विजयादशमी केवल एक पर्व मात्र नहीं है। यह प्रतीक है कई सारी बातों का। सच, साहस, अच्छाई, बुराई, निःस्वार्थ सहायता, मित्रता, वीरता और सबसे बढ़कर दंभ जैसे अलग-अलग भले-बुरे तत्वों का प्रतीक।
जहां भले प्रतीकों की बुरे प्रतीकों पर विजय हुई और हर युग के लिए इस आदर्श वाक्य को सीख की तरह लेने की परंपरा बनाई गई।
इसलिए किसी भी युग में अच्छाई की बुराई पर जीत का वाक्य हर वक्त लागू होता है और प्रतिभाशाली होते हुए भी दंभ के कारण बुराई के रास्ते पर जा निकले रावण का प्रतीकात्मक नाश आज भी किया जाता है।
इस मूल वाक्य के अलावा इस पर्व को सामाजिक रूप से मेल-जोल का तथा विजय की खुशी मनाने का प्रतीक भी बना लिया गया। वहीं युद्ध के कारण इसे शस्त्र पूजा से भी जोड़ा गया।
इस तरह यह पर्व रावण के दहन से लेकर शस्त्र पूजन और शमी के पत्ते बांटने तक कई रूपों में सामने आता है।