Devshayani Ekadashi की ये 15 बातें आपकी आंखें खोल देंगी, पढ़ें विशेष जानकारी

इस बार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी मंगलवार, 20 जुलाई 2021 को आ रही है। इसे देवशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु शयन अवस्था में चले जाते हैं। आओ जानते हैं एकादशी की 15 खास बातें।

 
1. देवशयनी एकादशी के दिन से श्रीहरि विष्णु पाताल लोक में राजा बालि के यहां पर 4 माह के लिए निवास करते हैं। भगवान ने वामन रूप में बालि से तीन पग धरती मांग कर दो पग में त्रिलोक नाप दिया था तब बालि ने कहा कि प्रभु अब तीसरा पग मेरा सिर ही बचा है। यह सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए थे तब कहा कि वरदान मांगों तो बालि ने कहा कि आप मेरे साथ पाताल लोक में रहें। इसी कारण से भगवान 4 माह बालि के यहां निवास करते हैं।
 
2. देवशयनी के आसपास ही सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन हो जाता है। सूर्य 6 माह उत्तरायण और 6 माह दक्षिणायन रहता है। उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन रात्रि मानी गई है।
 
3. चातुर्मास का प्रारंभ आषाढ़ माह में 'देवशयनी एकादशी' से होता है और अंत कार्तिक माह में 'देवोत्थान एकादशी' से होता है। देवोत्थान को देवउठनी और प्रबोधिनी भी कहते हैं।
 
4. देवशयनी का अर्थ है देव और शयन। देव अर्थात विष्णु और शयन अर्थात सोना, नींद या निद्रा। 
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।
अर्थात : हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
 
5. कहा जाता है कि जो जातक देवशयनी एकादशी का व्रत करते हैं उनके सारे दुख, दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
 
6. सतयुग काल में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता राज्य करते थे। उनके शासन में प्रजा बहुत सुखी थी। फिर एक बार राज्य में लगातार 3 वर्ष तक भयंकर अकाल पड़ा। चारों ओर हाहाकार मच गया। बारिका का दूर-दूर तक नामोनिशान तक नहीं था। इस संकट के समाधान के लिए राजा जंगल में चले गए जहां वे अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजा ने अंगिरा ऋषि को अपनी प्रजा का दु:खदर्द बताया और उनसे समाधन का विनय किया। राजा की बातें सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा कि आप राज्य में जाकर देवशयनी एकादशी का व्रत रखो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में अवश्य ही वर्षा होगी। अंगिरा ऋषि की बात मानकर राजा मान्धाता राज्य में वापस लौट आये। राजा ने विधि विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया, इसके प्रभाव से जोरदार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
 
7. इस दौरान विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है और व्यक्ति निरोगी होता है। इस दिन प्रभु हरि की विधिवत पूजा करने और उनकी कथा सुनने से सभी तरह के संकट कट जाते हैं। इस दिन तुलसी और शालिग्राम की विधिवत रूप से पूजा और अर्चना करना चाहिए। इस दिन चावल, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन आदि बिलकुल न खाएं। इस दिन देवशयनी की पौराणिक कथा का श्रवण करें।
 
8. देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है और जीवन में खुशियों को भर देते हैं। एकादशी के विधिवत व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस व्रत को करने से शरीरिक दु:ख दर्द बंद हो जाते हैं और सेहत संबंधी लाभ मिलता है।
 
9. आषाढ़ शुक्ल एकादशी के बाद पूर्णिमा से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, ग्रहप्रवेश, यज्ञ आदि धर्म कर्म से जुड़े जितने भी शुभ कार्य होते हैं वे सब त्याज्य होते हैं। 
 
10. कुछ खास मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कुछ चीजों के त्याग का व्रत लें। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।
 
11. यदि आप इस एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करें। पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करें। फिर भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। फिर पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें। भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण करें। फिर रात्रि में स्वयं के सोने से पहले भजनादि के साथ भगवान को शयन कराना चाहिए।
 
12. चार माह के लिए भगवान विष्णु में सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन रहता है। इस अवधि में भगवान शिव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं और चार मास तक संसार की गतिविधियों का संचालन करते हैं। शिव का माह श्रावण माह ही चातुर्मास का प्रथम माह है।
 
13. इस मास में श्रीहरि विष्णु के साथ ही आषाढ़ में वामन पूजा, श्रावण में शिव पूजा, भाद्रपद में गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। आषाढ़ के महीने में अंतिम पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस माह में इन दोनों देवताओं की विशेष कृपा पाने के लिए विशेष व्रत, उपवास, पूजा करना चाहिए।
 
14. उक्त 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है कि उक्त 4 माह में से प्रथम माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्ति को व्रत का पालन करना चाहिए। ऐसा नहीं कि सिर्फ सोमवार को ही उपवास किया और बाकी वार खूब खाया। उपवास में भी ऐसे नहीं कि साबूदाने की खिचड़ी खा ली और खूब मजे से दिन बिता लिया। शास्त्रों में जो लिखा है उसी का पालन करना चाहिए। इस संपूर्ण माह फलाहार ही किया जाता है या फिर सिर्फ जल पीकर ही समय गुजारना होता है। चातुर्मास में देव पूजन, रामायण पाठ, भागवत कथा पाठ, व्रत, दान, साधना और ध्यान करना चाहिए।
 
15. माह में 2 एकादशियां होती हैं अर्थात आपको माह में बस 2 बार और वर्ष के 365 दिनों में मात्र 24 बार ही नियमपूर्वक एकादशी व्रत रखना है। हालांकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 2 एकादशियां जुड़कर ये कुल 26 होती हैं। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है, वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।

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