रोम के जलने और नीरो के बांसुरी बजाने का किस्सा महज एक अपवाद ही बनकर रह जाता तो अच्छा था। आजकल तो ऐसा लगता है कि सारे ही नीरो बाँसुरी बजा रहे हैं। मंगलवार शाम एक ओर कोलकाता के ईडन गार्डन्स में कैटरीना कैफ और दीपिका पादुकोण के ठुमके लग रहे थे, मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी वहीं मौजूद थीं... तो दूसरी ओर एक 22 वर्षीय छात्र नेता कथित पुलिस ज्यादती का शिकार होकर दमा तोड़ रहा था।
नेताजी नगर डे कॉलेज का 22 वर्षीय छात्र सुदीप्तो उन सैकड़ों छात्रों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था, जो छात्र संघ चुनावों की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। ये प्रदर्शन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के नेतृत्व में किया जा रहा था और सुदीप्तो इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहा था।
बंगाल की छात्र राजनीति में उबाल तब आया जब कोलकाता के एक कॉलेज में छात्रों की आपसी झड़प के दौरान एक पुलिसवाले को गोली लग गई और वो मारा गया। छात्र संघ चुनावों के दौरान बढ़ती हिंसा को देखते हुए कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति सुरंजन दास, उच्च शिक्षा काउंसिल के चेयरमैन सुगाता मार्जित तथा वहाँ के शिक्षामंत्री ने मिलकर एक प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव के मुताबिक छात्र संघ चुनावों को राजनीति से दूर रखने के लिए कुछ पदों के लिए चुनाव और कुछ पदों के लिए मनोनयन का विचार था।
एसएफआई इसी का विरोध कर रहा था। चूँकि एसएफआई को वाम दलों का समर्थन है, इसे भी राजनीति के चश्मे से ही देखा गया। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई राज्य सरकारें जिसमें कि मध्यप्रदेश भी शामिल है, ये तय ही नहीं कर पा रही हैं कि वो छात्र संघ चुनावों को लेकर किस तरह कि नीति अपनाएँ। यह ठीक है कि छात्र संघ चुनावों के दौरान होने वाली हिंसा बड़ी चिंता का विषय है। यह भी सही है कि छात्र संघ चुनावों का पूरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। मगर उससे भी ज्यादा बड़ी और सही बात यह है कि छात्र संघ चुनाव नया नेतृत्व तैयार करने की बहुत अच्छी पौधशाला है।
दरअसल राजनेताओं के पास युवाओं को लेकर सही दृष्टिकोण ही नहीं है। केवल कॉलेजों में जकर भाषण दे लेने से वो आपके नहीं हो जाएँगे। जब वो इंडिया गेट पर प्रदर्शन करेंगे तब भी उनसे बात करने की हिम्मत आपमें होनी चाहिए
आज के राजनीतिक परिदृश्य पर छाए कई बड़े नेता छात्र संघ की पौधशाला से ही निकलकर आए हैं। चाहे वो नरेंद्र मोदी हों, अरुण जेटली हों, दिग्विजयसिंह हों या फिर कॉर्पोरेट जगत से सरकार का हाथ बँटाने आए नंदन निलेकणी ही क्यों ना हों। एक तरफ तो हम ये रोना रोते हैं कि अच्छे लोग राजनीति में नहीं आते, युवा राजनीति में हिस्सा नहीं लेते.... और दूसरी और हम उस नर्सरी को ही उजाड़ देना चाहते हैं जहाँ से इस नेतृत्व की बेहतर निराई-गुड़ाई की जा सकती थी? ऐसा तो एक बहुत ख़राब माली ही करेगा कि कुछ पौधों में कीड़ा लगा है तो पूरा का पूरा बाग ही उजाड़ दो.....! ना रहेगा बाँस ना रहेगी बाँसुरी।
दिल्ली में उत्तर प्रदेश में और बिहार जैसे राज्य में भी लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप चुनाव करवाए जा रहे हैं। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें प्रभावी हैं और उनका लक्ष्य ही यह है कि हिंसा ना हो, बहुत पैसा खर्च ना हो फिर भी छात्र संघ चुनाव ना हो पाए। चूँकि राज्य सरकारें इन्हें प्रभावी रूप से लागू नहीं करवा पातीं, इसीलिए वो छात्रसंघ चुनाव ही बंद करवा देती है। क्या मनोनीत छात्र नेता सचमुच के नेतृत्वकर्ता हो सकते हैं? क्या केवल अच्छे अंक ही अच्छे नेता की निशानी हो सकते हैं?
जिस देश की 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी युवा हो, जिस देश में आने वाले 15 सालों में दुनिया के सबसे ज्यादा स्नातक उपलब्ध होने वाले हों क्या उस देश में हम युवाओं के साथ इस तरह का बर्ताव करेंगे? तो फिर युवा क्यों नहीं विद्रोह करेंगे? दरअसल राजनेताओं के पास युवाओं को लेकर सही दृष्टिकोण ही नहीं है। केवल कॉलेजों में जकर भाषण दे लेने से वो आपके नहीं हो जाएँगे। जब वो इंडिया गेट पर प्रदर्शन करेंगे तब भी उनसे बात करने की हिम्मत आपमें होनी चाहिए। बजाय कि उन्हें पानी की बौछार डालकर भगाने या लाठियों से पीटने के।
सुदीप्तो भी अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहा था। उसकी मौत पुलिस कस्टडी में ही हुई है क्योंकि पुलिस उन सबको गिरफ्तार कर ले जा रही थी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि पुलिस ने सुदीप्तो को जमकर पीटा और वो बुरी तरह लहूलुहान हो गया था। पुलिस का कहना है कि उसकी मौत स्ट्रीट लाइट के खंबे से टकराने से हुई। क्या कोई खंबे से टकराने से इतना घायल हो सकता है कि उसका चेहरा भी पहचान में ना आए?
जो बंगाल अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है, जहाँ न्याय के लिए सड़कों पर उतरना आम बात है वहाँ एक नौजवान की यों मौत हो जाना बहुत दु:खदायी है। ममता बैनर्जी को फेसबुक पर बने अपने कार्टून से चिढ़ हो सकती है पर युवाओं की आवाज से चिढ़कर वो शासन नहीं चला पाएँगी। उन्हें मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों ही होने के नाते इस पुलिस प्रताड़ना का जवाब भी ढूंढ़ना होगा। .... फिलहाल तो सुदीप्तो गुप्ता को लाल सलाम।