रोजा जिस्मानी एतबार से भी बेहद फायदेमंद है, इससे हर तरह की बीमारियों से निजात मिलती है। ये कहना है सदर मस्जिद में तरावीह की नमाज पढ़ा रहे हाफिज कारी एहसानुल हक साहब का।
पिछले सात सालों से सदर की जामा मस्जिद में रमजान की विशेष नमाज तरावीह पढ़ा रहे हाफिज साहब ने बताया कि पहले की तुलना में अब ज्यादा लोग तरावीह की नमाज पढ़ने आते हैं।
लोगों में कुरआन सुनने और समझने का शौक और जज्बा बढ़ा है। खासतौर पर आधुनिक रूप से विकसित सदर इलाके में युवाओं की खासी तादाद मस्जिदों तक पहुँच रही है। जिससे पता चलता है कि नई पीढ़ी भी अपने मजहब के प्रति जागरूक है।
हाफिज साहब ने बताया कि इस मस्जिद में पाँच पाक रातें को नातख्वानी, तकरीर, हलका शरीफ, जिक्र-ए-कुरआन आयोजित किया जाता है जिसमें युवाओं की खासी तादाद देखने को मिलती है। रमजान के महिने में गैर मुस्लिम भाइयों द्वारा रोजा रखने को अच्छा कदम मानते हुए हाफिज साहब ने निश्चित फल मिलने की बात कही।
उन्होंने ये भी कहा कि रोजा एक माह की ट्रेनिंग है जिसका फल जरूर मिलता है। इस्लाम किसी भी बंदे को दहशतगर्दी की शिक्षा नहीं देता है। मजहबे-इस्लाम तो भाईचारे और दोस्ती का पैगाम देता है। उन्होंने सरकारी महकमों में व्याप्त रिश्वतखोरी पर लगाम कसे जाने की भी जिक्र किया।