पंडित रविशंकर : भारत की शास्त्रीयता के ध्वजवाहक

PTI
सितार का पर्याय बन चुके पंडित रविशंकर नहीं रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन संगीत, सुर और रागों के साथ बिताया। वो 92 वर्ष के थे। संगीत के साथ पूरा और भरपूर जीवन जीने के बाद भी उनके जाने की खबर में एक तरह की आकस्मिकता क्यों है?

कोई कितनी ही पकी उम्र में क्यों न जाए, उनके जाने का ग़म तो होता ही है, पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, उनकी शख़्सियत ऐसी होती है, उनका कर्म ऐसा होता है कि लगता है कि वो भी चांद, तारों, समुद्र और पहाड़ की तरह हमेशा रहेंगे, शाश्वत, अखंड, अविचल।
कुछ लोगों की शख़्सियत ऐसी होती है, उनका कर्म ऐसा होता है कि लगता है कि वो भी चांद, तारों, समुद्र और पहाड़ की तरह हमेशा रहेंगे, शाश्वत, अखंड, अविचल
सितार के सुर कभी मौन हो सकते हैं क्या भला?... और हमारे लिए तो सितार का मतलब ही रहा है रविशंकर।


कोई पंडित रविशंकर बोले तो जेहन में उनकी सितार बजाती तस्वीर ही उभरती है और अगर कोई सितार बोले तो भी वो ही तस्वीर उभरती है। दोनों एक दूसरे में कुछ इस तरह एकाकार हो गए थे कि उन्हें जुदा करके सोचना, देखना असंभव हो गया था। एक कलाकार के लिए, एक साजिंदे के लिए इससे बड़ी उपलब्धि भी क्या हो सकती है कि वो और उसका साज एक दूसरे में इस कदर घुलमिल जाएँ... गोयाकि उनका जिस्म, उनकी रूह ही सितार में समा जाती हो और फिर दोनों एक होकर बज उठते हों। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के होठों से लगी बांसुरी, उस्ताद बिस्मिल्ला खान के मुंह पर सजी शहनाई और सरोद के साथ अमजद अली खान ये कुछ ऐसी तस्वीरें हैं जो सदा के लिए हैं... वो लोग हों या ना हों।

तो ऐसी ही एक तस्वीर को सदा के लिए जेहन में छोड़कर पंडित रविशंकर चले गए। यों तो उनके बारे में लिखे या बोले गए तमाम शब्दों पर उनके सितार से निकला एक राग भारी है और इसलिए किसी भी आकलन या जीवनी की बजाय उनके सितार की सीडी सुनना बेहतर होगा। उनके सितार को सुनने के अलावा दो बातों का ख़ास उल्लेख जरूरी है। एक उन्होंने भारत के शास्त्रीय संगीत के दूत और ध्वजवाहक की भूमिका निभाई, दूसरी उन्होंने पूरब और पश्चिम के संगीत का खूबसूरत मिलन करवाया।

बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन बनारस आए तो ध्यान और शांति की तलाश में पर वो पं. रविशंकर की कला पर मुग्ध हो गए और उनके शिष्य बन गए। इस महामिलन ने भारत की शास्त्रीयता और संगीत की महान परंपरा को दुनिया के मंच पर प्रतिष्ठित किया।

दूसरा रविशंकर जी के सितार की स्वर लहरियों ने आम आदमी को शास्त्रीय वाद्य संगीत के बहुत करीब लाकर खड़ा कर दिया। जिनको रागदारी की जानकारी है वो निश्चित ही इस आनंद
उस्ताद अल्ला रक्खा और पंडित रविशंकर की जुगलबंदी को बजने दीजिए और आप जान जाएंगे कि ईश्वर क्या है, आध्यात्म क्या है, ध्यान क्या है, संगीत क्या है और जादू क्या है
सागर में बहुत गहरे गोते लगाते हैं, लेकिन जिनका राग और सुर से परिचय नहीं भी है उनके लिए रविशंकर जी के सितार को सुनते हुए ध्यानमग्न हो जाना बहुत आसान है। ये एक तरह की थैरेपी है, बहुत सुकूनदायक है।


उस्ताद अल्ला रक्खा और पंडित रविशंकर की जुगलबंदी को बजने दीजिए और आप जान जाएंगे कि ईश्वर क्या है, आध्यात्म क्या है, ध्यान क्या है, संगीत क्या है और जादू क्या है। सितार को सीखना और उसे पूरी शास्त्रीयता के साथ साधना जितना कठिन है, उसे सुनना और उसे गुनना उतना ही सहज और सरल बना गए पंडित रविशंकर।

पंडित रविशंकर उन तपस्वियों में से हैं जिनकी याद को किसी मूर्ति या अपने नाम पर की गई सड़क का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। .... उनके सितार के सुर ही काफी हैं ... जो रहेंगे ताकायनत...। पंडित रविशंकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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