मध्यप्रदेश में अगले पाँच साल फिर शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री होंगे। वो पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो लगातार तीसरी बार श्यामला हिल के मुख्यमंत्री निवास में विराजेंगे। मध्यप्रदेश के लिए बाकी जो भी आकलन कर लिया जाए, लेकिन पूरा चुनाव शिवराज ने अकेले योद्धा की ही तरह लड़ा। ये भी बड़ी बात है कि भाजपा 2013 में 2008 से भी ज्यादा सीटें जीत रही है। 2003 का वोट उमा की जादूगरी की बजाय दिग्विजय के ख़िलाफ वोट माना गया। भाजपा को 173 सीटें मिलीं।
2008 में शिवराज की परीक्षा थी, लेकिन सुरेश पचौरी के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ने का माद्दा ही नहीं दिखा पाई। फिर भी भाजपा की सीटें 173 से 143 पर आ टिकीं। इस बार सीटें और कम होने के तमाम कयासों को धता बतलाते हुए अगर भाजपा 165 सीटें जीतने में सफल रही है तो इसका मुख्य श्रेय शिवराजसिंह चौहान को ही जाना चाहिए।
उन्होंने अकेले योद्धा के रूप में चुनाव लड़ा। जब कांग्रेस की चुनावी गाड़ी गैरेज से भी बाहर नहीं निकल पाई थी तब उनकी जन आशीर्वाद यात्रा पूरी होने को थी। जब कांग्रेस घोषणा-पत्र तो दूर की बात अपने उम्मीदवार भी तय नहीं कर पाई थी तब शिवराजसिंह चौहान ट्विटर पर विजन 2018 के हैश टैग के साथ अपने अगले पाँच साल के संकल्प साझा कर रहे थे। वो मोदी के व्यक्तित्व से उनकी तुलना से नहीं डिगे। भाजपा की अंदरूनी खींचतान को उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
अगर शिवराज प्रदेश की जमीन पर खड़े होकर राष्ट्र के परिदृश्य पर अपने हाथ उठाना चाहते हैं तो उन्हें और कठोर प्रशासक बनना होगा। भ्रष्टाचार के छींटे धोने के लिए मेहनत करनी होगी
आज जब शिवराज विजय सिंहासन पर बैठे हैं तो ये आसान लगता है, लेकिन ये लड़ाई लड़ते हुए कितना कठिन संघर्ष करना पड़ा वो शिवराज ही जानते हैं। उनके अपने मंत्री लगातार घोटालों में लिप्त पाए जा रहे थे। रतनगढ़ हादसा और पीएमटी घोटाला भी उनकी नाव डुबा सकता था। पर उनके जीवट और संकल्प ने पार लगा दिया। अब परीक्षा ये है कि सरकार के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के इन दागों को वो कैसे धो पाते हैं।
जैत गाँव से आए शिवराज हमें कई मायनों में औरों से अलग नज़र आते हैं। वो अपनी गाँव की सादगी और भोलापन भी बनाए रखते हैं और संकल्प की दृढ़ता भी दिखाते हैं। वो प्रदेश से होने वाले हर शहीद की अंतिम यात्रा में सबस आगे कंधा देते नज़र आते हैं। उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचने जा रहे हैं।
... पर आगे राह कठिन है। अगर वो प्रदेश की जमीन पर खड़े होकर राष्ट्र के परिदृश्य पर अपने हाथ उठाना चाहते हैं तो उन्हें और कठोर प्रशासक बनना होगा। भ्रष्टाचार के छींटे धोने के लिए मेहनत करनी होगी। जो संकल्प उन्होंने साझा किया है, उसे पूरा करना होगा। अभी तो मध्यप्रदेश को पाँच साल और शिव के इसी राज में रहना है।