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। पार्टी नेतृत्व के इस फैसले से भाजपा के स्थानीय नेतृत्व में भारी असंतोष है।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए लगभग एक दर्जन नेताओं को चुनाव में पार्टी उम्मीदवार बनाने के फैसले ने भी आग में घी का काम किया है। यही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व को भी ये फैसले रास नहीं आए हैं और उसने अपने नाराजगी से भाजपा नेतृत्व को अवगत करा दिया है। संघ नेतृत्व और दिल्ली प्रदेश भाजपा के नेताओं की नाराजगी ने पार्टी नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ा दी है। उसे अब यह आशंका सता रही है कि कहीं 1998 की पुनरावृत्ति न हो जाए।
 
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 मे भी पार्टी नेतृत्व ने अचानक दिल्ली के कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया था और उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन दिल्ली के कद्दावर नेताओं की नाराजगी के बीच हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी औंधे मुंह गिरी थी। स्वराज को पार्टी का चेहरा बनाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले के खिलाफ तब पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और विजय कुमार मल्होत्रा की तिकड़ी एकजुट हो गई थी। इस तिकड़ी के असहयोग के कारण वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 49 सीटें जीतने वाली भाजपा 1998 के चुनाव में महज 15 सीटें ही हासिल कर पाई थी। भाजपा तब से अब तक दिल्ली की सत्ता पर फिर से काबिज नही हो पाई है। 
 
सूत्रों के मुताबिक किरण बेदी को चुनाव में पार्टी का चेहरा बनाने का फैसला लेने से पहले न तो संघ नेतृत्व की सहमति ली गई और न ही पार्टी के स्थानीय नेताओं को विश्वास में लिया गया। यह फैसला पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने लिया और चूंकि इसे मोदी की सहमति भी हासिल थी, लिहाजा पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में भी इस पर ज्यादा लंबी चर्चा नहीं हुई और तुरत-फुरत मंजूरी दे दी गई।
 
पार्टी सूत्रों के मुताबिक किरण बेदी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला एकाएक हुआ। बेदी इससे पहले भी पार्टी में आने को तैयार थीं लेकिन तब पार्टी नेतृत्व उनकी मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनाने की शर्त मानने को तैयार नहीं था। इसी बीच आम आदमी पार्टी की ओर से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय पर बढ़े हमले और रामलीला मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली में उम्मीद के मुताबिक भीड़ न जुट पाने से पार्टी नेतृत्व की चिंता में इजाफा हुआ और अचानक बेदी को उन्हीं की शर्त पर लाने का फैसला किया गया। बेदी को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आश्वस्त किया गया कि पार्टी बहुमत में आने पर उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाएगी। 
 
दिल्ली के चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल होने से बचाने के लिए भले ही भाजपा नेतृत्व ने बेदी पर दांव लगाया हो, मगर उसके इस दांव से दिल्ली के स्थानीय नेताओं में भारी नाराजगी है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व के इस फैसले से न सिर्फ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय और विधानसभा में नेता विपक्ष रहे जगदीश मुखी बल्कि स्थानीय सांसद डॉ. हर्षवर्धन, मनोज तिवारी, उदित राज और प्रवेश वर्मा भी नाराज हैं।
 
पार्टी नेतृत्व को डर है कि इस फैसले के खिलाफ नाराज स्थानीय नेता कहीं 1998 का इतिहास न दोहरा दे। इसी आशंका के चलते पार्टी नेतृत्व ने नाराज नेताओं को मनाने के लिए केंद्रीय नेताओं की टीम को मैदान मे उतार दिया है। इनमें राजनाथसिंह को जहां केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय को मनाने का जिम्मा दिया गया है। वहीं, अरुण जेटली और नितिन गडकरी को अन्य नाराज नेताओं की मान मनौव्वल की जिम्मेदारी दी गई है।
 
पार्टी नेतृत्व ने इसके साथ ही किरण बेदी को भी नाराज नेताओं से मिलने की पहल करने और उनसे विनम्रता से पेश आने का निर्देश दिया है। यही कारण है कि दो दिन पहले कुछ मिनट के विलंब से अपने निवास पर पहुंचे हर्षवर्धन से न मिलने वाली किरण बेदी के तेवर मंगलवार को बदले हुए थे। उन्होंने खुद हर्षवर्धन के घर जाकर उनसे मुलाकात की और संघ की तारीफ में भी कसीदे पढ़े। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी रणनीति की कमान खुद संभाल ली है और नाराज नेताओं को मनाने के लिए राजनाथ, गडकरी, और जेटली ने नाराज नेताओं से अलग-अलग सीधा संपर्क साधना शुरू कर दिया है। 

माकन को पार्टी का चेहरा बनाए जाने से पहले बतौर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अपने को पार्टी का चेहरा मान रहे अरविंदर सिंह लवली को भी कांग्रेस उपाध्यक्ष का माकन को आगे करने का फैसला रास नहीं आया है और उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। लवली को एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी और वे तब से ही अपनी सक्रियता से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में नए सिरे से जान फूंकने में लगे हुए थे। 
 
पार्टी की अंदरूदी कलह और चुनाव अभियान से वरिष्ठ नेताओं के दूरी बना लेने की वजह से दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का मुख्यालय चुनावी मौसम में भी महत्वहीन हो गया है। अजय माकन और दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको की जोड़ी के अलावा दिल्ली के सारे दिग्गज किनारे हो गए हैं।
 
अजय माकन चुनाव अभियान संबंधी सारा कामकाज 24 अकबर रोड स्थित पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय से चला रहे हैं। शीला दीक्षित के दिल्ली चुनाव से दूर रहने को लेकर माकन ने पिछले दिनों कहा था कि उनका राजनीति सूर्य अस्त हो चुका है। मगर पार्टी की चुनावी गतिविधियों से उनके बेटे संदीप दीक्षित भी बाहर हो गए है। 
 
दिल्ली में पार्टी के लगभग सभी उम्मीदवार अपने दम पर ही चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। कई उम्मीदवारों ने अपने को पार्टी की ओर से कोई मदद न मिलने की शिकायत भी कांग्रेस मुख्यालय में की है। पार्टी के कई नेता मानते हैं कि सिर्फ एक नेता को ही आगे रखना और दूसरों को भुला देना पार्टी की चुनावी संभावनाओं के लिए नुकसानदेह साबित होगा।  

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