आज़ादी को ऐसी कामधेनु मान लेना जिसका दूध जितना मर्जी दुहो, कभी ख़त्म नहीं होगा, इस सोच ने बेचारी आज़ादी को ही मरियल और लोकतंत्र को बीमार बना दिया। इस बीमारी से निजात के लिए भी हमें अब ऐसी दवाई की तलाश है, जिसे हम रात को खाएँ और सुबह तंदुरुस्त हो जाएं
कांग्रेस और भाजपा लाख चाहे पर वो अपने कैनवास को खाली नहीं कर सकतीं, ये स्लेट नहीं है जिससे आप पुराना सब मिटा दो- चाहे गुजरात हो या 1984 या कुछ और। ....... तो लोगों को लगा कि ये नया कैनवास है जिसे वो अपने हिसाब से रंगना चाहते हैं