रंगोली-रंगों के माध्यम से देवताओं की आराधना

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भारतीय लोक कला की परंपरा में रंगोली का इतिहास इसे पाँच हजार साल पीछे ले जाता है। पिछले हजारों वर्षों से भारतीय गृहिणियाँ त्योहारों व मांगलिक अवसरों पर शुभ के प्रतीक व देवताओं की प्रार्थना के रूप में रंगोली सजाती आ रही हैं।

घर के दरवाजे से लेकर आँगन तक प्राकृतिक प्रतीकों के सहारे रंगोली सजाने की परंपरा का निर्वहन होता रहा है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम भारत का शायद ही कोई कोना इस परंपरा से वंचित रहा हो। समय और काल के अनुसार इसमें नाम आदि में परिवर्तन तो हुआ है परन्तु इसका मूल आज भी ज्यों का त्यों है।
रंगोली का अर्थ- रंगोली मूल्यतः दो शब्दों रंग+अवली शब्द से बना है यहाँ अवली का अर्थ रंगों की कतार है। मूलतः रंगोली महाराष्ट्र की परंपरा से निकली है। परंतु अब यह देश के लगभग सभी भागों में सजाया जाता है।


रंगोली की डिजाइनें मूल्यतः प्रकृति से ली जाती हैं। इनमें तोते, हंस, आम, फूल-पत्ते आदि प्रमुख हैं। इसमें दीवार व फर्श पर चित्रकला का अंकन शामिल है। पोलम व रंगोली आदि फर्श पर होने वाले चित्रांकन है। भारत के अलग अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह की फर्श चित्रण होता रहा है।

रंगोली का अर्थ- रंगोली मूल्यतः दो शब्दों रंग+अवली शब्द से बना है यहाँ अवली का अर्थ रंगों की कतार है। मूलतः रंगोली महाराष्ट्र की परंपरा से निकली है। परंतु अब यह देश के लगभग सभी भागों में सजाया जाता है।

पश्चिम भारत (महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान) के रंगोली की विशेषता पूर्वी भारत (बंगाल, उड़ीसा, हिमालचल प्रदेश) की रंगोली से कई मायनों में अलग है। पूर्वी भारत में इसे अल्पना नाम से सजाया जाता है जिसमें चावल व अन्य अनाजों के आटों का प्रयोग किया जाता है। दक्षिण भारत-तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल में प्रचलित रंगोली कोलम के नाम से जानी जाती है। इन्हें आकृति सममिती व ज्यामितीय आकार के रूप में फर्श पर सजाया जाता है।

रंगोली की डिजाइनें मूल्यतः प्रकृति से ली जाती हैं। इनमें तोते, हंस, आम, फूल-पत्ते आदि प्रमुख हैं। इनके रंगों के प्रेरणा स्रोत भी प्रकृति ही है। यद्यपि आजकल रंगों में सिंथेटिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। इससे इनकी चमक ब़ढ़ जाती है। रंगोली में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियाँ यथा रंगीन चावल, हल्दी, सूखी लाल मिर्च, रोड़ा सीधी सपाट रंगोली का आभास देती हैं जबकि धनिया, दाल कुछ अन्य अनाज से तैयार सामग्रियाँ अकेले या प्राकृतिक रंगों के साथ प्रयोग करने पर त्रि-आयामी(थ्री डी) चित्रांकन का आभास देते हैं। कुछ कलाकार केवल किनारों पर त्रि-आयामी चित्रांकन करते हैं जबकि कुछ अन्य अनाज और दानाओं के सहारे पूरी रंगोली सजाते हैं।