शिव के महावरदान ने बनाया कुबेर
गुणनिधि भले ही चोर था और उसका इरादा चोरी का था, लेकिन अनजाने में उसने तीन बड़े पुण्य किए:
• उसने शिवरात्रि का व्रत रखा (क्योंकि वह दिन भर भूखा रहा)।
• उसने अनजाने में ही शिव मंदिर में दीपदान (दीपक की लौ को बचाना) किया।
• उसने प्रसाद चुराने के प्रयास में ही सही, लेकिन भगवान शिव के समक्ष वस्त्र का त्याग किया।
इन अनजाने पुण्यों और शिव के प्रति असीम भक्ति के कारण जब यमदूत उसे लेने आए, तो भगवान शिव के गणों ने उन्हें रोक लिया। भगवान शिव ने गुणनिधि को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे निष्कपट भाव से किए गए दीपदान से मैं प्रसन्न हूँ। उन्होंने गुणनिधि को यह वरदान दिया कि तुम अगले जन्म में 'कुबेर' के रूप में जन्म लोगे और 'देवताओं के कोषाध्यक्ष' बनोगे। इस प्रकार, एक चोर अपनी अनजाने में की गई शिव भक्ति के कारण अगले जन्म में महर्षि विश्रवा के पुत्र के रूप में जन्मा और देवताओं के खजाने का रक्षक बना।