विचार महाकुंभ को थोड़ा-बहुत देखा-सुना-समझा... हमारे यहाँ नदियाँ इसलिए नहीं सूख रहीं कि हमारे यहाँ उसे बचाने वाले ज्ञान की कमी है, कमी तो कर्म के प्रवाह की है। ऐसा तो है नहीं कि हमारे पास भ्रूण हत्या, अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोज़गारी से निपटने का ज्ञान नहीं है... कर्म कहाँ है? ...जो है उसे प्रोत्साहित और प्रतिष्ठित करने की ललक कहाँ है?