कई रंगों का साथ लेकर आता हैं दशहरे का त्योहार

आश्विन शुक्ल दशमी के दिन मनाए जाने वाले दशहरे के पूर्व समापन होता है नौ दिवसीय मातृशक्ति के पर्व नवरात्रि का और इसके पश्चात होता है दीपावली का इंतजार। दशहरे के रावण दहन के लिए कई दिनों पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं और रावण की भव्य प्रतिकृति बनाने की होड़ सी लग जाती है।

फिर दशहरे के दिन लोगों का हुजूम अपने आसपास के किसी सार्वजनिक रावण दहन स्थल पर एकत्र होता है जहां आतिशबाजी के बाद नियत समय पर रावण तथा उसके मित्र-रिश्तेदारों के भी तैयार पुतले जलाए जाते हैं तथा लोग विजयी भाव से घर लौटते हैं।

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कुछ स्थानों पर इसी दिन घर लौटने के पश्चात अपने परिचितों तथा रिश्तेदारों के घर शमी के पत्तों के साथ शुभकामनाएं देने जाते हैं। मिलने वाले को शमी के पत्ते देकर उसके घर में सुख-समृद्धि तथा खुशियां आने की कामना की जाती है।

इसके अलावा इस दिन घरों में अथवा संस्थानों में शस्त्र पूजा भी की जाती है ताकि बल में और वृद्धि हो तथा संकट के समय वे शस्त्र रक्षा हेतु काम आ सकें। कई जगहों पर दशहरे के अगले दिन 'बासी दशहरा मिलन' की परंपरा भी है।



आजकल सुविधानुसार इस बासी दशहरे को कई बार हफ्तों लंबा भी खींच लिया जाता है। इसके पीछे मूल उद्देश्य अपने मित्रों, रिश्तेदारों व परिचितों के साथ मिलकर बैठना और अच्छा समय बिताना होता है जिसकी आज के भागते-दौड़ते वक्त में और भी जरूरत होती है।

इस तरह दशहरे का त्योहार अपने साथ कई रंग लेकर आता है जो लोगों को जीवन में बुराई से दूर रहने और भलाई का साथ देने की सीख लेकर आता है। यह आपस में प्रेम और सौहार्द्र बढ़ाने का भी संदेश देता है।

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