बदलाव के ये बिम्ब...

जयदीप कर्णिक

शुक्रवार, 5 सितम्बर 2014 (11:30 IST)
यहाँ कुछ शाश्वत है तो वो है बदलाव। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। और जो प्राकृतिक है वही सुंदर है, मधुर है, आनंददायी है, प्रेरक है, रोचक है। जिसका इस प्राकृतिक आनंद से तादात्म्य हो गया, एकाकार हो गया वो ही इसकी गति और बदलाव का अंग भी बन गया। 23 सितंबर 1999 को अपनी शुरुआत से अब तक वेबदुनिया ने डेढ़ दशक का लंबा सफर तय किया है। टूटे हुए हर्फ़ों को जोड़कर अंग्रेज़ियत के बियाबान में जला भाषाई स्वाभिमान का ये चिराग कब सृजन, रचनाकर्म और अपनत्व की सुनहरी दीपमाला बन गया, पता ही नहीं चला। ऐसी दीपमाला जिसकी बाती बहुत सारे मेहनतकशों के अथक परिश्रम और काली की गई रातों के तेल से रोशन है। ये रोशन है त्याग और समर्पण के उस सिलसिले से जिससे कोई संस्था परिवार बन जाती है।
 

 




अपनी इस डेढ़ दशक की यात्रा में वेबदुनिया ने कई बदलाव किए और देखे। रंग–रूप और प्रस्तुति के स्तर पर किए गए तमाम बदलाव हमें नई ऊर्जा से भरते रहे और प्रेरित करते रहे अपने पाठकों तक नित नया पहुँचाने के लिए। एक बार फिर वेबदुनिया के सभी सात भाषाओं के पोर्टल अपनी नई साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत हैं। हमने केवल कलेवर ही नहीं बदला है बल्कि आपको रुचिकर लगे ऐसी नई सामग्री भी जुटाई है। और ये कोशिश निरंतर जारी रहेगी। इस नई प्रस्तुति में कोशिश ये भी है कि मोबाइल और टैबलेट के इस युग के अनुसार कैसे हम अधिक चित्रों के साथ हर प्रस्तुति को अधिक आकर्षक बना सकें।
 
ये तमाम परिवर्तन हमने आप सभी से मिलने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर ही किए हैं। फिर भी जो नया स्वरूप सामने आया है उसको लेकर आपकी राय जानने के लिए भी हम उत्सुक रहेंगे। आपकी प्रतिक्रिया हमारे इस बदलाव को अधिक ऊर्जावान बनाएगी। कृपया आपकी प्रतिक्रिया [email protected] पर भिजवाएँ।
 
बदलाव के ये बिम्ब उस मूल को परिभाषित कर पाएँ जहाँ से ये उपजे हैं, हम उपजे हैं... प्रकृति से हमारा तादात्म्य और गहरा हो, यही कामना.....।

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